श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 76 श्लोक 30-33

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 04:53, 9 July 2015 by प्रियंका वार्ष्णेय (talk | contribs) ('== दशम स्कन्ध: षट्सप्ततितमोऽध्यायः(76) (उत्तरार्ध)== <div sty...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

दशम स्कन्ध: षट्सप्ततितमोऽध्यायः(76) (उत्तरार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: षट्सप्ततितमोऽध्यायः श्लोक 30-33 का हिन्दी अनुवाद


बतला तो सही, अब मैं अपने ताऊ बलरामजी और पिता श्रीकृष्ण के सामने जाकर क्या कहूँगा ? अब तो सब लोग यही कहेंगे न, कि मैं युद्ध से भग गया ? उनके पूछने पर मैं अपने अनुरूप क्या उत्तर दे सकूँगा’ । मेरी भाभियाँ हँसती हुई मुझसे साफ़-साफ़ पूछेंगी कि ‘कहो, वीर! तुम नपुंसक कैसे हो गये ? दूसरों ने युद्ध में तुम्हें नीचा कैसे दिखा दिया ?’ ‘सूत! अवश्य ही तुमने मुझे रणभूमि से भगाकर अक्षम्य अपराध किया है!’ ।

सारथी ने कहा—आयुष्मन्! मैंने जो कुछ किया है, सारथी धर्म समझकर ही किया है। मेरे समर्थ स्वामी! युद्ध का ऐसा धर्म है कि संकट पड़ने पर सारथी रथी की रक्षा कर ले और रथी सारथी की । इस धर्म को समझते हुए ही मैंने आपको रणभूमि से हटाया है। शत्रु ने आप पर गदा का प्रहार किया था, जिससे आप मुर्च्छित हो गये थे, बड़े संकट में थे; इसी से मुझे ऐसा करना पड़ा ।







« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः