उद्धव संदेश -सूरदास: Difference between revisions

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हंसदूत में जिस प्रकार [[ललिता]] हंस को दूत बनाकर, कृष्ण के पास सन्देश भेजती है कृष्ण के विरह में उनकी दशा का वर्णन करने, उसी प्रकार उद्धव सन्देश में श्रीकृष्ण उद्धव को दूत बनाकर भेजते हैं। राधा और अन्य गोपियों के पास, उनके विरह में अपनी दशा का वर्णन करने। वे उद्धव से कहते हैं कि मथुरा में सब प्रकार के सुख होते हुए भी वे वृन्दावन और वहाँ की गोपिकाओं को नहीं भूले हैं, उनके प्राण सदा वृन्दावन में ही रहते हैं। वे [[उद्धव]] को यह भी उपदेश करते हैं कि उन्हें किस प्रकार वृन्दावन जाकर उनके सखाओं को प्रेम से आलिंगन करना होगा, नन्द-यशोदा को प्रणाम करना होगा, गोपियों को सान्त्वना देनी होगी और राधिका को वैजयन्ती माला का स्पर्श करा सचेत करना होगा।  
हंसदूत में जिस प्रकार [[ललिता]] हंस को दूत बनाकर, कृष्ण के पास सन्देश भेजती है कृष्ण के विरह में उनकी दशा का वर्णन करने, उसी प्रकार उद्धव सन्देश में श्रीकृष्ण उद्धव को दूत बनाकर भेजते हैं। राधा और अन्य गोपियों के पास, उनके विरह में अपनी दशा का वर्णन करने। वे उद्धव से कहते हैं कि मथुरा में सब प्रकार के सुख होते हुए भी वे वृन्दावन और वहाँ की गोपिकाओं को नहीं भूले हैं, उनके प्राण सदा वृन्दावन में ही रहते हैं। वे [[उद्धव]] को यह भी उपदेश करते हैं कि उन्हें किस प्रकार वृन्दावन जाकर उनके सखाओं को प्रेम से आलिंगन करना होगा, नन्द-यशोदा को प्रणाम करना होगा, गोपियों को सान्त्वना देनी होगी और राधिका को वैजयन्ती माला का स्पर्श करा सचेत करना होगा।  


विद्वानों का मत है कि 'हंसदूत की अपेक्षा उद्धव-सन्देश की भाषा और अलंकार का अपूर्वत्व अधिक चित्तग्राही है। इसका प्रत्येक श्लोक सुमधुर रस और सुगंभीर भाव से परिपूर्ण है। आवेग की आन्तरिकता और कारूण्य प्रकाश की विस्मयकारिता की दृष्टि से इसका दूतकाव्य में उल्लेखनीय स्थान है'
विद्वानों का मत है कि 'हंसदूत की अपेक्षा उद्धव-सन्देश की भाषा और अलंकार का अपूर्वत्व अधिक चित्तग्राही है। इसका प्रत्येक श्लोक सुमधुर रस और सुगंभीर भाव से परिपूर्ण है। आवेग की आन्तरिकता और कारुण्य प्रकाश की विस्मयकारिता की दृष्टि से इसका दूतकाव्य में उल्लेखनीय स्थान है'


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(18) रंग-स्थल क्रीड़ा।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Latest revision as of 10:17, 8 August 2012

हंसदूत में जिस प्रकार ललिता हंस को दूत बनाकर, कृष्ण के पास सन्देश भेजती है कृष्ण के विरह में उनकी दशा का वर्णन करने, उसी प्रकार उद्धव सन्देश में श्रीकृष्ण उद्धव को दूत बनाकर भेजते हैं। राधा और अन्य गोपियों के पास, उनके विरह में अपनी दशा का वर्णन करने। वे उद्धव से कहते हैं कि मथुरा में सब प्रकार के सुख होते हुए भी वे वृन्दावन और वहाँ की गोपिकाओं को नहीं भूले हैं, उनके प्राण सदा वृन्दावन में ही रहते हैं। वे उद्धव को यह भी उपदेश करते हैं कि उन्हें किस प्रकार वृन्दावन जाकर उनके सखाओं को प्रेम से आलिंगन करना होगा, नन्द-यशोदा को प्रणाम करना होगा, गोपियों को सान्त्वना देनी होगी और राधिका को वैजयन्ती माला का स्पर्श करा सचेत करना होगा।

विद्वानों का मत है कि 'हंसदूत की अपेक्षा उद्धव-सन्देश की भाषा और अलंकार का अपूर्वत्व अधिक चित्तग्राही है। इसका प्रत्येक श्लोक सुमधुर रस और सुगंभीर भाव से परिपूर्ण है। आवेग की आन्तरिकता और कारुण्य प्रकाश की विस्मयकारिता की दृष्टि से इसका दूतकाव्य में उल्लेखनीय स्थान है'

अष्टादश लीला छन्द—इसके अन्तर्गत निम्नलिखित 18 स्तव हैं:

(1) नन्दोत्सवादिचरित

(2) शकट तृणावर्तभंगादि

(3) यमलार्जुन भञ्जन

(4) वृन्दावन गोवत्सचारणादि लीला

(5) वत्सहरणादि चरित

(6) तालवन चरित

(7) कालीय-दमन

(8) भाण्डीर क्रीड़नादि

(9) वर्षाशरद्विहार चरित

(10) वस्त्रहरण

(11) यज्ञपत्नी प्रसाद

(12) गो-वर्द्धनोद्धरण

(13) नन्दापहरण

(14) रासक्रीड़ा

(15) सुदर्शनादि मोचनं शंकचूड़निधनञ्च

(16) गोपिकागीत

(17) अरिष्टवधादि

(18) रंग-स्थल क्रीड़ा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ


टीका टिप्पणी और संदर्भ