उत्सर्पिणी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search

उत्सर्पिणी जैनमतानुसार काल की एक विशिष्ट गति अथवा अवस्था जिसमें रूप, रस, गंध तथा स्पर्श इन चारों की क्रम से वृद्धि होती है।[1]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 90 |

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः