श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 61 श्लोक 15-27

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दशम स्कन्ध: एकषष्टितमोऽध्यायः(61) (उत्तरार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकषष्टितमोऽध्यायः श्लोक 15-27 का हिन्दी अनुवाद

मद्र देश की राजकुमारी लक्ष्मणा के गर्भ से प्रघोष, गात्रवान्, सिंह, बल, प्रबल, उर्ध्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजिता का जन्म हुआ । मित्रविन्दा के पुत्र थे—वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महाश, पावन, वह्नि, और क्षुधि । भद्रा के पुत्र थे—संग्रामजित्, ब्रहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित्, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक । इन पटरानियों के अतिरिक्त भगवान की रोहिणी आदि सोलह हजार एक सौ और भी पत्नियाँ थीं। उनके दीप्तिमान् और ताम्रतप्त आदि दस-दस पुत्र हुए। रुक्मिणीनन्दन प्रद्दुम्न का मायावती रति के अतिरिक्त भोजकट-नगर-निवासी रुक्मी की पुत्री रुक्मवतीसे भी विवाह हुआ था। उसी के गर्भ से परम बलशाली अनिरुद्ध का जन्म हुआ। परीक्षित्! श्रीकृष्ण के पुत्रों की माताएँ ही सोलह हजार से अधिक थीं। इसलिये उनके पुत्र-पौत्रों की संख्या करोड़ों तक पहुँच गयी ।

राजा परीक्षित् ने पूछा—परम ज्ञानी मुनीश्वर! भगवान श्रीकृष्ण ने रणभूमि में रुक्मी का बड़ा तिरस्कार किया था। इसलिये वह सदा इस बात की घात में रहता था कि अवसर मिलते ही श्रीकृष्ण से उसका बदला लूँ और उनका काम तमाम कर डालूँ। ऐसी स्थिति में उसने अपनी कन्या रुक्मवती अपने शत्रु के पुत्र प्रद्दुम्नजी को कैसे ब्याह दी ? कृपा करके बतलाइये! दो शत्रुओं में—श्रीकृष्ण और रुक्मी में फिर से परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध कैसे हुआ ? आपसे कोई बात छिपी नहीं है। क्योंकि योगीजन भूत, भविष्य और वर्तमान की सभी बातें भलीभाँति जानते हैं। उनसे ऐसी बातें भी छिपी नहीं रहती; जो इन्द्रियों से परे हैं, बहुत दूर हैं अथवा बीच में किसी वस्तु की आड़ होने के कारण नहीं दीखतीं ।

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! प्रद्दुम्नजी मूर्तिमान् कामदेव थे। उनके सौन्दर्य और गुणों पर रीझकर रुक्मवती ने स्वयंवर में उन्हीं को वरमाला पहना दी। प्रद्दुम्नजी ने युद्ध में अकेले ही वहाँ इकट्ठे हुए नरपतियों को जीत लिया और रुक्मवती को हर लाये ।

यद्यपि भगवान श्रीकृष्ण से अपमानित होने के कारण रुक्मी के हृदय की क्रोधाग्नि शान्त नहीं हुई थी, वह अब भी उनसे वैर गाँठे हुए था, फिर भी अपनी बहिन रुक्मिणी को प्रसन्न करने के लिये उसने अपने भानजे प्रद्दुम्न को अपनी बेटी ब्याह दी । परीक्षित्! दस पुत्रों के अतिरिक्त रुक्मिणीजी के एक परम सुन्दरी बड़े-बड़े नेत्र वाली कन्या थी। उसका नाम था चारुमती। कृतवर्मा के पुत्र बली के ने उसके साथ विवाह किया ।

परीक्षित्! रुक्मी का भगवान श्रीकृष्ण के साथ पुराना वैर था। फिर भी अपनी बहिन रुक्मिणी को प्रसन्न करने के लिये उसने अपनी पौत्री रोचना का विवाह रुक्मिणी के पौत्र, अपने नाती (दौहित्र) अनिरुद्ध के साथ कर दिया। यद्यपि रुक्मी को इस बात पता था कि इस प्रकार का विवाह-सम्बन्ध धर्म के अनुकूल नहीं है, फिर भी स्नेह-बन्धन में बँधकर उसने ऐसा कर दिया । परीक्षित्! अनिरुद्ध के विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिये भगवान श्रीकृष्ण, बलरामजी, रुक्मिणीजी, प्रद्दुम्न, साम्ब आदि द्वारिकावासी भोजकट नगर में पधारे । जब विवाहोत्सव निर्विघ्न समाप्त हो गया, तब कलिंगनरेश आदि घमंडी नरपतियों ने रुक्मी से कहा कि ‘तुम बलरामजी को पासों के खेल में जीत लो ।



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