श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 10 श्लोक 39-43

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search

दशम स्कन्ध: दशमोऽध्यायः (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: दशमोऽध्यायः श्लोक 39-43 का हिन्दी अनुवाद

श्री शुकदेव जी कहते हैं - सौन्दर्य-माधुर्यनिधि गोकुलेश्वर श्रीकृष्ण नलकूबर और मणिग्रीव के इस प्रकार स्तुति करने पर रस्सी से उखल बँधे-बँधे ही हँसते हुए[1] उनसे कहा -

श्री भगवान ने कहा - तुम लोग श्रीमद से अंधे हो रहे थे। मैं पहले से ही यह बात जानता था कि परम कारुणिक देवर्षि नारद ने शाप देकर तुम्हारा ऐश्वर्य नष्ट कर दिया तथा इस प्रकार तुम्हारे ऊपर कृपा की।

जिसकी बुद्धि समदर्शिनी है और हृदय पूर्ण रूप से मेरे प्रति समर्पित है, उन साधु पुरुषों के दर्शन से बंधन होना ठीक वैसे ही सम्भव नहीं है, जैसे सूर्योदय होने पर नेत्रों के सामने अन्धकार होना।

इसलिए नलकूबर और मणिग्रीव! तुम लोग मेरे परायण होकर अपने-अपने घर जाओ। तुम लोगों को संसार चक्र से छुड़ाने वाले अनन्य भक्तिभाव की, जो तुम्हें अभीष्ट है, प्राप्ति हो गयी है।

श्री शुकदेव जी कहते हैं - जब भगवान ने इस प्रकार कहा, तब उन दोनों ने उनकी परिक्रमा की और बार-बार प्रणाम किया। इसके बाद ऊखल में बंधे हुए सर्वेश्वर की आज्ञा प्राप्त करके उन लोगों ने उत्तर दिशा की यात्रा की।[2]



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्वदा मैं मुक्त रहता हूँ और बद्ध जीव मेरी स्तुति करते हैं। आज मैं बद्ध हूँ और मुक्त जीव मेरी स्तुति कर रहे हैं। यह विपरीत दशा देखकर भगवान को हँसी आ गयी।
  2. यक्षों ने विचार किया कि जब तक यह सगुणा (रस्सी) में बँधे हुए हैं, तभी तक हमें इनके दर्शन हो रहे हैं। निर्गुण को तो मन में सोचा भी नहीं जा सकता। इसी से भगवान के बँधे रहते ही वे चले गये।
    स्वस्त्यस्तु उलूखल सर्वदा श्रीकृष्ण गुणशाली एव भूयाः।
    ‘ऊखल! तुम्हारा कल्याण हो, तुम सदा श्रीकृष्ण के गुणों से बँधे ही रहो।’ - ऐसा ऊखल को आशीर्वाद देकर यक्ष वहाँ से चले गये।

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः