चिकनकारी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:03, 29 February 2012 by फ़ौज़िया ख़ान (talk | contribs) ('{{पुनरीक्षण}} '''चिकनकारी''' भारत में की जाने वाली उत्क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

चिकनकारी भारत में की जाने वाली उत्कृष्ट व महीन कसीदाकारी का एक प्रकार है, जो सामान्यतः सादे मलमल पर सफ़ेद सूती धागे से की जाती है।

  • इस शैली की उत्पत्ति अनिश्चित है, किंतु यह ज्ञात है कि 18वीं शताब्दी में यह बंगाल राज्य (वर्तमान बांग्लादेश) से लखनऊ, उत्तर प्रदेश पहुंची, जो 20वीं सदी से अब तक इसके उत्पादन का मुख्य केंद्र है।
  • अवध के नवाबों के संरक्षण में चिकनकारी ने दुर्लभ श्रेष्ठता प्राप्त की थी।
  • प्रभावोत्पादकता के लिए यह डिज़ाइन की सादकी पर निर्भर है, प्रतीकों की संख्या सीमित है और कार्य की उत्तमता बारीक व एकरूप कसीदाकारी से आंकी जाती है।
  • टांकों की संख्या भी सीमित है। सबसे अधिक प्रचलित हैं- रफू का टांका, उल्टा साटिन टांका, लंबा साटिक टांका, जाली का काम और दरज़ का काम।
  • इस कला पर ख़त्म हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा था। किंतु 20वीं शताब्दी में बढ़ी मांग ने इसके पुनरुत्थान में योगदान दिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः