अरूणिमा सिन्हा
अरूणिमा सिन्हा
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पूरा नाम | अरूणिमा सिन्हा |
जन्म | 20 जुलाई, 1989 |
जन्म भूमि | सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश |
पति/पत्नी | गौरव सिंग |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | पर्वतारोहण |
पुरस्कार-उपाधि | अम्बेडकरनगर रत्न पुरस्कार (2016), सुल्तानपुर रत्न अवॉर्ड, मलाला अवॉर्ड, यशभारती अवॉर्ड |
प्रसिद्धि | माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय दिव्यांग। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 21 मई, 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए अरूणिमा सिन्हा ने ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम किया। |
अरूणिमा सिन्हा (अंग्रेज़ी: Arunima Sinha, जन्म- 20 जुलाई, 1989, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश) भारत की राष्ट्रीय स्तर की पूर्व बॉलीबॉल खिलाड़ी तथा माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय विकलांग हैं। कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की एकमात्र महिला अरूणिमा सिन्हा अब तक किलिमंजारो, माउंट एल्ब्रुस, विन्सन मैसिफ़, कास्टेन पिरामिड, किजाश्को और माउंट अंककागुआ पर्वत चोटियों को फतह कर चुकी हैं।
परिचय
अरूणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई, 1988 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ। उनकी रुचि बचपन से ही खेल में रही। वह एक नेशनल वॉलीबॉल खिलाड़ी भी थीं। उनके जीवन में सब कुछ समान्य चल रहा था। तभी उनके साथ कुछ ऐसा घटित हुआ, जिसके चलते उनकी जिंदगी का इतिहास ही बदल गया।
रेल दुर्घटना
अरूणिमा सिन्हा 11 अप्रैल, 2011 को पद्मावती एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थीं। रात के लगभग एक बजे कुछ शातिर अपराधी ट्रैन के डिब्बों में दाखिल हुए और अरूणिमा सिन्हा को अकेला देखकर उनके गले की चैन छीनने का प्रयास करने लगे, जिसका विरोध उन्होंने किया। उन शातिर चोरों ने अरूणिमा सिन्हा को चलती हुई ट्रैन से बरेली के पास बाहर फेक दिया जिसकी वजह से उनका बायां पैर पटरियों के बीच में आ जाने से कट गया। पूरी रात अरूणिमा सिन्हा कटे हुए पैर के साथ दर्द से चीखती-चिल्लाती रही। लगभग 40-50 ट्रैन गुजरने के बाद पूरी तरह से अरूणिमा सिन्हा अपने जीवन की आस खो चुकी थीं; लेकिन शायद उनके जीवन की किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
फिर लोगों को इस घटना के बारे में पता चलने के बाद उन्हें नई दिल्ली के ऐम्स में भर्ती कराया गया। जहां अरूणिमा सिन्हा अपनी जिंदगी और मौत से लगभग चार महीने तक लड़ती रहीं। जिंदगी और मौत की जंग में उनकी जीत हुई और फिर अरुणिमा सिन्हा के बाये पैर को कृत्रिम पैर के सहारे जोड़ दिया गया। अरूणिमा सिन्हा की इस हालत को देखकर डॉक्टर भी हार मान चुके थे और उन्हें आराम करने की सलाह दे रहे थे जबकि परिवार वाले और रिस्तेदारों की नजर में अब अरूणिमा सिन्हा कमजोर और विंकलांग हो चुकी थीं लेकिन उन्होंने अपने हौसलों में कोई कमी नहीं आने दी और किसी के आगे खुद को बेबस और लाचार घोषित नहीं किया।
एवरेस्ट विजय
अरूणिमा सिन्हा यहीं नहीं रुकीं। युवाओं और जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव के चलते निराशापूर्ण जीवन जी रहे लोगों में प्रेरणा और उत्साह जगाने के लिए उन्होंने अब दुनिया के सभी सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को लांघने का लक्ष्य तय किया। अपराधियों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए जाने के कारण एक पैर गंवा चुकने के बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए 21 मई, 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया। ट्रेन दुर्घटना से पूर्व उन्होंने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में राज्य की वॉलीबाल और फ़ुटबॉल टीमों में प्रतिनिधित्व किया था।
सम्मान व पुरस्कार
उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर जिले के 'भारत भारती संस्था' ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली इस विकलांग महिला को 'सुल्तानपुर रत्न अवॉर्ड' से सम्मानित किये जाने की घोषणा की। सन 2016 में अरूणिमा सिन्हा को 'अम्बेडकरनगर रत्न पुरस्कार' से 'अम्बेडकरनगर महोत्सव समिति' की तरफ से नवाजा गया।
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