साधु सराहै साधुता -रहीम
साधु सराहै साधुता, जती जोगिता जान ।
‘रहिमन’ साँचे सूर को, बैरी करै बखान ॥
- अर्थ
साधु सराहना करते हैं साधुता की, और योगी सराहते हैं योग की सर्वोच्च अवस्था को। और सच्चे शूरवीर के पराक्रम की सराहना उसके शत्रु भी किया करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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