Difference between revisions of "खादी के प्रति अनुराग -लाल बहादुर शास्त्री"
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− | ' | + | 'लालबहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी' पुस्तक में एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताया गया है कि एक बार शास्त्रीजी की अलमारी साफ़ की गई और उसमें से अनेक फटे पुराने कुर्ते निकाल दिये गए। लेकिन [[लाल बहादुर शास्त्री|शास्त्रीजी]] ने वे कुर्ते वापस मांगे और कहा, |
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'अब नवम्बर आयेगा, जाड़े के दिन होंगे, तब ये सब काम आयेंगे। ऊपर से कोट पहन लूँगा न।' | 'अब नवम्बर आयेगा, जाड़े के दिन होंगे, तब ये सब काम आयेंगे। ऊपर से कोट पहन लूँगा न।' | ||
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शास्त्रीजी का खादी के प्रति अनुराग ही था कि उन्होंने फटे पुराने समझ हटा दिये गए कुर्तों को सहेजते हुए कहा, | शास्त्रीजी का खादी के प्रति अनुराग ही था कि उन्होंने फटे पुराने समझ हटा दिये गए कुर्तों को सहेजते हुए कहा, | ||
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'ये सब खादी के कपड़े हैं। बड़ी मेहनत से बनाए हैं बीनने वालों ने। इसका एक-एक सूत काम आना चाहिए।' | 'ये सब खादी के कपड़े हैं। बड़ी मेहनत से बनाए हैं बीनने वालों ने। इसका एक-एक सूत काम आना चाहिए।' | ||
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इस पुस्तक के लेखक और शास्त्री जी के पुत्र ने बताया कि शास्त्रीजी की सादगी और किफायत का यह आलम था कि एक बार उन्होंने अपना फटा हुआ कुर्ता अपनी पत्नी को देते हुए कहा, | इस पुस्तक के लेखक और शास्त्री जी के पुत्र ने बताया कि शास्त्रीजी की सादगी और किफायत का यह आलम था कि एक बार उन्होंने अपना फटा हुआ कुर्ता अपनी पत्नी को देते हुए कहा, | ||
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'इनके रूमाल बना दो।' | 'इनके रूमाल बना दो।' | ||
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इस सादगी और किफायत की कल्पना तो आज के दौर के किसी भी राजनीतिज्ञ से नहीं की जा सकती। पुस्तक में कहा गया है, | इस सादगी और किफायत की कल्पना तो आज के दौर के किसी भी राजनीतिज्ञ से नहीं की जा सकती। पुस्तक में कहा गया है, | ||
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'वे क्या सोचते हैं, यह जानना बहुत कठिन था, क्योंकि वे कभी भी अनावश्यक मुंह नहीं खोलते थे। खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में उन्हें जो आनंद मिलता था, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।' | 'वे क्या सोचते हैं, यह जानना बहुत कठिन था, क्योंकि वे कभी भी अनावश्यक मुंह नहीं खोलते थे। खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में उन्हें जो आनंद मिलता था, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।' | ||
− | ;[[ | + | ;[[लाल बहादुर शास्त्री]] से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए [[लाल बहादुर शास्त्री के प्रेरक प्रसंग]] पर जाएँ |
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Latest revision as of 10:54, 13 January 2015
khadi ke prati anurag -lal bahadur shastri
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vivaran | is lekh mean lal bahadur shastri se sanbandhit prerak prasangoan ke liank diye gaye haian. |
bhasha | hiandi |
desh | bharat |
mool shirshak | prerak prasang |
up shirshak | lal bahadur shastri ke prerak prasang |
sankalanakarta | ashok kumar shukla |
'lalabahadur shastri, mere babooji' pustak mean ek ghatana ka zikr karate hue bataya gaya hai ki ek bar shastriji ki alamari saf ki gee aur usamean se anek phate purane kurte nikal diye ge. lekin shastriji ne ve kurte vapas maange aur kaha,
'ab navambar ayega, ja de ke din hoange, tab ye sab kam ayeange. oopar se kot pahan looanga n.'
shastriji ka khadi ke prati anurag hi tha ki unhoanne phate purane samajh hata diye ge kurtoan ko sahejate hue kaha,
'ye sab khadi ke kap de haian. b di mehanat se banae haian binane valoan ne. isaka ek-ek soot kam ana chahie.'
is pustak ke lekhak aur shastri ji ke putr ne bataya ki shastriji ki sadagi aur kiphayat ka yah alam tha ki ek bar unhoanne apana phata hua kurta apani patni ko dete hue kaha,
'inake roomal bana do.'
is sadagi aur kiphayat ki kalpana to aj ke daur ke kisi bhi rajanitijn se nahian ki ja sakati. pustak mean kaha gaya hai,
've kya sochate haian, yah janana bahut kathin tha, kyoanki ve kabhi bhi anavashyak muanh nahian kholate the. khud kasht uthakar doosaroan ko sukhi dekhane mean unhean jo anand milata tha, usaka varnan nahian kiya ja sakata.'
- lal bahadur shastri se ju de any prasang padhane ke lie lal bahadur shastri ke prerak prasang par jaean
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