Difference between revisions of "प्रियप्रवास दशम सर्ग"
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निपट-नीरव-गेह न था हुआ। | निपट-नीरव-गेह न था हुआ। | ||
− | + | वरन् हो वह भी बहु-मौन ही। | |
श्रवण था करता बलवीर की। | श्रवण था करता बलवीर की। | ||
सुखकरी कथनीय गुणावली॥11॥ | सुखकरी कथनीय गुणावली॥11॥ | ||
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हा! यों मेरे सुख-सदना को कौन क्यों है गिराता। | हा! यों मेरे सुख-सदना को कौन क्यों है गिराता। | ||
वैसे प्यारे-दिवस अब मैं क्या नहीं पा सकूँगी। | वैसे प्यारे-दिवस अब मैं क्या नहीं पा सकूँगी। | ||
− | हा! क्या मेरी न अब | + | हा! क्या मेरी न अब दु:ख की यामिनी दूर होगी॥47॥ |
ऊधो मेरा हृदय-तल था एक उद्यान-न्यारा। | ऊधो मेरा हृदय-तल था एक उद्यान-न्यारा। | ||
Line 328: | Line 328: | ||
मेरा प्यारा-तनय अति ही भव्य देता बना था। | मेरा प्यारा-तनय अति ही भव्य देता बना था। | ||
आते हैं वे ब्रज-अवनि में आज भी किन्तु ऊधो। | आते हैं वे ब्रज-अवनि में आज भी किन्तु ऊधो। | ||
− | दे जाते हैं परम | + | दे जाते हैं परम दु:ख औ वेदना हैं बढ़ाते॥59॥ |
कैसा-प्यारा जनम दिन था धूम कैसी मची थी। | कैसा-प्यारा जनम दिन था धूम कैसी मची थी। | ||
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विवुधा ऊद्धव के गृह-त्याग से। | विवुधा ऊद्धव के गृह-त्याग से। | ||
− | परि-समाप्त हुई | + | परि-समाप्त हुई दु:ख की कथा। |
पर सदा वह अंकित सी रही। | पर सदा वह अंकित सी रही। | ||
हृदय-मंदिर में हरि-विधेय के॥97॥ | हृदय-मंदिर में हरि-विधेय के॥97॥ |
Latest revision as of 07:40, 7 November 2017
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tri-ghatika rajani gat thi huee. |
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tika tippani aur sandarbh
bahari k diyaan
sanbandhit lekh