Difference between revisions of "भोज"

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<u>भोज (1000 से 1055 ई.)</u>
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{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=भोज|लेख का नाम=भोज (बहुविकल्पी)}}
*सिंधुराज का पुत्र एवं उत्तराधिकारी भोज परमार वंश का योग्य एवं प्रतापी शासक था।
 
*उसका [[चालुक्य वंश|कल्याणी के चालुक्य]] एवं अन्हिवाड़ के चालुक्यों से युद्ध हुआ।
 
*चालुक्य नरेश विक्रमादित्य चतुर्थ एवं कलचुरी राजा गांगेय देव को भोज ने पराजित किया जबकि चन्देल नरेश विद्याधर ने भोज को परास्त किया था।
 
*अन्ततः [[गुजरात]] के [[सोलंकी वंश|सोलंकी]] एवं [[त्रिपुरा]] के [[कलचुरी वंश|कलचुरी]] के संघ ने मिलकर [[भोज]] की राजधानी [[धार]] पर दो ओर से आकमण कर राजधानी को नष्ट कर दिया।
 
*भोज के बाद शासक जयसिंह ने शत्रुओं के समक्ष आत्मसमर्पण कर [[मालवा]] से अपने अधिकार को खो दिया।
 
*भोज के साम्राज्य के अन्तर्गत [[मालवा]], कोकण, खान देश, भिलसा, डूगंरपुर, बांसवाड़ा, [[चित्तौड़]] एवं गोदावरी घाटी का कुछ भाग शामिल था।
 
*भोज ने [[उज्जैन]] की जगह अपने नई राजधानी [[धार]] को बनाया। भोज एक पराक्रमी शासक होने के साथ ही विद्वान एवं विद्या तथा कला का उदार संरक्षक था। अपनी विद्वता के कारण ही उसने 'कविराज' की उपाधि धारण की ।
 
*उसने कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ जैसे- 'समरांगण सूत्रधार', 'सरस्वती कंठाभरण', 'सिद्वान्त संग्रह', 'राजकार्तड', 'योग्यसूत्रवृत्ति', 'विद्या विनोद', 'युक्ति कल्पतरु', 'चारु चर्चा', 'आदित्य प्रताप सिद्धान्त', 'आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश', 'प्राकृत व्याकरण', 'कूर्मशतक', 'श्रृंगार मंजरी', 'भोजचम्पू', 'कृत्य कल्पतरु', 'तत्वप्रकाश', 'शब्दानुशासन', 'राज्मृडाड' आदि की रचना की। '[[आइना-ए-अकबरी]]' के वर्णन के आधार पर माना जाता है कि उसके राजदरबार में लगभग 500 विद्धान थे।
 
*उसके दरबारी कवियों में भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र, धनपाल आदि प्रमुख थे। उसके बार में अनुश्रति थी कि वह हर एक कवि को प्रत्येक श्लोक पर एक लाख मुद्रायें प्रदान करता था। उसकी मृत्यु पर पण्डितों को हार्दिक दुखः हुआ, तभी एक प्रसिद्ध लोकोक्ति के अनुसार उसकी मृत्यु से विद्या एवं विद्वान, दोनों निराश्रित हो गये भोज ने अपनी राजधानी धार को विद्या एवं कला के महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में स्थापित किया।
 
*यहां पर भोज ने अनेक महल एवं मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें सरस्वती मंदिर सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उसके अन्य निर्माण कार्य केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ सुडार आदि मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त भोज ने भोजपुर नगर एवं भोजसेन नामक तालाब का भी निर्माण करवाया था।
 
*उसने त्रिभुवन नारायण, सार्वभौम, मालवा चक्रवर्ती जैसे विरुद्ध धारण किया था। उसने त्रिभुवन नारायण, सार्वभौम, मालवा चक्रवर्ती जैसे विरुद्ध धारण किया था। अपने नाम पर उसने भोजपुर नगर बसाया तथा एक बहुत बड़े 'भोजसर' नामक तालाब को निर्मित कराया।
 
  
{{लेख प्रगति
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'''भोज''' शब्द का प्रयोग प्राचीन साहित्य में तीन अर्थों में हुआ है<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=341|url=}}</ref>-
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#शासकीय पदवी के रूप में, जो दक्षिण के मूर्धाभिषिक्त राजाओं के लिए प्रयुक्त होती थी।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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[[Category:प्रतिहार साम्राज्य]][[Category:इतिहास कोश]]
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Latest revision as of 10:04, 30 March 2015

chitr:Disamb2.jpg bhoj ek bahuvikalpi shabd hai any arthoan ke lie dekhean:- bhoj (bahuvikalpi)

bhoj shabd ka prayog prachin sahity mean tin arthoan mean hua hai[1]-

  1. shasakiy padavi ke roop mean, jo dakshin ke moordhabhishikt rajaoan ke lie prayukt hoti thi.
  2. janapad ke roop mean, jaisa ki ashok ke shilalekh sankhya 13 mean prayukt hua hai, jo kadachit barar mean tha.
  3. vyaktivachak sanjna ke roop mean, jaisa ki kannauj aur malava ke anek rajaoan ka nam tha.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. bharatiy itihas kosh |lekhak: sachchidanand bhattachary |prakashak: uttar pradesh hindi sansthan |prishth sankhya: 341 |

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