अव (ब) हित्था-त्थम्
अव (ब) हित्या-त्यम् [न बहिः तिष्ठति इति-स्था+क पृषो.]
1. पाखंड
2. आन्तरिक भावगोपन, 33 व्यभिचारिभावों में से एक-भयगौरवलज्जादेर्हर्षाद्या-कारगुप्तिरवहित्था-सा.द.; रस. के अनुसार-ब्रीडादिना निमित्तेन हर्षाद्यनुभावानां गोपनाय जनितो भावविशेषोऽवहित्थम्[1][2]
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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