अपनी आज़ादी को हम: Difference between revisions

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* संगीतकार : नौशाद अली
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* गायक : [[मोहम्मद रफ़ी]]  
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* गीतकार: शकील बदायूनी
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वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे
वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे
हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख बदलते जाएंगे
हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख़ बदलते जाएंगे
गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन
गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे

Latest revision as of 13:50, 3 February 2013

संक्षिप्त परिचय

अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं

हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है
सैंकड़ों कुर्बानियाँ देकर ये दौलत पाई है
मुस्कुरा कर खाई हैं सीनों पे अपने गोलियां
कितने वीरानों से गुज़रे हैं तो जन्नत पाई है
ख़ाक में हम अपनी इज्ज़त को मिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

क्या चलेगी ज़ुल्म की अहले-वफ़ा के सामने
आ नहीं सकता कोई शोला हवा के सामने
लाख फ़ौजें ले के आए अमन का दुश्मन कोई
रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने
हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे
हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख़ बदलते जाएंगे
गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे
एक धोखा खा चुके हैं और खा सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

हम वतन के नौजवाँ है हम से जो टकरायेगा
वो हमारी ठोकरों से ख़ाक में मिल जायेगा
वक़्त के तूफ़ान में बह जाएंगे ज़ुल्मो-सितम
आसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहरायेगा
जो सबक बापू ने सिखलाया भुला सकते नहीं
सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं...

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

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