Difference between revisions of "नागदा उदयपुर"

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[[राजस्थान]], [[उदयपुर]] से 2७ किलोमीटर दूरी पर स्थित [[नागदा]] एक दर्शनीय स्थान है। यह [[उदयपुर एकलिंगजी|एकलिंगजी]] से कुछ पहले स्थित है। नागदा का प्राचीन शहर पहले [[रावल नागादित्‍य]] की राजधानी थी। वर्तमान में यह एक छोटा सा गाँव है। यह गाँव 11वीं शताब्‍दी में बने 'सास-बहू' मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का मूल नाम 'सहस्‍त्रबाहु' था जो कि विकृत होकर सास-बहू हो गया है। यह एक छोटा सा मंदिर है। लेकिन मंदिर की वास्‍तुशैली काफ़ी आकर्षक है।
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[[राजस्थान]], [[उदयपुर]] से 27 किलोमीटर दूरी पर स्थित [[नागदा]] एक दर्शनीय स्थान है। यह [[उदयपुर एकलिंगजी|एकलिंगजी]] से कुछ पहले स्थित है। नागदा का प्राचीन शहर पहले [[रावल नागादित्‍य]] की राजधानी थी। वर्तमान में यह एक छोटा सा गाँव है। यह गाँव 11वीं शताब्‍दी में बने 'सास-बहू' मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का मूल नाम 'सहस्‍त्रबाहु' था जो कि विकृत होकर सास-बहू हो गया है। यह एक छोटा सा मंदिर है। लेकिन मंदिर की वास्‍तुशैली काफ़ी आकर्षक है।
  
नागदा पहले गुहिल शासकों की प्राचीन राजधानी रह चु्का है। 661 ई. (संवत् ७1८) का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। यहाँ के प्राचीन स्मारक समय के साथ नष्ट हो गये होंगे। यहाँ से प्राप्त 1०26 ई. के एक अभिलेख के अनुसार, गुहिल शासक श्रीधर ने यहाँ के कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया था, वर्त्तमान का सास- बहू मंदिर इन्हीं मंदिरों में है। शैलीगत समानता के आधार पर भी ये मंदिर 1०वीं और 11 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की स्थापना सहस्रबाहु नामक राजा के द्वारा करवाई गई थी, लेकिन चूँकि गुहिल वंश के इतिहास में इस नाम से किसी भी शासक की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।
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नागदा पहले गुहिल शासकों की प्राचीन राजधानी रह चु्का है। 661 ई. (संवत् 71८) का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। यहाँ के प्राचीन स्मारक समय के साथ नष्ट हो गये होंगे। यहाँ से प्राप्त 1०26 ई. के एक अभिलेख के अनुसार, गुहिल शासक श्रीधर ने यहाँ के कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया था, वर्त्तमान का सास- बहू मंदिर इन्हीं मंदिरों में है। शैलीगत समानता के आधार पर भी ये मंदिर 1०वीं और 11 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की स्थापना सहस्रबाहु नामक राजा के द्वारा करवाई गई थी, लेकिन चूँकि गुहिल वंश के इतिहास में इस नाम से किसी भी शासक की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।
  
 
गुहिल शासकों के सूर्यवंशी होने के कारण बागदा के इस मंदिर को [[विष्णु]] जी को समर्पित किया गया है। गर्भगृह के पृष्ठभाग की प्रमुख ताख में एक चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा प्रतिष्ठित है। दोनों मंदिरों के बाह्य भाग पर श्रृंगार-रत नर-नारियों का अंकन किया गया है। इस मंदिरों के दायीं ओर के कोने पर एक शक्ति मंदिर निर्मित है, जिस मंदिर में शक्ति के विविध रुपों का अंकन किया गया है।
 
गुहिल शासकों के सूर्यवंशी होने के कारण बागदा के इस मंदिर को [[विष्णु]] जी को समर्पित किया गया है। गर्भगृह के पृष्ठभाग की प्रमुख ताख में एक चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा प्रतिष्ठित है। दोनों मंदिरों के बाह्य भाग पर श्रृंगार-रत नर-नारियों का अंकन किया गया है। इस मंदिरों के दायीं ओर के कोने पर एक शक्ति मंदिर निर्मित है, जिस मंदिर में शक्ति के विविध रुपों का अंकन किया गया है।
  
नागदा के पास ही एक मंदिर समूह एकलिंग या कैलाशपुरी के नाम से जाना जाता है। यहाँ के लकुलीश मंदिर से प्राप्त शिलालेख ९७1 ई. का है और यह सर्वाधिक प्राचीन है। अन्य मंदिर 12वीं शताब्दी के हैं।
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नागदा के पास ही एक मंदिर समूह एकलिंग या कैलाशपुरी के नाम से जाना जाता है। यहाँ के लकुलीश मंदिर से प्राप्त शिलालेख ९71 ई. का है और यह सर्वाधिक प्राचीन है। अन्य मंदिर 12वीं शताब्दी के हैं।
 
[[Category:राजस्थान]][[Category:उदयपुर_के_पर्यटन_स्थल]][[Category:पर्यटन_कोश]]__INDEX__
 
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==सम्बंधित लिंक==
 
==सम्बंधित लिंक==
 
{{उदयपुर के दर्शनीय स्थल}}
 
{{उदयपुर के दर्शनीय स्थल}}

Revision as of 11:14, 11 June 2010

rajasthan, udayapur se 27 kilomitar doori par sthit nagada ek darshaniy sthan hai. yah ekaliangaji se kuchh pahale sthit hai. nagada ka prachin shahar pahale raval nagadith‍y ki rajadhani thi. vartaman mean yah ek chhota sa gaanv hai. yah gaanv 11vian shatabh‍di mean bane 'sas-bahoo' mandir ke lie prasiddh hai. is mandir ka mool nam 'sahash‍trabahu' tha jo ki vikrit hokar sas-bahoo ho gaya hai. yah ek chhota sa mandir hai. lekin mandir ki vash‍tushaili kafi akarshak hai.

nagada pahale guhil shasakoan ki prachin rajadhani rah chuhka hai. 661 ee. (sanvath 718) ka abhilekh is sthan ki prachinata ko pramanit karata hai, yah puratatvik samagri ki shaili ke adhar par utana prachin pratit nahian hota hai. yahaan ke prachin smarak samay ke sath nasht ho gaye hoange. yahaan se prapt 1026 ee. ke ek abhilekh ke anusar, guhil shasak shridhar ne yahaan ke kuchh mandiroan ka nirman karavaya tha, varttaman ka sas- bahoo mandir inhian mandiroan mean hai. shailigat samanata ke adhar par bhi ye mandir 10vian aur 11 vian shatabdi mean nirmit pratit hote haian. kaha jata hai ki in mandiroan ki sthapana sahasrabahu namak raja ke dvara karavaee gee thi, lekin chooanki guhil vansh ke itihas mean is nam se kisi bhi shasak ki charcha nahian ki gee hai. atah yah tarkasangat pratit nahian hota.

guhil shasakoan ke sooryavanshi hone ke karan bagada ke is mandir ko vishnu ji ko samarpit kiya gaya hai. garbhagrih ke prishthabhag ki pramukh takh mean ek chaturbhuj vishnu pratima pratishthit hai. donoan mandiroan ke bahy bhag par shrriangar-rat nar-nariyoan ka aankan kiya gaya hai. is mandiroan ke dayian or ke kone par ek shakti mandir nirmit hai, jis mandir mean shakti ke vividh rupoan ka aankan kiya gaya hai.

nagada ke pas hi ek mandir samooh ekaliang ya kailashapuri ke nam se jana jata hai. yahaan ke lakulish mandir se prapt shilalekh 971 ee. ka hai aur yah sarvadhik prachin hai. any mandir 12vian shatabdi ke haian.

sambandhit liank

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