अर्च्
अर्च् (भ्वा. उभ.) [अर्चति-ते, अर्चित]
- 1.
- (क) पूजा करना, अभिवादन करना, सत्कार करना- 1/6, 90; 2/21, 4/84, 12/89, 3/93-आर्चीद् द्विजातीन् परमार्थविन्दान्-भाई 1/15, 14/63, 17/5
- (ख) सम्मान करना अर्थात अलंकृत करना, सजाना-उत्तर. 2/9
- 2. स्तुति करना, (वेद.), (चु. पर. या प्रेर) सम्मान करना अलंकृत करना, पूजा करना-स्वर्गीकसामदि तमर्चयित्वा कु. 1/59, अभि,-समधि-पूजा करना, अलंकृत करना, सम्मान करना -आशीर्भिरभ्यर्च्य ततः क्षितीन्द्र-भट्टि, 1/24. भग. 18/46 प्र-1. स्तुति करना, स्तुतिगान करना 2. सम्मान करना, पूजा करना, प्रानर जगदर्चनीयम् - भट्टि. 2/20[1]
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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