Difference between revisions of "Template:साप्ताहिक सम्पादकीय"
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{| style="background:transparent; width:100%" | {| style="background:transparent; width:100%" | ||
− | |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[ | + | |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[सफलता का शॉर्ट-कट -आदित्य चौधरी|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font> |
|- | |- | ||
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}} | {{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}} | ||
Line 6: | Line 6: | ||
|- valign="top" | |- valign="top" | ||
| | | | ||
− | <center>[[ | + | <center>[[सफलता का शॉर्ट-कट -आदित्य चौधरी|सफलता का शॉर्ट-कट]]</center> |
− | |||
<poem> | <poem> | ||
− | + | जो सफलता का मंच है वह बीसवीं सीढ़ी चढ़ कर मिलेगा और इस मंच पर हम उन्नीस सीढ़ी चढ़ने के बाद भी नहीं पहुँच सकते क्योंकि बीसवीं तो ज़रूरी ही है। अब एक बात यह भी होती है कि उन्नीसवीं सीढ़ी से नीचे देखते हैं तो लगता है कि हमने कितनी सारी सीढ़ियाँ चढ़ ली हैं और न जाने कितनी और भी चढ़नी पड़ेंगी। इसलिए हताश हो जाना स्वाभाविक ही होता है। जबकि हम मात्र एक सीढ़ी नीचे ही होते हैं। ये आख़िरी सीढ़ी कोई भी कभी भी हो सकती है क्योंकि सफलता कभी आती हुई नहीं दिखती सिर्फ़ जाती हुई दिखती है। [[सफलता का शॉर्ट-कट -आदित्य चौधरी|...पूरा पढ़ें]] | |
</poem> | </poem> | ||
<center> | <center> | ||
Line 15: | Line 14: | ||
|- | |- | ||
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] → | | [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] → | ||
+ | | [[शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र -आदित्य चौधरी|शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र]] | ||
| [[शर्मदार की मौत -आदित्य चौधरी|शर्मदार की मौत]] | | [[शर्मदार की मौत -आदित्य चौधरी|शर्मदार की मौत]] | ||
− | |||
|} | |} | ||
</center> | </center> |
Revision as of 12:01, 23 August 2017
|