आत्महत्या

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आत्महत्या आत्महत्या का अर्थ जान बूझकर किया गया आत्मघात होता है। वर्तमान युग में यह एक गर्हणीय कार्य समझा जाता है, परंतु प्राचीन काल में ऐसा नहीं था; बल्कि यह निंदनीय की अपेक्षा सम्मान्य कार्य समझा जाता था। हमारे देश की सतीप्रथा तथा युद्धकालीन जौहर इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। मोक्ष आदि धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर भी लोग आत्महत्या करते थे।

आत्महत्या के लिए अनेक उपायों का प्रयोग किया जाता है जिनमें मुख्य ए हैं: फांसी लगाना, डूबना, गला काट डालना, तेजाब आदि द्रव्यों का प्रयोग, विषपान तथा गोली मार लेना। उपाय का प्रयोग व्यक्ति की निजी स्थिति तथा साधन की सुलभता के अनुसार किया जाता है।

विभिन्न देशों में तथा स्त्री पुरुषों द्वारा अपनाए जानेवाले आत्महत्या के विविध साधनों में प्रचुर मात्रा में अंतर पाया जाता है। उदाहरणार्थ, भारत में डूबकर तथा इंग्लैंड में फांसी लगाकर की जानेवाली आत्महत्याओं की संख्या आधिक होती है। उसी प्रकार भारत में स्त्रियों, सात में छह, डूबकर आत्महत्या का मार्ग अपनाती हैं जब कि पुरुषों में डूबने तथा फांसी लगाने की संख्या प्राय: समान है।

जीवन में रुचि का अभाव, पारस्परिक विद्वेष, गृहकलह, निराश्रय, शरीरिक तथा मानसिक उत्पीड़न तथा आर्थि संकट आत्महत्या के प्रमुख कारण होते हैं। स्त्रियों में आत्महत्या का कारण अधिकांश रूप में द्वेष या कलह पाया जाता है।

आत्महत्या का प्रयत्न - भारतीय दंडविधान की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या का प्रयत्न दंडनीय अपराध है जिसको तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. घोर मानसिक या शारीरिक यंत्रणा की स्थिति में आत्महत्या का प्रयत्न,
  2. बिना किसी अभिप्राय या उद्देश्य के एकाएक भावावेश में किया गया प्रयत्न तथा
  3. निश्चित भावना से विषपान द्वारा आत्महत्या का प्रयत्न। अंतिम प्रयत्न विशेष रूप से दंडनीय है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 365 |

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