रहिमन अँसुवा नयन ढरि -रहीम: Difference between revisions
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‘रहिमन’ अँसुवा नयन ढरि, जिय | ‘रहिमन’ अँसुवा नयन ढरि, जिय दु:ख प्रकट करेइ।<br /> | ||
जाहि निकारो गेह तें, कस न भेद कहि देइ॥ | जाहि निकारो गेह तें, कस न भेद कहि देइ॥ | ||
Latest revision as of 14:00, 2 June 2017
‘रहिमन’ अँसुवा नयन ढरि, जिय दु:ख प्रकट करेइ।
जाहि निकारो गेह तें, कस न भेद कहि देइ॥
- अर्थ
आंसू आंखों में ढुलक कर अन्तर की व्यथा प्रकट कर देते हैं। घर से जिसे निकाल बाहर कर दिया, वह घर का भेद दूसरों से क्यों न कह देगा?
left|50px|link=जिहि अंचल दीपक दुर्यो -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=रहिमन अब वे बिरछ कह -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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