प्रशस्तपाद

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प्रशस्तपाद तथा प्रशस्तमति नामों के समान वाक्यनाम्नी टीका और प्रशस्तमति टीका के बारे में अभी तक बड़ा भ्रम व्याप्त है। कहा जाता है कि कणाद प्रणीत वैशेषिक सूत्र पर 'वाक्य' या 'प्रशस्तमति' नामक संक्षिप्त व्याख्यान अथवा संक्षिप्त भाष्य ग्रन्थ लिखा गया था, जिसकी रचना 'प्रशस्तमति' ने की थी या जिस पर 'प्रशस्तमति' ने टीका लिखी थी। टीका का नाम 'वाक्य' या 'प्रशस्तमति' था। इसका आधार इस प्रकार बनाया जाता है कि 'शान्तरक्षित' ने तत्त्वसंग्रह में ईश्वर के विभुत्व और सर्वज्ञान के संदर्भ में विशेष पदार्थ का निरूपण किया है तथा कमलशील ने 'तत्त्वसंग्रह व्याख्या पंजिका' में प्रशस्तमति के मत का खण्डन किया है। नयचक्र तथा नयचक्रव्याख्या में जो भाष्य वचन उद्धृत किए गए है, वे प्रशस्तपाद भाष्य में उपलब्ध नहीं हैं। जिनेन्द्र बुद्धि द्वारा दिङ्नाग के प्रमाण समुच्चयों पर रचित 'विशालामलवती' नामक व्याख्या में भी जो भाष्य वचन उद्धृत किये गये हैं, वे प्रशस्तपाद भाष्य में नहीं मिलते। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रशस्तपाद रचित भाष्य पदार्थ धर्म संग्रह के अतिरिक्त कोई अन्य भाष्य भी था, जो कि प्रशस्तपाद अथवा प्रशस्तमति नामक किसी अन्य आचार्य ने लिखा था। प्रशस्तमति को कुछ विद्वान प्रशस्तपाद से भिन्न व्यक्ति मानते हैं, किन्तु अधिकतर विद्वानों का यह मत है कि ये दोनों नाम एक ही व्यक्ति के थे।

जैनाचार्य मल्लवादी के नयचक्र से यह भी ज्ञात होता है कि वैशेषिक सूत्रों पर रचित 'वाक्य' नाम की इस संक्षिप्त व्याख्या में सूत्र तथा वाक्य साथ-साथ लिये गये थे।


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