Difference between revisions of "ईस्ट इंडिया कम्पनी"

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ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1600 ई. के अन्तिम दिन [[महारानी एलिजाबेथ प्रथम]] के एक घोषणापत्र द्वारा हुई। यह लन्दन के व्यापारियों की कम्पनी थी, जिसे पूर्व में व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया गया।
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#REDIRECT[[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]]
====व्यापार के लिए संघर्ष====
 
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कम्पनी ने सबसे पहले व्यापार की शुरूआत मसाले वाले द्वीपों से की। 1608 ई. में उसका पहला व्यापारिक पोत [[सूरत]] पहुँचा, परन्तु [[पुर्तग़ाल|पुर्तग़ालियों]] के प्रतिरोध और शत्रुतापूर्ण रवैये ने कम्पनी को भारत के साथ सहज ही व्यापार शुरू नहीं करने दिया। पुर्तग़ालियों से निपटने के लिए अंग्रेज़ों को [[डच ईस्ट इण्डिया]] कम्पनी से सहायता और समर्थन मिला और दोनों कम्पनियों ने एक साथ पुर्तग़ालियों से अरसे तक जमकर तगड़ा मोर्चा लिया। 1612 ई. में [[कैण्टन बेस्टन]] के नेतृत्व में अंग्रेज़ों के एक जहाज़ी बेड़े ने पुर्तग़ाली हमले को कुचल दिया और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सूरत में व्यापार शुरू कर दिया। 1613 ई. में कम्पनी को एक शाही फ़रमान मिला और सूरत में व्यापार करने का उसका अधिकार सुरक्षित हो गया। 1622 ई. में अंग्रेज़ों ने [[ओर्मुज]] पर अधिकार कर लिया, जिसके फलस्वरूप वे पुर्तग़ालियों के प्रतिशोध या आक्रमण से पूरी तरह सुरक्षित हो गये।
 
====कम्पनी की सफलताएँ====
 
1615-18 ई. में सम्राट [[जहाँगीर]] के समय ब्रिटिश नरेश [[जेम्स प्रथम]] के राजदूत [[सर टामस रो]] ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए कुछ विशेषाधिकार प्राप्त कर लिये। इसके शीघ्र बाद ही कम्पनी ने [[मसुलीपट्टम]] और [[बंगाल]] की खाड़ी स्थित [[अरमा गाँव]] नामक स्थानों पर कारख़ानें स्थापित किये। किन्तु कम्पनी को पहली महत्वपूर्ण सफलता मार्च, 1640 ई. में मिली, जब उसने [[विजयनगर]] शासकों के प्रतिनिधि [[चन्द्रगिरि]] के राजा से आधुनिक [[मद्रास|चेन्नई]] नगर का स्थान प्राप्त कर लिया। जहाँ पर उन्होंने शीघ्र ही [[सेण्ट जार्ज क़िले]] का निर्माण किया। 1661 ई. में ब्रिटेन के राजा [[चार्ल्स द्वितीय]] को पुर्तग़ाली राजकुमारी से विवाह के दहेज में [[मुम्बई|बम्बई]] का टापू मिल गया। चार्ल्स ने 1668 ई. में इसको केवल 10 पाउण्ड सालाना किराये पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया। इसके बाद 1669 और 1677 ई. के बीच कम्पनी के गवर्नर [[जेराल्ड आंगियर]] ने आधुनिक बम्बई नगर की नींव डाली।
 
====कोलकाता नगर की स्थापना====
 
1687 ई. में कम्पनी के एक वफ़ादार सेवक [[जॉब चारनाक]] ने [[बंगाल]] के नवाब [[इब्राहीम ख़ाँ]] के निमंत्रण पर भागीरथी की दलदली भूमि पर स्थित [[सूतानटी गाँव]] में [[कोलकाता|कलकत्ता]] नगर की स्थापना की। बाद को 1698 ई. में सूतानटी से लगे हुए दो गाँवों, [[कालिकाता]] और [[गोविन्दपुर]], को भी इसमें जोड़ दिया गया। इस प्रकार पुर्तग़ालियों के ज़बर्दस्त प्रतिरोध पर विजय प्राप्त करने के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी 90 वर्षों के अन्दर तीन अति उत्तम बन्दरग़ाहों-बम्बई, मद्रास और कलकत्ता पर अपना अधिकार कर लिया। इन तीनों बन्दरग़ाहों पर क़िले भी थे। ये तीनों बन्दरग़ाह प्रेसीडेंसी कहलाये और इनमें से प्रत्येक का प्रशासन ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कोर्ट ऑफ़ प्रोपराइटर्स द्वारा नियुक्त एक गवर्नर के सुपुर्द किया गया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का संचालन लन्दन में लीडल हॉल स्ट्रीट स्थित कार्यालय से होता था।
 
====कम्पनी को सीमा शुल्क से मुक्ति====
 
1691 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को [[बंगाल]] के नवाब [[इब्राहीम ख़ाँ]] से एक फ़रमान प्राप्त हुआ, जिसमें कम्पनी को बंगाल में सिर्फ़ 3000 रुपये की राशि सालाना देने पर सीमा शुल्क के भुगतान से मुक्त कर दिया गया था। अन्य यूरोपीय कम्पनियों को तीन प्रतिशत शुल्क अदा करना पड़ता था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सर्जन [[डॉ. हैमिल्टन]] की चिकित्सा सेवाओं से ख़ुश होकर सम्राट [[फ़र्रुख़सियर]] ने 1715 ई. में नया फ़रमान जारी करते हुए कम्पनी को सीमा शुल्क से मुक्त करने वाले पहले फ़रमान की पुष्टि कर दी।
 
 
 
'''(डॉक्टर हेमिल्टन कम्पनी द्वारा भेजे गए दूतमण्डल के साथ मुग़ल दरबार में गया था।)'''
 
====भारत पर प्रभुसत्ता====
 
व्यापार में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के इस एकाधिकार का कई [[अंग्रेज़]] व्यापारियों ने विरोध किया और सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में '''दि इण्डियन कम्पनी ट्रेडिंग टु दि ईस्ट इण्डीज़''' नामक एक प्रतिद्वन्द्वी संस्था की स्थापना की। नयी और पुरानी दोनों कम्पनियों में कड़ी प्रतिद्वन्द्विता चल पड़ी, जिसमें पुरानी कम्पनी के पैर उखड़ने लगे, किन्तु [[भारत]] और इंग्लैण्ड दोनों ही जगह अत्यन्त कटु और अप्रतिष्ठाजनक प्रतिद्वन्द्विता के बाद 1708 ई. में समझौता हुआ, जिसके अंतर्गत दोनों को मिलाकर एक कम्पनी बना दी गई और उसका नाम रखा गया '''दि यूनाइडेट कम्पनी ऑफ़ दि मर्चेण्ट्स ऑफ़ इंग्लैण्ड ट्रेडिंग टू दि ईस्ट इण्डीज़'''। यह संयुक्त कम्पनी बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नाम से ही मशहूर रही और डेढ़ सौ वर्षों में वह मात्र एक व्यापारिक निगम न रहकर एक ऐसी राजनीतिक एवं सैनिक संस्था बन गई, जिसने सम्पूर्ण भारत पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर ली।
 
{{highright}}1661 ई. में ब्रिटेन के राजा [[चार्ल्स द्वितीय]] को पुर्तग़ाली राजकुमारी से विवाह के दहेज में [[मुम्बई|बम्बई]] का टापू मिल गया। चार्ल्स ने 1668 ई. में इसको केवल 10 पाउण्ड सालाना किराये पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया। इसके बाद 1669 और 1677 ई. के बीच कम्पनी के गवर्नर [[जेराल्ड आंगियर]] ने आधुनिक बम्बई नगर की नींव डाली।{{highclose}}
 
====कम्पनी का सौभाग्य====
 
[[भारत]] में इस कम्पनी की प्रभुसत्ता सहसा ही नहीं स्थापित हो गई। इसमें उसे सौ से भी अधिक वर्षों का समय लगा और इस अवधि में उसे फ़्राँस और डच कम्पनियों तथा भारतीयों से अनेक युद्ध भी करने पड़े। ईस्ट इण्डिया कम्पनी कम्पनी के सौभाग्य से भारत पर प्रभुसत्ता का दावा करने वाली [[मुग़ल]] सरकार धीरे-धीरे कमज़ोर होती गई और देश अठारहवीं शताब्दी के दौरान छोटे-छोटे अनेक मुस्लिम और हिन्दू राज्यों में बँट गया। इन राज्यों में परस्पर कोई भी एकता न रही। मुस्लिम राज्य न केवल हिन्दू राज्यों के ख़िलाफ़ थे, वरन् उनमें आपस में भी एकता न थी और न ही उनके मन में [[दिल्ली]] में शासन करने वाले मुग़ल सम्राट के प्रति कोई निष्ठा थी। यह फूट ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए वरदान सिद्ध हुई। इस कम्पनी ने 1761 ई. में [[वॉडीवाश]] का युद्ध जीतकर फ़्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भारत से सफ़ाया कर दिया। सन 1757 ई. में [[प्लासी का युद्ध]] जीतने के बाद [[बंगाल]], [[बिहार]] और [[उड़ीसा]] पर उसका प्रभुत्व वस्तुत: पहले ही स्थापित हो चुका था।
 
====कम्पनी का वर्चस्व====
 
[[मुग़ल]] सम्राट [[शाहआलम द्वितीय]] असहाय सा कम्पनी की फ़ौजों का बढ़ाव और विजय देखता रहा। उसके देखते-देखते कम्पनी ने [[मैसूर]] के मुस्लिम राज्य को हड़प लिया और [[हैदराबाद]] के निज़ाम ने कम्पनी के आगे आत्म समर्पण कर दिया। पर वह कुछ भी न कर सका। हाँ, उसे इस बात से अलबत्ता कुछ सन्तोष मिला कि कम्पनी ने [[मराठ|मराठों]] की शक्ति को भी काफ़ी क्षीण कर दिया था। [[राजपूत]] वीरे थे, किन्तु शुरू से ही उनमें आपस में फूट थी। उन्होंने आत्मरक्षा के लिए कोई बार किये बिना ही कम्पनी के आगे घुटने टेक दिये। [[लार्ड हेस्टिंग्स]] (1813-23) के प्रशासन काल में मराठों द्वारा आत्म समर्पण कर दिये जाने के बाद तो मुग़ल सम्राट वस्तुत: कम्पनी का पेंशनयुक्त बन गया। 1929 ई. में [[आसाम]], 1843 ई. में [[सिन्ध]], 1849 ई. में [[पंजाब]] और 1852 ई. में दक्षिणी [[बर्मा]] भी कम्पनी के शासन में आ गया। वास्तव में अब बर्मा से [[पेशावर]] तक कम्पनी का पूर्ण आधिपत्य था।
 
 
 
'''ईस्ट इण्डिया कम्पनी''' से व्यापारिक अधिकार और एकाधिपत्य पहले ही हस्तान्तरित किया जा चुका था और इस प्रकार वह ग्रेट ब्रिटेन के सम्राट के प्रशासनिक अभिकरण के रूप में कार्य कर रही थी। चारों तरफ़ शान्ति नज़र आ रही थी कि अचानक 1857 ई. में भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। कम्पनी ने कुछ 'गद्दार' भारतीयों की मदद से विद्रोह को दबा तो दिया, लेकिन भारतीयों के कुछ वर्गों में विरोध और बग़ावत की आग भड़कती रही। यह बग़ावत ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए घातक सिद्ध हुई। 1858 ई. में कम्पनी को समाप्त कर दिया गया और भारत की प्रभुसत्ता ब्रिटेन के सम्राट ने स्वयं ग्रहण कर ली।
 
 
 
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Latest revision as of 07:20, 5 December 2010