Difference between revisions of "अनाक्रिओन"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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'''अनाक्रिओन''' (जन्म, लगभग 560 ई. पू.), एशिया माइनर के तिओस नगर का निवासी था। ईरानी सम्राट् कुरुष्‌ के आक्रमण से अन्य नगरवासियों के साथ ्थ्रोस भागा। फिर वह सामोस के राजा पोलिक्रतिज़्‌ का अध्यापक बना। वह प्राचीन ग्रीक भाषा का महान्‌ गेय (लिरिक) कवि था। उसने अपने इस सामोस के संरक्षक पर अनेक कविताएँ लिखीं। अपने संरक्षक की मृत्यु के बाद एथेंस के राजा हिपार्चस्‌ के आह्वान पर वह वहाँ पहुँचा। वहाँ अपने संरक्षक की हत्या के बाद वह मित्रकवि सिमोनीदिज़ के साथ नगर नगर घूमता अपने जन्म के नगर जिओस पहुँचा जहाँ लगभग 85 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। वह लोकप्रिय जनकवि था और एथेंस्‌ में उसकी मूर्ति स्थापित हुई। हाथ में तंत्री लिए सिंहासन पर बैठी उसकी संगमरमर की एक मूर्ति 1835 ई. में पाई गई थी। तिओस नगर के अनेक सिक्कों पर उसकी तंत्रीधारिणी आकृति ढली मिली है।
 
'''अनाक्रिओन''' (जन्म, लगभग 560 ई. पू.), एशिया माइनर के तिओस नगर का निवासी था। ईरानी सम्राट् कुरुष्‌ के आक्रमण से अन्य नगरवासियों के साथ ्थ्रोस भागा। फिर वह सामोस के राजा पोलिक्रतिज़्‌ का अध्यापक बना। वह प्राचीन ग्रीक भाषा का महान्‌ गेय (लिरिक) कवि था। उसने अपने इस सामोस के संरक्षक पर अनेक कविताएँ लिखीं। अपने संरक्षक की मृत्यु के बाद एथेंस के राजा हिपार्चस्‌ के आह्वान पर वह वहाँ पहुँचा। वहाँ अपने संरक्षक की हत्या के बाद वह मित्रकवि सिमोनीदिज़ के साथ नगर नगर घूमता अपने जन्म के नगर जिओस पहुँचा जहाँ लगभग 85 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। वह लोकप्रिय जनकवि था और एथेंस्‌ में उसकी मूर्ति स्थापित हुई। हाथ में तंत्री लिए सिंहासन पर बैठी उसकी संगमरमर की एक मूर्ति 1835 ई. में पाई गई थी। तिओस नगर के अनेक सिक्कों पर उसकी तंत्रीधारिणी आकृति ढली मिली है।
  
अनाक्रिओन मधुर गायक था, ऐसा लिरिक कवि जिसे प्रसिद्ध लातीनी कवि होरेस ने अपना आदर्श माना है। अनाक्रिओन की अनेक पूर्ण-अपूर्ण कविताएँ संकलित हुई जिनकी सत्यता की संदिग्धता उसके गौरव को बढ़ा देती है। उसने अधिकतर कविताएँ सुरा, दियोनिसस्‌ आदि पर लिखीं।  
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अनाक्रिओन मधुर गायक था, ऐसा लिरिक कवि जिसे प्रसिद्ध लातीनी कवि होरेस ने अपना आदर्श माना है। अनाक्रिओन की अनेक पूर्ण-अपूर्ण कविताएँ संकलित हुई जिनकी सत्यता की संदिग्धता उसके गौरव को बढ़ा देती है। उसने अधिकतर कविताएँ सुरा, दियोनिसस्‌ आदि पर लिखीं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=113 |url=}}</ref>
  
  
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
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Latest revision as of 11:30, 24 May 2018

anakrion (janm, lagabhag 560 ee. poo.), eshiya mainar ke tios nagar ka nivasi tha. eerani samrath kurushh‌ ke akraman se any nagaravasiyoan ke sath hthros bhaga. phir vah samos ke raja polikratizh‌ ka adhyapak bana. vah prachin grik bhasha ka mahanh‌ gey (lirik) kavi tha. usane apane is samos ke sanrakshak par anek kavitaean likhian. apane sanrakshak ki mrityu ke bad etheans ke raja hiparchash‌ ke ahvan par vah vahaan pahuancha. vahaan apane sanrakshak ki hatya ke bad vah mitrakavi simonidiz ke sath nagar nagar ghoomata apane janm ke nagar jios pahuancha jahaan lagabhag 85 varsh ki ayu mean usaki mrityu huee. vah lokapriy janakavi tha aur etheansh‌ mean usaki moorti sthapit huee. hath mean tantri lie sianhasan par baithi usaki sangamaramar ki ek moorti 1835 ee. mean paee gee thi. tios nagar ke anek sikkoan par usaki tantridharini akriti dhali mili hai.

anakrion madhur gayak tha, aisa lirik kavi jise prasiddh latini kavi hores ne apana adarsh mana hai. anakrion ki anek poorn-apoorn kavitaean sankalit huee jinaki satyata ki sandigdhata usake gaurav ko badha deti hai. usane adhikatar kavitaean sura, diyonisash‌ adi par likhian.[1]


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. hindi vishvakosh, khand 1 |prakashak: nagari pracharini sabha, varanasi |sankalan: bharat diskavari pustakalay |prishth sankhya: 113 |

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