अनैकांतिक
अनैकांतिक (°) [नञ्+एकांत+ठक् न. त.] (स्त्रीलिंग-की)
- 1. अस्थिर, जो बहुत आवश्यक न हो
- 2. (तर्क. में) हेत्वाभास के मुख्य पाँच भागों से एक, अन्यथा यह 'सव्यभिचार' कहलाता है, और तीन प्रकार का है-
- (क) 'साधारण' जहाँ कि हेतु दोनों ओर-स्वपक्ष तथा विपक्ष में-पाया जाए, फलतः तर्क अतिसामान्य हो जाए।
- (ख) 'असाधारण' जहां हेतु केवल पक्ष में ही पाए जाएँ फलतः तर्क अतिसामान्य न हो।
- (ग) 'अनुपसंहारी' जहां पक्ष में प्रत्येक ज्ञात बात तो सम्मिलित है, परन्तु तर्कों की अभी समाप्ति नहीं हुई है।[1]
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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