श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 82 श्लोक 47-49

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:20, 5 August 2015 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (1 अवतरण)
Jump to navigation Jump to search

दशम स्कन्ध: द्वयशीतितमोऽध्यायः(82) (उत्तरार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: द्वयशीतितमोऽध्यायः श्लोक 47-49 का हिन्दी अनुवाद


इसी प्रकार सभी प्राणियों के शरीर में यही पाँचों भूत कारणरूप से स्थित हैं और आत्मा भोक्ता के रूप से अथवा जीव के रूप से स्थित है। परन्तु मैं इन दोनों से परे अविनाशी सत्य हूँ। ये दोनों मेरे ही अंदर प्रतीत हो रहे हैं, तुम लोग ऐसा अनुभव करो । श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार गोपियों को अध्यात्मज्ञान की शिक्षा से शिक्षित किया। उसी उपदेश के बार-बार स्मरण से गोपियों का जीवकोश-लिंगशरीर नष्ट हो गया और वे भगवान से एक हो गयीं, भगवान को ही सदा-सर्वदा के लिए प्राप्त हो गयीं । उन्होंने कहा—‘हे कमलनाभ! अगाधबोध-सम्पन्न बड़े-बड़े योगेश्वर अपने ह्रदयकमल में आपके चरणकमलों का चिन्तन करते रहते हैं। जो लोग संसार के कुएँ में गिरे हुए हैं, उन्हें उससे निकलने के लिये आपके चरणकमल ही एकमात्र अवलम्बन हैं। प्रभो! आप ऐसी कृपा कीजिये की आपका चरणकमल, घर-गृहस्थी के काम करते रहने पर ही सदा-सर्वदा हमारे ह्रदय में विराजमान रहे, हम एक क्षण के लिये भी उसे न भूलें ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः