श्रीपति मिश्रा

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पण्डित श्रीपति मिश्रा (अंग्रेज़ी: Pandit Sripati Mishra, जन्म- 4 दिसम्बर, 1923, सुल्तानपुर; मृत्यु- 8 दिसम्बर, 2002, लखनऊ) भारतीय राजनीतिज्ञ तथा राजनेता थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे। मिश्रा जी 19 जुलाई, 1982 से 3 अगस्त, 1984 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे।

परिचय

पण्डित श्रीपति मिश्रा का जन्म 4 दिसम्बर, 1923 को ज़िला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित राम प्रसाद मिश्रा था, जो कि एक प्रतिष्ठित राजकीय वैद्य थे। श्रीपति जी धार्मिक प्रवृत्ति और कोमल स्वभाव के व्यक्ति थे। अपनी माता जसराज के नक्शे कदम पर चलकर वे समाज सेवा की ओर आकर्षित हुए। गांव में प्रारंभिक शिक्षा तो सुल्तानपुर में पाई, फिर हाईस्कूल व काशी से इंटर मीडिएट करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ गए। चौदह वर्ष की उम्र में ही श्रीपति मिश्रा राजनीति से जुड़ गए थे। 1938 में वे एक भूख हड़ताल में शामिल हुए थे। 1941 में वे बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय के यूनियन सचिव चुने गए थे। 1941 में उनका राजकुमारी मिश्रा से विवाह हुआ। उनकी चार संतानें थीं- तीन पुत्र, एक पुत्री।

राजनीतिक उठापटक

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बदलाव की बयार महज प्रदेश की नहीं, देश की भी दशा दिशा को प्रभावित करती है। ये बात बार-बार दोहरायी जाती रही है। इसी बदलाव की लहर पर बैठ कर उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री बने गरम मिजाज वी. पी. सिंह के बाद बेहद नरम स्‍वभाव के कांग्रेस नेता श्रीपति मिश्रा। श्रीपति जी जिस पारिवारिक पृष्‍ठभूमि से निकल कर आये थे, वह उनके व्‍यक्‍त्‍िव का हिस्‍सा बन चुकी थी और जमीन से जुड़ा ये शख्‍स लालफीताशाही की हकीकत को जानने के साथ उससे जूझने के तरीके भी जानता था। गांव की राजनीति करते हुए श्रीपति मिश्रा प्रदेश के मुख्‍यमंत्री के पद तक पहुंचे और 19 जुलाई, 1982 से 3 अगस्त, 1984 तक इस पद पर रहे।

महत्‍वपूर्ण फैसले

कहा जाता है कि तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी श्रीपति मिश्रा के चयन या उनकी कार्य प्रणाली से खास संतुष्‍ट नहीं थीं, किंतु जनता के बीच उनकी साफ सुथरी छवि कहिए या उत्तर प्रदेश में विकट हो चुकी डाकुओं की समस्‍या से निपटने में नाकाम रहे वी. पी. सिंह की विफलता से उपजा शून्‍य। उन्‍होंने अपनी ये नापसंदगी साफ तौर पर कभी जाहिर नहीं की। बहरहाल श्रीपति जी के मात्र दो साल के छोटे से कार्यकाल में उन्‍होंने कोई ऐसा फैसला नहीं लिया, जो मील का पत्‍थर कहा जा सके। पार्टी के अंदर फैले असंतोष को भी वे काबू करने में कामयाब नहीं हुए।

कार्य

  • सन 1949 में पण्डित श्रीपति मिश्रा ने जिले के सिविल कोर्ट में वकालत शुरू की। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली। 1954 से चार वर्ष तक वे जूडीशियल मजिस्ट्रेट के रूप में काम करते रहे। फिर सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर वकालत व राजनीति शुरू की।
  • 19621967 में विधायक चुने जाने के साथ विधान सभा उपाध्यक्ष भी बने।
  • भारतीय क्रांति दल की ओर से 1969 में सांसद बने और चौधरी चरण सिंह के अनुरोध पर लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर प्रदेश के शिक्षामंत्री का पद संभाला।
  • 1970 से 1976 तक एमएलसी रहे मिश्रा जी योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी बने।
  • 1982 में मुख्यमंत्री बने तो दो साल तक दायित्वों का निर्वहन किया।
  • वे 1985 में जौनपुर के मछली शहर से सांसद भी चुने गए थे। इस दौरान उन्होंने कई देशों की यात्रा भी की।


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