विश्व पैंगोलिन दिवस

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विश्व पैंगोलिन दिवस
तिथि प्रत्येक वर्ष, फ़रवरी का तीसरा शनिवार
स्तर विश्व स्तरीय दिवस
उद्देश्य पैंगोलिन स्तनधारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा इनके संरक्षण के प्रयासों में तेजी लाना।
संबंधित लेख पैंगोलिन
अन्य जानकारी पैंगोलिन स्तनधारियों की संख्या में तेजी से गिरावट जारी है‚ जिनमें प्रमुख रूप से एशिया तथा अफ्रीका के क्षेत्र शामिल हैं। पैंगोलिन फोलिडोटा गण का एक स्तनधारी प्राणी है।
अद्यतन‎

विश्व पैंगोलिन दिवस (अंग्रेज़ी: World Pangolin Day) प्रत्येक वर्ष फ़रवरी माह के तीसरे शनिवार को मनाया जाता है। तारीख के अनुसार ये दिवस साल 2025 में 15 फ़रवरी को मनाया गया जायेगा। ‘विश्व पैंगोलिन दिवस’ को मनाने का उद्देश्य पैंगोलिन जीव की प्रजाति के मिट रहे अस्तित्व को बचाना है। दरअसल ये जीव उन संकटग्रस्त जीवों की प्रजाति में शामिल है, जिसकी संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है। जबकि इसके संरक्षण के लिए लगातार कोशिशें की जा रही हैं।

पैंगोलिन

पैंगोलिन एक गहरे-भूरे या पीले-भूरे रंग का शुंडाकार जीव है। यह कुछ-कुछ सांप और छिपकली की तरह दिखाई देता है और स्तनधारी जीवों की श्रेणी में आता है। पैंगोलिन को कई नामों से जाना जाता है। सांप जैसी आकृति होने की वजह से कुछ लोग इसे सल्लू सांप कहकर बुलाते हैं तो शरीर पर शल्क होने के चलते इसे वज्रशल्क के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग चींटी और दीमक खाने की वजह से इस जीव को चींटीखोर भी कहते हैं। ये एक बेहद सीधा जीव है जो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है। पैंगोलिन मुख्य रूप से भारत के उत्तराखंड में पाए जाते हैं। ये जलीय स्रोतों के आस-पास जमीन में बिल बनाकर रहते हैं। ये ज्यादातर एकाकी जीवन जीते हैं। ये चींटी और दीमक खाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं।[1]

उद्देश्य

[[चित्र:Pangolin.jpg|thumb|250px|पैंगोलिन]] विश्व पैंगोलिन दिवस मनाने का उद्देश्य पैंगोलिन जीव की प्रजाति के मिट रहे अस्तित्व को बचाना है। पैंगोलिन की घटती संख्या को ध्यान में रखकर इस जीव को संकटग्रस्त जीवों की प्रजाति में शामिल किया गया है। उत्तराखंड में पैंगोलिन संभावित क्षेत्रों को चिह्नित किया जा रहा है। साथ ही इस जीव को उनके अनुकूल वातावरण मुहैया कराने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। पैंगोलिन के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इसके संरक्षण को बहुत ज्यादा ज़रूरी बताया है। उत्तराखंड वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान संयुक्त रूप से पैंगोलिन के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं।

घट रही है संख्या

पैंगोलिन उस संकटग्रस्त जीवों की प्रजाति में शामिल है, जिसकी संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है। दरअसल पैंगोलिन की हड्डियों और मांस की तस्करी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेजी से हो रही है। इसका सबसे ज्यादा प्रयोग ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन में किया जाता है। अनुमान के अनुसार चीनी दवाओं का कारोबार लगभग 130 बिलियन डॉलर का है। इनका इस्तेमाल यौनवर्धक दवाओं के साथ कई अन्य तरह की दवाएं बनाने में किया जाता है। कुछ लोग इसके स्केल्स यानी मोटी खाल को भी सुखाकर, पीसकर कैप्सूल में भरकर शक्तिवर्धक दवाओं के रूप में इस्तेमाल करते हैं। तो वहीं कई देशों में इसको नॉनवेज फ़ूड के तौर पर खाया जाता है। क्योंकि इसके मांस की कीमत बाजार में 27 हज़ार रुपये प्रति किलो तक होती है। इसलिए कई महंगे रेस्टोरेंट्स और होटल्स में ही इसको सर्व किया जाता है। इतना ही नहीं कई बार कुछ तांत्रिक पैंगोलिन का शिकार टोने-टोटके के लिए भी करते हैं। 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर' (आईयूसीएन) के अनुसार दुनिया भर में जिन वन्य जीवों की अवैध तस्करी की जाती है उसमें 20 प्रतिशत का योगदान अकेले पैंगोलिन का है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

  1. REDIRECT साँचा:महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय दिवस

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