Category:अयोध्या काण्ड
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- करि प्रनाम तिन्ह रामु निहारे
- करि प्रनामु पूँछहिं जेहि तेही
- करि प्रनामु सब कहँ कर जोरे
- करि प्रबोधु मुनिबर कहेउ
- करि बिचारु मन दीन्ही ठीका
- करि बिलाप सब रोवहिं रानी
- करुनामय मृदु राम सुभाऊ
- करुनासिंधु सुबंधु के
- कलपबेलि जिमि बहुबिधि लाली
- कवनें अवसर का भयउ
- कहइ करहु किन कोटि उपाया
- कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक
- कहउँ जान बन तौ बड़ि हानी
- कहउँ साँचु सब सुनि पतिआहू
- कहउँ सुभाउ सत्य सिव साखी
- कहत कूप महिमा सकल
- कहत धरम इतिहास सप्रीती
- कहत राम गुन गन अनुरागे
- कहत राम गुन सील सुभाऊ
- कहत सप्रेम नाइ महि माथा
- कहति न सीय सकुचि मन माहीं
- कहब सँदेसु भरत के आएँ
- कहहिं एक अति भल नरनाहू
- कहहिं झूठि फुरि बात बनाई
- कहहिं परसपर पुर नर नारी
- कहहिं परसपर भा बड़ काजू
- कहहिं भरतु मुनि कहा सो कीन्हे
- कहहिं लहेउ एहिं जीवन लाहू
- कहहिं सनेह मगन मृदु बानी
- कहहिं सप्रेम एक एक पाहीं
- कहहिं सुसेवक बारहिं बारा
- कहहु तात केहि भाँति
- कहहु तात जननी बलिहारी
- कहहु सुपेम प्रगट को करई
- कहि अनेक बिधि कथा पुरानी
- कहि कहि कोटिक कथा प्रसंगा
- कहि कहि कोटिक कपट कहानी
- कहि न जाइ कछु नगर बिभूती
- कहि न जाइ कछु हृदय बिषादू
- कहि न सकत कछु चितवत ठाढ़े
- कहि प्रनामु कछु कहन लिय
- कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई
- कहि प्रिय बचन बिबेकमय
- कहि सप्रेम बस कथाप्रसंगू
- कहि सप्रेम मृदु बचन सुहाए
- कहि सबु मरमु धरमु भल भाषा
- कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई
- कहेउ कृपाल भानुकुलनाथा
- कहेउ भूप मुनिराज कर
- कहेउ लेहु सबु तिलक समाजू
- कहौं कहावौं का अब स्वामी
- का सुनाइ बिधि काह सुनावा
- कान मूदि कर रद गहि जीहा
- काने खोरे कूबरे कुटिल
- काम कोह मद मान न मोहा
- कामद भे गिरि राम प्रसादा
- कारन कवन भरतु बन जाहीं
- कारन तें कारजु कठिन
- काह करौं सखि सूध सुभाऊ
- काह न पावकु जारि
- काहुहि दोसु देहु जनि ताता
- किए अमित उपदेस
- किएँ जाहिं छाया जलद
- कियउ निषादनाथु अगुआईं
- कीजिअ गुर आयसु अवसि
- कीन्ह अनुग्रह अमित
- कीन्ह निमज्जनु तीरथराजा
- कीन्ह निषाद दंडवत तेही
- कीन्ह सप्रेम प्रनामु बहोरी
- कीन्हि मातु मिस काल कुचाली
- कीरति बिधु तुम्ह कीन्ह अनूपा
- कुबरिहि रानि प्रानप्रिय जानी
- कुबरीं करि कबुली कैकेई
- कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी
- कुल कपाट कर कुसल करम के
- कुल कलंकु जेहिं जनमेउ मोही
- कुलिस कठोर सुनत कटु बानी
- कुस कंटक काँकरीं कुराईं
- कुस कंटक मग काँकर नाना
- कुस साँथरी निहारि सुहाई
- कुसल प्रस्न करि आसन दीन्हे
- कुसल मूल पद पंकज पेखी
- कूबर टूटेउ फूट कपारू
- कृपा अनुग्रहु अंगु अघाई
- कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ
- कृपाँ भलाईं आपनी
- कृपासिंधु प्रभु होहिं दुखारी
- कृपासिंधु बोले मुसुकाई
- कृपासिंधु लखि लोग दुखारे
- कृपासिंधु सनमानि सुबानी
- केवट कीन्हि बहुत सेवकाई
- केहि हेतु रानि रिसानि
- कै तापस तिय कानन जोगू
- कैकइ जठर जनमि जग माहीं
- कैकइ सुअन जोगु जग जोई
- कैकयनंदिनि मंदमति
- कैकयसुता सुनत कटु बानी
- कैकेई भव तनु अनुरागे
- कैकेई सुअ कुटिलमति राम
- कैकेई हरषित एहि भाँती
- को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ
- को प्रभु सँग मोहि चितवनिहारा
- को साहिब सेवकहि नेवाजी
- कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन
- कोउ कह रहन कहिअ नहिं काहू
- कोउ किछु कहई न कोउ किछु पूँछा
- कोक तिलोक प्रीति अति करिही
- कोटि मनोज लजावनिहारे
- कोप समाजु साजि सबु सोई
- कोपभवन सुनि सकुचेउ राऊ
- कोल किरात बेष सब आए
- कोल किरात भिल्ल बनबासी
- कोसलपति गति सुनि जनकौरा
- कौसल्या कह दोसु न काहू
- कौसल्या कह धीर धरि
- कौसल्या के बचन सुनि
- कौसल्या धरि धीरजु कहई
- कौसल्या सम सब महतारी
- कौसल्याँ नृपु दीख मलाना
- कौसिकादि मुनि सचिव समाजू
ख
ग
- गंग बचन सुनि मंगल मूला
- गइ मुरुछा तब भूपति जागे
- गइ मुरुछा रामहि सुमिरि
- गए अवध चर भरत
- गए लखनु जहँ जानकिनाथू
- गए सुमंत्रु तब राउर माहीं
- गयउ सहमि नहिं कछु कहि आवा
- गरइ गलानि कुटिल कैकेई
- गहहु घाट भट समिटि सब
- गहि गुन पय तजि अवगुण बारी
- गहि पद लगे सुमित्रा अंका
- गा चह पार जतनु हियँ हेरा
- गाँव गाँव अस होइ अनंदू
- गारीं सकल कैकइहि देहीं
- गावहिं मंगल कोकिलबयनीं
- गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा
- गुर अनुरागु भरत पर देखी
- गुर गुरतिय पद बंदि प्रभु
- गुर नृप भरत सभा अवलोकी
- गुर पद कमल प्रनामु
- गुर पितु मातु बंधु सुर साईं
- गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें
- गुर पितु मातु स्वामि हित बानी
- गुर बिबेक सागर जगु जाना
- गुर श्रुति संमत धरम
- गुर सन कहब सँदेसु
- गुर सन कहि बरषासन दीन्हे
- गुर समाज भाइन्ह सहित
- गुरतिय पद बंदे दुहु भाईं
- गुरहि देखि सानुज अनुरागे
- गुरु के बचन सचिव अभिनंदनु
- गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई
- गुहँ बोलाइ पाहरू प्रतीती
- गुहँ सँवारि साँथरी डसाई
- गूढ़ कपट प्रिय बचन
- गे नहाइ गुर पहिं रघुराई
- ग्यान निधान सुजान
- ग्रह ग्रहीत पुनि बात
- ग्राम निकट जब निकसहिं जाई
च
- चंदन अगर भार बहु आए
- चंदु चवै बरु अनल
- चक्क चक्कि जिमि पुर नर नारी
- चतुर गँभीर राम महतारी
- चरन चाँपि कहि कहि मृदु बानी
- चरन राम तीरथ चलि जाहीं
- चरनपीठ करुनानिधान के
- चरफराहिं मग चलहिं न घोरे
- चलत न देखन पायउँ तोही
- चलत पयादें खात फल
- चलत रामु लखि अवध अनाथा
- चलन चहत बन जीवननाथू
- चले निषाद जोहारि जोहारी
- चले सखा कर सों कर जोरें
- चले समीर बेग हय हाँके
- चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई
- चहत न भरत भूपतहि भोरें
- चामर चरम बसन बहु भाँती
- चारु चरन नख लेखति धरनी
- चारु बिचित्र पबित्र बिसेषी
- चाहिअ कीन्हि भरत पहुनाई
- चित्रकूट के बिहग मृग
- चित्रकूट गिरि करहु निवासू
- चित्रकूट महिमा अमित
- चित्रकूट रघुनंदनु छाए
- चित्रकूट सुचि थल तीरथ बन
- चिदानंदमय देह तुम्हारी
- चिरजीवी मुनि ग्यान बिकल जनु
- चुपहिं रहे रघुनाथ सँकोची
- चौकें चारु सुमित्राँ पूरी