श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 46-52

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:19, 29 October 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "स्वरुप" to "स्वरूप")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

द्वादश स्कन्ध: तृतीयोऽध्यायः (3)

श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: तृतीयोऽध्यायः श्लोक 46-52 का हिन्दी अनुवाद

भगवान के रूप, गुण, लीला, धाम और नाम के श्रवण, संकीर्तन, ध्यान, पूजन और आदर से वे मनुष्य के हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं। और एक-दो जन्म के पापों की तो बात ही क्या, हजारों जन्मों के पाप के ढेर-के-ढेर भी क्षणभर में भस्म कर देते हैं। जैसे सोने के साथ संयुक्त होकर अग्नि उसके धातुसम्बन्धी मलिनता आदि दोषों को नष्ट कर देती है, वैसे ही साधकों के हृदय में स्थित होकर भगवान विष्णु उनके अशुभ सस्कारों को सदा के लिये मिटा देते हैं । परीक्षित्! विद्या, तपस्या, प्राणायाम, समस्त प्राणियों के प्रति मित्रभाव, तीर्थस्नान, व्रत, दान और जप आदि किसी भी साधन से मनुष्य के अन्तःकरण की वैसी वास्तविक शुद्धि नहीं होती, जैसी शुद्धि भगवान पुरुषोत्तम के हृदय में विराजमान हो जाने पर होती है ।परीक्षित्! अब तुम्हारी मृत्यु का निकट आ गया है। अब सावधान हो जाओ। पूरी शक्ति से और अन्तःकरण की सारी वृत्तियों से भगवान श्रीकृष्ण को अपने हृदय सिंहासन पर बैठा लो। ऐसा करने से अवश्य ही तुम्हें परमगति कि प्राप्ति होगी । जो लोग मृत्यु के निकट पहुँच रहे हैं, उन्हें सब प्रकार से परम ऐश्वर्यशाली भगवान का ही ध्यान करना चाहिये। प्यारे परीक्षित्! सबके परम आश्रय और सर्वात्मा भगवान अपना ध्यान करने वाले को अपने स्वरूप में लीन कर लेते हैं, उसे अपना स्वरूप बना लेते हैं। परीक्षित्! यों तो कलियुग दोषों का खजाना है, परन्तु इसमें एक बहुत बड़ा गुण है। वह गुण यही है कि कलियुग में केवल भगवान श्रीकृष्ण का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी असक्तियाँ छूट जाती हैं और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है । सत्ययुग में भगवान का ध्यान करने से, त्रेता में बड़े-बड़े यज्ञों के द्वारा उनकी आराधना करने से और द्वापर में विधिपूर्वक उनकी पूजा-सेवा से जो फल मिलता है, वह कलियुग में केवल भगवन्नाम का कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाता है ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः