शिकस्त -साहिर लुधियानवी

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शिकस्त -साहिर लुधियानवी
कवि साहिर लुधियानवी
जन्म 8 मार्च, 1921
जन्म स्थान लुधियाना, पंजाब
मृत्यु 25 अक्तूबर, 1980
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
मुख्य रचनाएँ तल्ख़ियाँ (नज़्में), परछाईयाँ (ग़ज़ल संग्रह)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
साहिर लुधियानवी की रचनाएँ


अपने सीने से लगाये हुये उम्मीद की लाश
मुद्दतों ज़ीस्त को नाशाद किया है मैनें
तूने तो एक ही सदमे से किया था दो चार
दिल को हर तरह से बर्बाद किया है मैनें
जब भी राहों में नज़र आये हरीरी मलबूस
सर्द आहों से तुझे याद किया है मैनें[1]

और अब जब कि मेरी रूह की पहनाई में
एक सुनसान सी मग़्मूम घटा छाई है
तू दमकते हुए आरिज़ की शुआयेँ लेकर
गुलशुदा शम्मएँ जलाने को चली आई है[2]

मेरी महबूब ये हन्गामा-ए-तजदीद-ए-वफ़ा
मेरी अफ़सुर्दा जवानी के लिये रास नहीं
मैं ने जो फूल चुने थे तेरे क़दमों के लिये
उन का धुंधला-सा तसव्वुर भी मेरे पास नहीं[3]

एक यख़बस्ता उदासी है दिल-ओ-जाँ पे मुहीत
अब मेरी रूह में बाक़ी है न उम्मीद न जोश
रह गया दब के गिराँबार सलासिल के तले
मेरी दरमान्दा जवानी की उमन्गों का ख़रोश[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जीस्त= ज़िंदगी; नाशाद= ग़मग़ीन, उत्साहहीन; हरीरी मलबूस = रेशमा कपड़े का टुकड़ा
  2. आरिज़= गाल और होंठों के अंग; शुआ = किरण; गुलशुदा = बुझ चुकी, मृतप्राय; शम्मा = आग
  3. तज़दीद = पुनरोद्भव, फिर से जाग उठना; अफ़सुर्दा = मुरझाई हुई, कुम्हलाई हुई; तसव्वुर =ख़याल, विचार, याद
  4. यख़बस्ता = जमी हुई; मुहीत = फैला हुआ; गिराँबार = तनी हुई, कसी हुई; सलासिल = ज़ंजीर; दरमान्दा = असहाय, बेसहारा

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