अजहत्स्वार्था

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अजहत्स्वार्था [न जहत्‌ स्वार्थोऽत्र-हा+शतृ न. ब.]

  • लक्षणा शक्ति का एक भेद है जिसमें मुख्यार्थं पद-शून्यता के कारण नष्ट नहीं होता; जैसे कुंताः प्रविशंति=कुंत धारिणः पुरुषाः, इसे उपादान लक्षणा भी कहते हैं।[1]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 15 |

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