Difference between revisions of "मो सउ कोऊ न कहै समझाइ -रैदास"
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पारस मानो ताबो छुए कनक होत नहीं बार।।5।। | पारस मानो ताबो छुए कनक होत नहीं बार।।5।। | ||
परम परस गुरु भेटीऐ पूरब लिखत लिलाट। | परम परस गुरु भेटीऐ पूरब लिखत लिलाट। | ||
− | उनमन मन मन ही मिले छुटकत बजर | + | उनमन मन मन ही मिले छुटकत बजर कपाट।।6।। |
भगत जुगति मति सति करी भ्रम बंधन काटि बिकार। | भगत जुगति मति सति करी भ्रम बंधन काटि बिकार। | ||
सोई बसि रसि मन मिले गुन निरगुन एक बिचार।।७।। | सोई बसि रसि मन मिले गुन निरगुन एक बिचार।।७।। |
Revision as of 11:29, 1 November 2014
chitr:Icon-edit.gif | is lekh ka punarikshan evan sampadan hona avashyak hai. ap isamean sahayata kar sakate haian. "sujhav" |
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mo su kooo n kahai samajhai. |
tika tippani aur sandarbhsanbandhit lekh |