Difference between revisions of "कुल"

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कुल ऐसा समूह है जिसके सदस्यों में रक्तसंबंध हो, जो एक परंपरागत वंशानुक्रम बंधन को स्वीकार करते हों, भले ही ये मातृरेखीय हों या पितृरेखीय, पर जो वास्तविक पीढ़ियों के संबंधों को बतलाने में हमेशा असमर्थ रहें। एक कुल के व्यक्ति [[माता]] के कुल से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को मातृकुल कहा जाता है। रक्तसंबंधी पीढ़ियों के संबंध को स्पष्ट रूप से बतला सकने वाले समूह को वंश कहा जाता है। मर्डाक ने कुल के लिए [[अंग्रेज़ी]] में 'सिब' शब्द का प्रयोग किया है। मर्डाक के पहले अन्य मानवशास्त्रियों ने 'सिब' का अन्य अर्थों में भी प्रयोग किया था। वंश की तुलना में कुल शब्द की अस्पष्टता मर्डाक के 'सिब' शब्द के प्रयोग के अनुरूप ही हैं।
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कुल ऐसा समूह है जिसके सदस्यों में रक्तसंबंध हो, जो एक परंपरागत वंशानुक्रम बंधन को स्वीकार करते हों, भले ही ये मातृरेखीय हों या पितृरेखीय, पर जो वास्तविक पीढ़ियों के संबंधों को बतलाने में हमेशा असमर्थ रहें। रक्तसंबंधी पीढ़ियों के संबंध को स्पष्ट रूप से बतला सकने वाले समूह को वंश कहा जाता है। मर्डाक ने कुल के लिए [[अंग्रेज़ी]] में 'सिब' शब्द का प्रयोग किया है। मर्डाक के पहले अन्य मानवशास्त्रियों ने 'सिब' का अन्य अर्थों में भी प्रयोग किया था। वंश की तुलना में कुल शब्द की अस्पष्टता मर्डाक के 'सिब' शब्द के प्रयोग के अनुरूप ही हैं।
  
एक कुल के व्यक्ति [[पिता]] से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को पितृकुल कहा जाता है। इसलिए ये दोनों समूह क्रमश: पितृरेखीय और मातृरेखीय कहलाते हैं। पितृकुलों में संपति के उत्तराधिकारी के नियम के अनुसार पिता से [[पुत्र]] को संपति का उत्तराधिकार मिलता है।
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एक कुल के व्यक्ति [[पिता]] से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को [[पितृकुल]] कहा जाता है। एक कुल के व्यक्ति [[माता]] के कुल से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को [[मातृकुल]] कहा जाता है। इसलिए ये दोनों समूह क्रमश: पितृरेखीय और मातृरेखीय कहलाते हैं। पितृकुलों में संपति के उत्तराधिकारी के नियम के अनुसार पिता से [[पुत्र]] को संपति का उत्तराधिकार मिलता है।
 
==बहिर्विवाह==
 
==बहिर्विवाह==
 
अन्य रक्तसंबंधी एकरेखीय समूहों की भाँति कुल में भी बहिर्विवाह के नियम का पालन होता हैं। सामान्य रूप से एक कुल में भी अनेक वंश होते हैं, इसीलिये कुल के बाहर [[विवाह]] करने का तात्पर्य वंश के बाहर भी विवाह करना है। कुछ समाजों में वंश होते हैं पर कुल नहीं होते और कुछ समाजों में वंश और कुल के बीच में उपकुल भी होते हैं।
 
अन्य रक्तसंबंधी एकरेखीय समूहों की भाँति कुल में भी बहिर्विवाह के नियम का पालन होता हैं। सामान्य रूप से एक कुल में भी अनेक वंश होते हैं, इसीलिये कुल के बाहर [[विवाह]] करने का तात्पर्य वंश के बाहर भी विवाह करना है। कुछ समाजों में वंश होते हैं पर कुल नहीं होते और कुछ समाजों में वंश और कुल के बीच में उपकुल भी होते हैं।

Revision as of 05:17, 25 May 2011

chitr:Icon-edit.gif is lekh ka punarikshan evan sampadan hona avashyak hai. ap isamean sahayata kar sakate haian. "sujhav"

kul aisa samooh hai jisake sadasyoan mean raktasanbandh ho, jo ek paranparagat vanshanukram bandhan ko svikar karate hoan, bhale hi ye matrirekhiy hoan ya pitrirekhiy, par jo vastavik pidhiyoan ke sanbandhoan ko batalane mean hamesha asamarth rahean. raktasanbandhi pidhiyoan ke sanbandh ko spasht roop se batala sakane vale samooh ko vansh kaha jata hai. mardak ne kul ke lie aangrezi mean 'sib' shabd ka prayog kiya hai. mardak ke pahale any manavashastriyoan ne 'sib' ka any arthoan mean bhi prayog kiya tha. vansh ki tulana mean kul shabd ki aspashtata mardak ke 'sib' shabd ke prayog ke anuroop hi haian.

ek kul ke vyakti pita se apani anugatata batalate haian to aise samooh ko pitrikul kaha jata hai. ek kul ke vyakti mata ke kul se apani anugatata batalate haian to aise samooh ko matrikul kaha jata hai. isalie ye donoan samooh kramash: pitrirekhiy aur matrirekhiy kahalate haian. pitrikuloan mean sanpati ke uttaradhikari ke niyam ke anusar pita se putr ko sanpati ka uttaradhikar milata hai.

bahirvivah

any raktasanbandhi ekarekhiy samoohoan ki bhaanti kul mean bhi bahirvivah ke niyam ka palan hota haian. samany roop se ek kul mean bhi anek vansh hote haian, isiliye kul ke bahar vivah karane ka tatpary vansh ke bahar bhi vivah karana hai. kuchh samajoan mean vansh hote haian par kul nahian hote aur kuchh samajoan mean vansh aur kul ke bich mean upakul bhi hote haian.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh