श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 2 श्लोक 1-16

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दशम स्कन्ध: द्वितीय अध्याय (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: द्वितीय अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

भगवान का गर्भ-प्रवेश और देवताओं द्वारा गर्भ-स्तुति

श्री शुकदेव जी कहते हैं— परीक्षित! कंस एक तो स्वयं ही बड़ा बली था और दूसरे मगध नरेश जरासन्ध की उसे बहुत बड़ी सहायता प्राप्त थी। तीसरे उसके साथ थे — प्रलम्बासुर, बकासुर, चाणूर, तृणावर्त, अघासुर, मुष्टिक, अरिष्टासुर, द्विविद, पूतना, केशी, धेनुक, बाणासुर और भौमासुर आदि बहुत से दैत्य राजा उसके सहायक थे। उनको साथ लेकर वह यदुवंशियों को नष्ट करने लगा।

वे लोग भयभीत होकर कुरु, पंचाल, केकय, शाल्व, विदर्भ, ,निषध, विदेह और कोसल आदि देशों में जा बसे। कुछ लोग ऊपर-ऊपर से उसके मन के अनुसार काम करते हुए उसकी सेवा में लगे रहे। जब कंस ने एक-एक करके देवकी के छः बालक मार डाले, तब देवकी के सातवें गर्भ में भगवान के अंशस्वरूप श्रीशेष जी [1], जिन्हें अनंत कहते हैं, पधारे। आनन्दस्वरुप शेष जी के गर्भ में आने के कारण देवकी को स्वाभाविक ही हर्ष हुआ। परन्तु कंस शायद इसे भी मार डाले, इस भय से उनका शोक भी बढ़ गया ।

विश्वात्मा भगवान ने देखा कि मुझे ही अपना स्वामी और सर्वस्व मानने वाले यदुवंशी कंस के द्वारा बहुत ही सताये जा रहे हैं। तब उन्होंने अपनी योगमाया को यह आदेश दिया— 'देवि ! कल्याणी ! तुम ब्रज में जाओ ! वह प्रदेश ग्वालों और गौओं से सुशोभित है। वहां नन्दबाबा के गोकुल में वसुदेव की पत्नी रोहिणी निवास करती है। उसकी और भी पत्नियाँ कंस से डरकर गुप्त स्थानों में रह रहीं हैं। इस समय मेरा वह अंश जिसे शेष कहते हैं, देवकी के उदर में गर्भ रूप से स्थित है। उसे वहां से निकालकर तुम रोहिणी के पेट में रख दो, कल्याणी! अब मैं अपने समस्त ज्ञान, बल आदि अंशों के साथ देवकी का पुत्र बनूँगा और तुम नन्दबाबा की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेना। तुम लोगों को मुँह माँगे वरदान देने में समर्थ होओगी। मनुष्य तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाली जानकर धूप-दीप, नैवेद्य एवं अन्य प्रकार की सामग्रियों से तुम्हारी पूजा करेंगे। पृथ्वी में लोग तुम्हारे लिए बहुत से स्थान बनायेंगे और दुर्गा, भद्रकाली, विजया, वैष्णवी, कुमुदा, चण्डिका, कृष्णा, माधवी, कन्या, माया, नारायणी, ईशानी, शारदा और अम्बिका आदि बहुत से नामों से पुकारेंगे। देवकी के गर्भ से खींचे जाने के कारण शेष जी को लोग संसार में ‘संकर्षण’ कहेंगे, लोकरंजन करने के कारण ‘राम’ कहेंगे और बलवानों में श्रेष्ठ होने कारण ‘बलभद्र’ भी कहेंगे।'

जब भगवान ने इस प्रकार आदेश दिया, तब योगमाया ने ‘जो आज्ञा’, ऐसा कहकर उनकी बात शिरोधार्य की और उनकी परिक्रमा करके वे पृथ्वी-लोक में चली आयीं तथा भगवान ने जैसा कहा था वैसे ही किया। जब योगमाया ने देवकी का गर्भ ले जाकर रोहिणी के उदर में रख दिया, तब पुरवासी बड़े दुःख के साथ आपस में कहने लगे — 'हाय ! बेचारी देवकी का यह गर्भ तो नष्ट ही हो गया।'

भगवान भक्तों को अभय करने वाले हैं। वे सर्वत्र सब रूप में हैं, उन्हें कहीं आना-जाना नहीं है। इसलिए वे वसुदेव जी के मन में अपनी समस्त कलाओं के साथ प्रकट हो गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शेष भगवान ने विचार किया कि ‘रामावतार में मैं छोटा भाई बना, इसी से मुझे बड़े भाई की आज्ञा माननी पड़ी और वन जाने से मैं उन्हें रोक नहीं सका। श्रीकृष्णावतार में मैं बड़ा भाई बनकर भगवान की अच्छी सेवा कर सकूँगा। इसलिये वे श्रीकृष्ण से पहले ही गर्भ में आ गये।

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