श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 27 श्लोक 53-55

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:21, 6 August 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (1 अवतरण)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

एकादश स्कन्ध: सप्तविंशोऽध्यायः (27)

श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: सप्तविंशोऽध्यायः श्लोक 53-55 का हिन्दी अनुवाद


जो निष्काम भाव से मेरी पूजा करता है, उसे मेरा भक्ति योग प्राप्त हो जाता है और उस निरपेक्ष भक्ति योग के द्वारा वह स्वयं मुझे प्राप्त कर लेता है । जो अपनी दी हुई या दूसरों की दी हुई देवता और ब्राम्हण की जीविका हरण कर लेता है, वह करोड़ों वर्षों तक विष्ठा का कीड़ा होता है । जो लोग ऐसे कामों में सहायता, प्रेरणा अथवा अनुमोदन करते हैं, वे भी मरने के बाद प्राप्त करने वाले के समान ही फल के भागीदार होते हैं। यदि उनका हाथ अधिक रहा तो फल भी उन्हें अधिक ही मिलता है ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः