Difference between revisions of "प्रयोग:शिल्पी3"
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+ | |+'''रचनाऐं''' | ||
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+ | ! '''ये गजरे तारों वाले''' | ||
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+ | |<poem>इस सोते संसार बीच, | ||
+ | जग कर, सज कर रजनी बाले। | ||
+ | कहाँ बेचने ले जाती हो, | ||
+ | ये गजरे तारों वाले? | ||
+ | मोल करेगा कौन, | ||
+ | सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी। | ||
+ | मत कुम्हलाने दो, | ||
+ | सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी॥ | ||
+ | निर्झर के निर्मल जल में, | ||
+ | ये गजरे हिला हिला धोना। | ||
+ | लहर हहर कर यदि चूमे तो, | ||
+ | किंचित् विचलित मत होना॥ | ||
+ | होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित, | ||
+ | लहरों ही में लहराना। | ||
+ | 'लो मेरे तारों के गजरे' | ||
+ | निर्झर-स्वर में यह गाना॥ | ||
+ | यदि प्रभात तक कोई आकर, | ||
+ | तुम से हाय! न मोल करे। | ||
+ | तो फूलों पर ओस-रूप में | ||
+ | बिखरा देना सब गजरे॥</poem> | ||
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− | < | + | ! '''ये गजरे तारों वाले''' |
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+ | |<poem>धूम्र जिसके क्रोड़ में है, उस अनल का हाथ हूँ मैं, | ||
+ | नव प्रभा लेकर चला हूँ, पर जलन के साथ हूँ मैं | ||
+ | सिद्धि पाकर भी, तुम्हारी साधना का.. | ||
+ | ज्वलित क्षण हूँ। | ||
+ | एक दीपक किरण-कण हूँ | ||
+ | |||
+ | व्योम के उर में, अपार भरा हुआ है जो अँधेरा | ||
+ | और जिसने विश्व को, दो बार क्या सौ बार घेरा | ||
+ | उस तिमिर का नाश करने के लिए, | ||
+ | मैं अटल प्रण हूँ। | ||
+ | एक दीपक किरण-कण हूँ। | ||
+ | |||
+ | शलभ को अमरत्व देकर,प्रेम पर मरना सिखाया | ||
+ | सूर्य का संदेश लेकर,रात्रि के उर में समाया | ||
+ | पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी | ||
+ | तुम्हारी ही शरण हूँ। | ||
+ | एक दीपक किरण-कण हूँ।</poem> | ||
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+ | ! '''खोलो प्रियतम खोलो द्वार...''' | ||
+ | |- | ||
+ | |<poem>शिशिर कणों से लदी हुई | ||
+ | कमली के भीगे हैं सब तार | ||
+ | चलता है पश्चिम का मारुत | ||
+ | ले कर शीतलता का भार | ||
+ | |||
+ | अरुण किरण सम कर से छू लो | ||
+ | खोलो प्रियतम खोलो द्वार.... | ||
+ | |||
+ | डरो ना इतना धूल धूसरित | ||
+ | होगा नहीं तुम्हारा द्वार | ||
+ | धो डाले हैं इनको प्रियतम | ||
+ | इन आँखों से आँसू ढ़ार | ||
− | </ | + | अरुण किरण सम कर से छू लो |
+ | खोलो प्रियतम खोलो द्वार...</poem> | ||
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Revision as of 07:08, 2 April 2011
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