रस -वैशेषिक दर्शन

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महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।

रस का स्वरूप

जीभ से प्रत्यक्ष होने वाले गुण का नाम रस है। रस छ: प्रकार का होता है- मथुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त तथा कषाय। रस पृथ्वी और जल में रहता है। पृथ्वी में छ: प्रकार काजल रहता है, किन्तु जल में केवल मधुर रस रहता है और वह अपाकज होता है। चित्ररस की सत्ता को नैयायिकों ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि आँख किसी वस्तु के विस्तृत भाग के रूपों को एक साथ देख सकती है, किन्तु जिह्वाग्र एक समय एक ही रस का ग्रहण कर सकता है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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