|
|
Line 1: |
Line 1: |
| {{पुनरीक्षण}}
| | #REDIRECT [[एकलिंगजी उदयपुर]] |
| [[उदयपुर]] से 12 मील पर स्थित है। [[मेवाड़]] के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। मेवाड़ के संस्थापक [[बप्पा रावल]] ने एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। कहा जाता है कि डूंगरपुरराज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी। एकलिंग भगवान को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार ऐतिहासिक महत्व के प्रण किए थे। जब विपत्तियों के थपेड़ों से [[महाराणा प्रताप]] का धैर्य टूटने जा रहा था तब उन्होंने [[अकबर]] के दरबार में रहकर भी राजपूती गौरव की रक्षा करने वाले [[बीकानेर]] के [[पृथ्वीराज चौहान|राजा पृथ्वीराज]] को, उनके उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से भरे हुए पत्र के उत्तर में जो शब्द लिखे थे वे आज भी अमर हैं- | |
| :'तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग, ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग'<ref>प्रताप के शरीर रहते एकलिंग की सौगंध है, बादशाह अकबर मेरे मुख से तुर्क ही कह लाएगा। आप निश्चित रहें, सूर्य पूर्व में ही उगेगा'</ref>
| |
| | |
| {{प्रचार}}
| |
| {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
| |
| {{संदर्भ ग्रंथ}}
| |
| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
| |
| <references/>
| |
| ==बाहरी कड़ियाँ==
| |
| | |
| ==संबंधित लेख==
| |
| {{राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान}}
| |
| | |
| [[Category:राजस्थान]]
| |
| [[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक नगर]]
| |
| [[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान]]
| |
| [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
| |
| __INDEX__
| |