कालिंदी चरण पाणिग्रही

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:38, 22 February 2022 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

कालिंदी चरण पाणिग्रही (अंग्रेज़ी: Kalindi Charan Panigrahi, जन्म- 2 जुलाई, 1901; मृत्यु- 15 मई, 1991) प्रसिद्ध उड़िया कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार और निबंधकार थे। वह अपनी महान कृति 'मतिरा मनीषा' के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्हें ओडिया साहित्य में योगदान के लिए पद्म भूषण (1971) और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

  • उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में ओडिशा में 'सबुज साहित्य' बनने लगा था। रेवेंशा कॉलेज में पढ़ने वाले कई छात्रों की हृदगत भावाभिव्यक्तियॉं ही इस साहित्य का मुख्य उपजीव्य रहा है। यदि इस साहित्य को ‘तारुण्य की पुकार’ कहें तो कोई अ‍त्युक्ति नहीं होगी।
  • उन छात्र-कवियों में एक प्रसिद्ध कवि थे- कालिंदी चरण पाणिग्राही, जिन्होंने प्रेम तथा प्रणय को युवाओ का ‍अधिकार बताया। उनके अनुसार प्रेयसी दुनिया की सबसे कीमती सम्पदा है। प्रेम पल भर के लिए किया जा सकता है लेकिन उसका प्रभाव दीर्घस्थायी होता है। मनुष्य की आयु के साथ प्रेम के प्रभाव का अनोखा रिश्ता है। आयु जितनी बढ़ती रहती है, प्रेम का प्रभाव उतना-उतना जबरदस्त बनता जाता है। सच कहा जाए तो प्रेम ही मुक्ति की साधना है। जो लोग प्रेम को गोपनीय तथा लज्जा का विषय मानते हैं, वे भूल करते हैं। इसी प्रेम को पाने के लिए कवि कालिंदी चरण बार-बार जन्म लेने की तमन्ना रखते हैं। जिस संसार को लोग दु:खमय मानते हैं, वह संसार प्रणय की वजह से स्वर्ग में तबदील हो सकता है।[1]
  • कालिंदी चरण के काव्य में प्रणय, चेतना के मुख्य आधार निम्नलिखित हैं-
  1. प्रेम लज्जा का विषय नहीं, वह युवाओं का अधिकार है।
  2. प्रेम शाश्वत है।
  3. प्रेयसी की हँसी में सारे धर्मो का निचोड़ निहित है।
  4. प्रेमी एक-दूसरे के परिपूरक तथा मुक्ति के पथ प्रदशर्क भी हैं।
  5. प्रेम से जीवन और मृत्यु आकर्षणीय बनती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कालिन्दी चरण पाणिग्रही के काव्य में प्रणय– चेतना: एक झलक (हिंदी) hindijournal.com। अभिगमन तिथि: 22 फरवरी, 2022।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः