Difference between revisions of "हरिनारायण अग्रहरि"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''हरिनारायण अग्रहरि''', एक [[स्वतंत्रता सेनानी सूची|स्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
Line 1: Line 1:
'''हरिनारायण अग्रहरि''', एक [[स्वतंत्रता सेनानी सूची|स्वतंत्रता संग्राम सेनानी]] व क्रांतिकारी थें, जिन्होंने [[महात्मा गाँधी]] के [[भारत छोड़ो आंदोलन]] मे भाग लिया था।
+
'''हरिनारायण अग्रहरि''' एक [[स्वतंत्रता सेनानी सूची|स्वतंत्रता संग्राम सेनानी]] व क्रांतिकारी थे, जिन्होंने [[महात्मा गाँधी]] के [[भारत छोड़ो आंदोलन]] मे भाग लिया था। ये [[उत्तर प्रदेश]] के [[वाराणसी ज़िला]] के कमालपुर गाँव के निवासी थे। [[भारत छोड़ो आंदोलन]] में [[अगस्त]] [[1942]] को [[बनारस]] के प्रसिद्ध धानापुर थाना कांड में हरिनारायण अग्रहरि तथा अन्य साथी क्रांतिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  
*आप उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिला के कमालपुर गाँव के निवासी थे।
 
  
*भारत छोड़ो आंदोलन मे [[अगस्त]] [[1942]] को [[बनारस]] के प्रसिद्ध धानापुर थाना कांड मे हरिनारायण अग्रहरि तथा अन्य साथी क्रांतिकारियो ने महत्वपूर्ण भुमिका निभाया।
 
  
स्वतंत्रता संग्राम के आखिरी दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘करो या मरो’ के आह्नान पर 16 अगस्त 1942 को महाईच परगना के आन्दोलनकारियों द्वारा जो कुछ किया गया वह कामयाबी और बलिदान के नजरिए से संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) व भारत के बड़े कांडों में से एक था. पर इस कांड की उतनी चर्चा नहीं हो पायी जितनी होनी चाहिए थी. इसकी प्रमुख वजह यह है कि खुफिया विभाग द्वारा ब्रिटिश गवर्नर को जो रिपोर्ट भेजी गयी उसमें धानापुर (वाराणसी) के स्थान पर चानापुर दर्ज (गाजीपुर) था।
 
  
 
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
 
इतिहासकार डॉ. जयराम सिंह बताते हैं कि ‘‘राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली की होम पोलिटिकल फाईल, 1942 में भी चानापुर (गाजीपुर) का उल्लेख है। जिसका संसोधन 1992 में किया गया। 16 अगस्त 1942 का धानापुर थाना कांड इस वजह से भी चर्चित नहीं हो पाया।’’
 
 
 
वाराणसी से 60 किलोमीटर पूरब में बसा धानापुर सन् 1942 में यातायात के नजरिए से काफी दुरूह स्थान था। बारिश में कच्ची सड़कें कीचड़ से सराबोर हो जाया करतीं थीं. गंगा नदी बाढ़ की वजह से दुर्लघ्य हो जाया करती थी। करो या मरो के उद्घोष के साथ 08 और 13 अगस्त 1942 को वाराणसी में छात्रों और नागरिकों ने ब्रिटिश हुकूमत के ताकत को पूरी तरह से जमींदोज करके सरकारी भवनों पर तिरंगा फहरा दिया था.
 
 
 
जैसे ही यह खबर देहात अंचल में पहुंची तो वहां की आंदोलित जनता भी आजादी के सपनों में डूबकर समस्त सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने के लिए उत्सुक हो गयी।
 
 
 
 
 
महाईच परगना में सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने का कार्यक्रम कामता प्रसाद विद्यार्थी के नेतृत्व में 09 अगस्त 1942 से ही शुरू हो गया था। 12 अगस्त 1942 को गुरेहूं सर्वे कैम्प पर, 12 अगस्त 1942 को चन्दौली के तहसील, थाना, डाकघर समेत सकलडीहां रेलवे स्टेशन पर तथा 15 अगस्त 1942 की रात में धीना रेलवे स्टेशन पर धावा बोलने के बाद महाईच परगना में केवल धानापुर ही ऐसी जगह थी जहां सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराना बाकी था।
 
 
 
अब आजादी का ज्वर लोगों को कंपा रहा था.  लोग स्वतंत्र होने के लिए उतावले थे तथा कामता प्रसाद विद्यार्थी महाईच के गांवों में घूम-घुम कर लोगों को प्रोत्साहित कर रहे थे। 15 अगस्त 1942 को राजनारायण सिंह व केदार सिंह ने धानापुर पहुंच कर थानेदार को शान्तिपूर्वक तिरंगा फहराने के लिए समझाया मगर ब्रिटिश गुलामी में जकड़ा थानेदार किसी भी हाल में तिरंगा फहराने देने को राजी नहीं हुआ। तब जाकर 16 अगस्त 1942 को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार महाईच परगना के लोग सुबह से ही कालिया साहब की छावनी पर एकत्र होने लगे। सरकारी आंकड़े के मुताबिक आन्दोलनकारियों की संख्या प्रातः 11.00 बजे तक एक हजार तथा तीन बजे तक पांच हजार तक थी। तीन बजे के करीब विद्यार्थी जी, राजनारायण सिंह, मन्नी सिंह, हरिनारायण अग्रहरी, हरि सिंह, मुसाफिर सिंह, भोला सिंह, राम प्रसाद मल्लह आदि के नेतृत्च में करीब पांच हजार लोगें का समूह थाने की तरफ बढ़ा।
 
 
 
बाजार में विद्यार्थी जी ने लोगों से निवेदन किया कि वे अपनी-अपनी लाठियां रख कर खाली हाथ थाने पर झण्डा फहराने चलें क्योंकि हमारा आन्दोलन अहिंसक है। पलक झपकते ही आजादी के खुमार में आह्लादित जनता थाने के सामने पाकड़ के के सामने पहुंच गयी। महाईच परगना के सभी गांव के चौकीदार लाल पगड़ी बांधे बावर्दी लाठियों के साथ तैनात थे. उनके ठीक पीछे 7-8 सिपाही बन्दुकें ताने खड़े थे और उनका नेतृत्व थानेदार अनवारूल हक नंगी पिस्तौल लिए नीम के पेड़ के नीचे चक्कर काटकर कर रहा था। थाने का लोहे का मुख्य गेट बन्द था। राजनारायण सिंह ने थानेदार से शान्तिपूर्वक झण्डा फहराने का निवेदन किया, लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। थानेदार ने आन्दोलनकारियों को चेतावनी देते हुए कहा कि झण्डा फहराने की जो जुर्रत करेगा उसे गोलियों से भून दिया जायेगा। इतना सुनना था कि कामता प्रसाद विद्यार्थी ने लोगों को
 
 
 
 
 
 
 
ललकारते हुए कहा कि ‘आगे बढ़ो और तिरंगा फहराओ, आने वाले दिनों में नायक वही होगा जो झण्डा फहरायेगा। इसके बाद वे स्वयं तिरंगा लेकर अपने साथियों के साथ थाना भवन की तरफ बढ़े।
 
 
 
कामता प्रसाद विद्यार्थी के साथ रघुनाथ सिंह, हीरा सिंह, महंगू सिंह, रामाधार कुम्हार, हरिनराय अग्रहरी, राम प्रसाद मल्लाह व षिवमंगल यादव आदि थे। ज्यों ही इन लोगों ने लोहे की सलाखेदार गेट कूद कर थाने में कदम रखा त्यों ही थानेदार ने सिपाहीयों को आदेष दिया फायर और वह पिस्तौल से हमला बोल दिया। गोली विद्यार्थी जी के बगल से होती हुई रघुनाथ सिंह को जा लगी। पलक झपकते ही विद्यार्थी जी ने झण्डा फहरा दिया। बन्दूकें गरज रहीं थीं तथा गोलियां भारत मां के वीर सपूतों के सीनों को चीरती हुई निकल रहीं थीं जिससे कि सीताराम कोईरी, रामा सिंह, विष्वनाथ कलवार, सत्यनारायण सिंह आदि गम्भीर रूप से घायल हुए तथा हीरा सिंह व रघुनाथ सिंह मौके पर ही शहीद हो गये।
 
 
 
अब तक की घटना जनता मूक दर्शक बनकर देख रही थी मगर भारत माता के वीर सपूतों को तड़पता देख जनता उग्र हो गयी। राजनारायण सिंह का आदेश पाकर हरिनारायण अग्रहरी ने चालुकता पूर्वक थानेदार को पीछे से बाहों में जकड़ लिया तथा पास ही खड़े शिवमंगल यादव ने थानेदार के सिर पर लाठी का भरपूर वार किया, जिससे तिलमिलाया थानेदार अपने आवास की तरफ भागा, मगर आजादी के मतवालेपन में उग्र जनता ने उसे वहीं धराशायी कर दिया। अब तो आन्दोलन अहिंसक हो चुका था उसकी धधकती ज्वाला में हेड कांस्टेबल अबुल खैर, मुंशी वसीम अहमद और कांस्टेबल अब्बास अहमद को मौत के घाट उतार दिया। बाकी सिपाही व चौकीदार स्थानीय होने की वजह से भागने में कामयाब हुए।
 
 
 
इसके बाद उग्र क्रान्तिकारियों ने सभी सरकारी कागजातों और सामानों व टेबल-कुर्सियों को इकठ्ठा कर थानेदार व तीन सिपाहियों की लाशों को उसी में रखकर जला दिया। इसके बाद आजादी के मतवालों का जूलूस काली हाउस व पोस्ट ऑफिस पर भी तिरंगा फहरा दिया। तकरीबन रात आठ बजे क्रान्तिकारियों ने अधजली लाशों को बोरे में भर कर गंगा की उफनती धार में प्रवाहित कर दिया।
 
 
 
बरसात की काली रात में गंभीर रूप से घायल महंगू सिंह को इलाज के वास्ते पालकी पर बिठा कर कामता प्रसाद विद्यार्थी व अन्य लोग 13 किमी0 दूर सकलडीहां स्थित डिस्पेंसरी पहुंचे मगर भारत माता के वीर सपूत महंगू सिंह ने दम तोड़ दिया। 17 व 18 अगस्त तक धानापुर समेत पूरी महाईच की जनता ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से आजाद थी। 17 अगस्त तक इस महान कांड की चर्चा प्रदेश व देश में गूंज उठी।
 
 
 
इस तरह याद किए जा रहे हैं नायक
 
 
 
18 अगस्त को डी.आई.जी. का दौरा हुआ. चूंकि मौसम बारिश का था इसलिए सैनिकों को पहुंचने में देरी हुई। सैनिकों के पहुंचते ही पूरे महाईच में कोहराम मच गया। रात के वक्त छापों का दौर शुरू हुआ। लोगों को पकड़ कर धानापुर लाया जाता तथा बनारस के लिए चालान कर दिया जाता। इस तरह तीन सौ लोगें का चालान किय गया और उन्हें बुरी तरह प्रताडि़त भी। धानापुर थाना कांड के ठीक नौ दिन बाद 25 अगस्त सन् 1942 को नग्गू साहू के मकान में अस्थायी रूप से पुनः थाना स्थापित किया गया। इस बीच जले हुए थाना परिसर की मरम्मत करा कर 06 सितम्बर सन् 1942 को थाना फिर से अपनी जगह पर बहाल किया गया।
 
 
 
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}
 
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}
[[Category:जीवनी साहित्य]]
 
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]]
 
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]]
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]
 
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

Latest revision as of 12:43, 16 December 2013

harinarayan agrahari ek svatantrata sangram senani v kraantikari the, jinhoanne mahatma gaandhi ke bharat chho do aandolan me bhag liya tha. ye uttar pradesh ke varanasi zila ke kamalapur gaanv ke nivasi the. bharat chho do aandolan mean agast 1942 ko banaras ke prasiddh dhanapur thana kaand mean harinarayan agrahari tatha any sathi kraantikariyoan ne mahatvapoorn bhoomika nibhaee.



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

bahari k diyaan

sanbandhit lekh