Difference between revisions of "भक्तिरसामृतसिन्धु"

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भक्ति रसामृत सिन्धु और उज्ज्वल नीलमणि रूप गोस्वामी के सर्व प्रभान रस-ग्रन्थ हैं। भक्ति रसामृत सिन्धु की रचना रूप गोस्वामी ने कई वर्षों में की। इसकी रचना में बहुत बड़ा हाथ सनातन गोस्वामी का भी है। इससे सम्बन्धित तत्त्व और सिद्धान्त की रूपरेखा उनके परामर्श से ही तैयार की गयी।<ref>सप्त गोस्वामी: पृ. 195</ref> इसमें भक्तिरस का जैसा गूढ़, सूक्ष्म, संयत, सर्वागीण, विद्वतापूर्ण और प्रामाणिक विवेचन है, वैसा अन्यत्र कहीं भी नहीं हैं। इसकी प्रामाणिकता और विद्वत्तापूर्ण शैली का पता इस बात से चलता है कि इसमें [[महाभारत]], [[रामायण]], [[गीता]], [[हरिवंश]], [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]], अन्य [[पुराण]] और उपपुराण, रसशास्त्र काव्य-शास्त्रादि से 372 बार प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं। इसमें भक्ति के स्वरूप, प्रकार, अन्तराय, सोपान, और प्रत्येक सोपान के लक्षणादि का वर्णन कर प्रथम बार उसका सर्वांगीण, वैज्ञानिक निरूपण किया गया है। पुष्पिका के अनुसार इस ग्रन्थ की रचना सन 1549 में हुई है।
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भक्ति रसामृत सिन्धु और उज्ज्वल नीलमणि रूप गोस्वामी के सर्व प्रभान रस-ग्रन्थ हैं। भक्ति रसामृत सिन्धु की रचना रूप गोस्वामी ने कई वर्षों में की। इसकी रचना में बहुत बड़ा हाथ सनातन गोस्वामी का भी है। इससे सम्बन्धित तत्त्व और सिद्धान्त की रूपरेखा उनके परामर्श से ही तैयार की गयी।<ref>सप्त गोस्वामी: पृ. 195</ref> इसमें भक्तिरस का जैसा गूढ़, सूक्ष्म, संयत, सर्वागीण, विद्वतापूर्ण और प्रामाणिक विवेचन है, वैसा अन्यत्र कहीं भी नहीं हैं। इसकी प्रामाणिकता और विद्वत्तापूर्ण शैली का पता इस बात से चलता है कि इसमें [[महाभारत]], [[रामायण]], [[गीता]], [[हरिवंश पुराण|हरिवंश]], [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]], अन्य [[पुराण]] और उपपुराण, रसशास्त्र काव्य-शास्त्रादि से 372 बार प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं। इसमें भक्ति के स्वरूप, प्रकार, अन्तराय, सोपान, और प्रत्येक सोपान के लक्षणादि का वर्णन कर प्रथम बार उसका सर्वांगीण, वैज्ञानिक निरूपण किया गया है। पुष्पिका के अनुसार इस ग्रन्थ की रचना सन 1549 में हुई है।
  
  

Revision as of 11:10, 5 July 2011

bhakti rasamrit sindhu aur ujjval nilamani roop gosvami ke sarv prabhan ras-granth haian. bhakti rasamrit sindhu ki rachana roop gosvami ne kee varshoan mean ki. isaki rachana mean bahut b da hath sanatan gosvami ka bhi hai. isase sambandhit tattv aur siddhant ki rooparekha unake paramarsh se hi taiyar ki gayi.[1] isamean bhaktiras ka jaisa goodh, sookshm, sanyat, sarvagin, vidvatapoorn aur pramanik vivechan hai, vaisa anyatr kahian bhi nahian haian. isaki pramanikata aur vidvattapoorn shaili ka pata is bat se chalata hai ki isamean mahabharat, ramayan, gita, harivansh, shrimadbhagavat, any puran aur upapuran, rasashastr kavy-shastradi se 372 bar praman prastut kiye gaye haian. isamean bhakti ke svaroop, prakar, antaray, sopan, aur pratyek sopan ke lakshanadi ka varnan kar pratham bar usaka sarvaangin, vaijnanik niroopan kiya gaya hai. pushpika ke anusar is granth ki rachana san 1549 mean huee hai.



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. sapt gosvami: pri. 195