पुरुषार्थ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:05, 2 May 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "सन्यास" to "सन्न्यास")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
  • पुरुषार्थ का शाब्दिक अर्थ है 'पुरुष द्वारा प्राप्त करने योग्य' आजकल की शब्दावली में इसे 'मूल्य' कह सकते हैं।
  • हिन्दू विचारशास्त्रियों ने चार पुरुषार्थ माने हैं- धर्म, अर्थ, काम, एवं मोक्ष।
  • धर्म का अर्थ है जीवन के नियामक तत्त्व।
  • अर्थ का तात्पर्य है जीवन के भौतिक साधन।
  • काम का अर्थ जीवन वैध कामनाएँ।
  • मोक्ष का अभिप्राय है, जीवन के सभी प्रकार के बंधनों से मुक्ति। प्रथम तीन को पवर्ग और अंतिम को अपवर्ग कहते हैं।
  • पुरुषार्थ का सम्बन्ध चार आश्रमों से है। प्रथम आश्रम ब्रह्मचर्य आश्रम, दूसरा गार्हस्थ्य आश्रम तीसरा वानप्रस्थ एवं चौथा सन्न्यास मोक्ष का अधिष्ठान है।
  • धर्म पुरुषार्थ का प्रसार पूरे जीवनकाल पर है किंतु यहाँ धर्म का विशेष अर्थ है अनुशासन तथा सारे जीवन को एक दार्शनिक रूप से चलाने की शिक्षा, जो प्रथम या ब्रह्मचर्याश्रय में ही सीखना पड़ता है। इन चारों पुरुषार्थों में भी विकास परिलिक्षित है, यथा एक से दूसरे की प्राप्ति-धर्म से अर्थ, अर्थ से काम तथा धर्म से पुन: मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • चार्वकि दर्शन केवल अर्थ एवं काम को पुरुषार्थ मानता है। किंतु चार्वकों का सिद्धांत भारत में बहुमान्य नहीं हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः