छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 खण्ड-14 से 16

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  • सूक्ष्म आत्मा क्या है?

श्वेतकेतु के पुन: पूछने पर ऋषि उद्दालक ने अगले तीन खण्डों में एक पुरुष की आंखों पर पट्टी बांधने, मरणतुल्य पुरुष की वाणी के चले जाने और अपराधी व्यक्ति द्वारा तप्त कुल्हाड़े को ग्रहण करने के उदाहरणों द्वारा सूक्ष्म तत्त्व आत्मा के सत्य स्वरूप को समझाया।
आंखों पर पट्टी बांधकर 'ब्रह्म' अथवा 'सत्य' की खोज नहीं की जा सकती। व्यक्ति को 'आत्मा' और 'परमात्मा' के एक रूप को पहचानने में सबसे बड़ी बाधा अज्ञान है।
मरणतुल्य प्राणी की वाणी तब तक मन में लीन नहीं होती, जब तक मन प्राण में जीन नहीं होता, प्राण तेज में जीन नहीं होता और तेज परमतत्त्व में लीन नहीं होता। तब तक वह अपने बन्धु-बान्धवों को पहचानता रहता है, परन्तु आत्मा के परमतत्त्व में विलीन होते ही वह किसी को नहीं पहचान सकता। जो अणु-रूप में विद्यमान है, वही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में चैतन्य-स्वरूप है। वही सत्य है, वही सभी प्राणियों में 'प्राणतत्त्व' है। वही 'आत्मा' है।
इसी प्रकार चोरी करने वाला अपराधी तप्त कुल्हाड़े को सत्य आवरण से नहीं ढक सकता और उसका स्पर्श करते ही उसके हाथ जल उठते हैं, किन्तु चोरी न करने वाला व्यक्ति अपने सत्य से तप्त कुल्हाड़े की गरमी को ढक लेता है। उस पर गरम कुल्हाड़े का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता।
वस्तुत: यह समस्त विश्व 'सत्य-स्वरूप' है। वही 'आत्मा है और वही परमात्मा' है, वही परब्रह्म है, सत्य है, निर्विकार और अजन्मा है। वह अपनी इच्छा से अपने को अनेक रूपों में अभिव्यक्त करता है और स्वयं ही अपने भीतर समा जाता है।


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