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जो भी मैंने तुम्हें बताया जो कुछ सारा ज्ञान दिया है वो मेरे असफल जीवन का और मिरे अपराधी मन का कुंठाओं से भरा-भराया कुछ अनुभव था जितनी भूलें मैंने की थीं जितने मुझको शूल चुभे थे उतने ही अब फूल चुनूँ और सेज बना दूँ, ऐसा है मन और एक सपना भी है मेरा ही अपना मेरे भय ने मुझे सताया जीवन के अंधियारे पल थे जितने भी वो सारे कल थे दूर तुम्हें उनसे ले जाऊँ कहना यही चाहता हूँ मैं ये कम है क्या? मन से भाग सकूँगा कैसे कोई भाग सका भी है क्या कोई नहीं बता सकता है कोई नहीं जता सकता है ये तो बस, सब ऐसा ही है समझ सको तो समझ ही लेना प्रेम किया है जैसा भी है और नहीं मालूम मुझे कुछ यही प्रेम पाती है मेरी नहीं जानता लिखना कुछ भी जैसे-तैसे यही लिखा है...
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