देनहार कोउ और है -रहीम
देनहार कोउ और है , भेजत सो दिन रैन ।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन ॥
- अर्थ
हम कहाँ किसी को कुछ देते हैं। देने वाला तो दूसरा ही है, जो दिन-रात भेजता रहता है इन हाथों से दिलाने के लिए। लोगों को व्यर्थ ही भरम हो गया है कि रहीम दान देता है। मेरे नेत्र इसलिए नीचे को झुके रहते हैं कि माँगने वाले को यह भान न हो कि उसे कौन दे रहा है, और दान लेकर उसे दीनता का अहसास न हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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