अमृत की खेती -महात्मा बुद्ध

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 03:05, 10 August 2014 by Dr, ashok shukla (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय |चित्र=Budha_prerak.png |चित्र का ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
अमृत की खेती -महात्मा बुद्ध
विवरण इस लेख में महात्मा बुद्ध से संबंधित प्रेरक प्रसंगों के लिंक दिये गये हैं।
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक महात्मा बुद्ध के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा के लिऐ एक किसान के यहां पहुंचे । तथागत को भिक्षा के लिये आया देखकर किसान उपेक्षा से बोला श्रमण मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना चाहिए और तब खाना खाना चाहिऐ

बुद्ध ने कहा महाराज मैं भी खेती ही करता हूं इस पर किसान को जिज्ञासा हुयी बोले गौतम मैं न तुम्हारा हल देखता हूं ना न बैल और नही खेती के स्थल। तब आप कैसे कहते हैं कि आप भी खेती ही करते हैं। आप कृपया अपनी खेती के संबंध में समझाऐं ।

ब्ुाद्ध ने कहा महाराज मेरे पास श्रद्धा का बीज तपस्या रूपी वर्षा प्रजा रूपी जोत और हल है पापभीरूता का दंड है विचार रूपी रस्सी है स्मृति और जागरूकता रूपी हल की फाल और पेनी है मैं बचन और कर्म में संयत रहता हूं । में अपनी इस खेती को बेकार घास से मुक्त रखता हूं और आनंद की फसल काट लेने तक प्रयत्नशील रहने वाला हूं अप्रमाद मेरा बैल हे जो बाधाऐं देखकर भी पीछे मुंह नहीं मोडता है । वह मुझे सीधा शान्ति धाम तक ले जाता है । इस प्रकार मैं अमृत की खेती करता हूं।

महात्मा बुद्ध से जुडे अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए महात्मा बुद्ध के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ


टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः